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________________ २४ विषय निर्देश विषय | पृष्ठ विषय ४७७ ...दिगम्बरकथित बाधकप्रमाण के असम्भव की ४९२ ...गाथा-२८-२९ अस्पृष्टविषयक श्रुत दर्शनरूप असिद्धि | क्यों नहीं ? प्रश्न का उत्तर ४७८...सुनिश्चित बाधकप्रमाण के असम्भव की समीक्षा | ४९२...अवधिज्ञान के लिये अवधिदर्शनशब्द उचित ४७८ ...संवादित्व ही उचित प्रमाणलक्षण ४९३ ...गाथा-३० केवल बोध भी उभयोपयोगात्मक ४७९ ...बुभुक्षाविकल्प में दोषापादन का निवारण ४८०...अनन्तवीर्यता के साथ कवलाहार अविरुद्ध | ४९३ ...चक्षुदर्शनादि नवविध उपयोग - व्याख्या ४८१ ...केवलि में भूख-प्यासादिक्लेश के अभाव का | ४९४ ...मनःपर्यव-केवलज्ञान-केवलदर्शन उपयोगों की कथन असार व्याख्या ४८१...गाथा-१६ मति और श्रतज्ञान समविषय अवधि-|४९५ ...सूत्रकार अभिप्राय का अन्यथा व्याख्यान मनःपर्यव भिन्नविषय अनूचित ४८२ ...गाथा-१७ केवलज्ञान सकलार्थ - निरावरण-४९६...दशन-मतिज्ञान का अभेद मानने पर अनन्त-अक्षय आगमविरोध ४८३ ...अक्रमिक अभिन्न ज्ञान-दर्शन में केवल' | ४९७ ...गाथा-३१,३२ केवल उपयोग युगपद् एक होने का समर्थन शब्दप्रयोग की उपपत्ति ४९७...सम्यग्दर्शन भी आभिनिबोधरूप है ४८३ ...एकान्त ज्ञानाद्वैतवाद अमान्य ४९८...गाथा-३३, सभी दर्शन सम्यग्ज्ञानरूप नहीं होते ४८४ ... गाथा १८ अन्यदार्शनिक सूत्रो का सादृश्य, | किन्तु अर्थ में विशेषता | ४९८ ...केवलज्ञान एकान्त से अनुत्पादरूप भी नहीं ४९९ ...गाथा-३४, ३५ केवलज्ञान का कर्थचिद् विनाश ४८५ ...गाथा-१९, मनःपर्यवज्ञान के विषयों का । सयुक्तिक है। दर्शनबोध क्यों नहीं ? | ५०० ...गाथा-३६ केवलज्ञान कथंचित् उत्पत्तिशील है ४८६ ...गाथा-२०, एकरूप केवलोपयोग की ५०० ...आत्मा और केवलज्ञान में भेदाशंका ज्ञानदर्शनोभयरूपता - जैनमत ५०१...गाथा-३७, ३८, ३९ आशंका निरसन- एकान्त ४८७ ...गाथा-२१, ज्ञान और दर्शन के भेद की सदृष्टान्त भेद या अभेद नहीं स्पष्टता ५०२ ...गाथा-४० अनेकान्त का उदाहरण पुरुष, जो ४८८ ...गाथा-२२-२३-२४, छद्मस्थ को दर्शनमूलक ही राजा बना ज्ञान, केवल में नहीं ५०३ ... गाथा-४१, राजदृष्टान्त का जीव-केवलिपर्याय ४८९ ...गाथा-२५, अवग्रह मतिज्ञान का भेद है तो | में उपनय दर्शन से नया क्या लेना ? | ५०४ ...गाथा-४२, द्रव्य पर्याय का कथंचिद् भेद मान्य ४९०...गाथा-२६, मनःपर्यायज्ञान में दर्शनव्याख्या की | ५०५ ...गाथा ४३ केवलज्ञान और आत्मा का अन्योन्य अतिव्याप्ति नहीं कथंचिद् अभेद ४९१ ...अर्थाकार विकल्पग्राहक मनःपर्याय दर्शनरूप | ५०५ ...श्रीभगवतीसूत्र का भावार्थ क्यों नहीं ? प्रश्न का उत्तर ५०६ ...श्री अरिहन्तों में कुसमय-विशासकत्व युक्तिसंगत ४९१...गाथा-२७ मति-श्रुतमलक अर्थोपलम्भ में दर्शन समाप्त निरवकाश | ५०७-५१२ परिशिष्टम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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