SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय निर्देश पृष्ठ विषय ४४० ... तादात्म्यादि अन्य सम्बन्ध प्रयोज्य प्रतीति का अनुमान कैसे ? ४२७ ... प्राणादि में बुद्धिसन्तान से व्याप्ति की शंका ४४१ परोक्षप्रमाणस्वरूप-विभागप्रदर्शकं जैनमतम् का निरसन ४४१... जैनमतानुसार शब्दादिप्रमाण २२ पृष्ठ विषय ४२६ ... अन्वय के विना भी व्यतिरेकी हेतु में ज्ञापकत्व की सिद्धि ४२७... शक्तिभेद के विना कार्यभेद मानने पर क्षणिकताभंग ४४१ ... जैनमतानुसार परोक्षप्रमाण के लक्षण और प्रकार ४४२... प्रत्यक्ष के मुख्य-संव्यवहार दो भेद ४२८ ...व्यतिरेक रहने पर अन्वय के अवश्यभाव की ४४३ ... दर्शन - ज्ञानालम्बनयो: सामान्य- विशेषाकारवत्त्वम् शंका आद्यगाथाव्याख्यासमाप्तिश्च ४२९ ... पक्षधर्मत्व में हेतुलक्षणत्व का निरसन - उत्तर ४२९ ... बौद्धमत से भी हेतु में पक्षधर्मता की असंगति ४३०... पक्षधर्मता के लक्षण की अघटमानता ४३१ ... पक्ष के विविध लक्षणों की अघटमानता ४३१ . अविनाभाव के सिवा अन्य हेतुलक्षणों की व्यर्थता ४३२ ...विवादास्पद धर्मी में पक्षधर्मत्व की उपयोगिता का निरसन शंका का निरसन ४३४ ...सपक्षवृत्तित्व के बल से हेतु में साधकता की ४४७... उत्तरसूचक सूत्र का व्याख्यान ४४७ ... स्वभावतः उपयोगों में कालभेद ४४८ ... पूर्वपक्षप्रदर्शितव्याख्याने दोषनिरूपणम् ४४८... पूर्वपक्षकृत व्याख्यान में दूषणोद्धार ४४९ ...क्रमशः ग्रहण के प्रतिपादन में भी पुनः दोष ४५० ... सूत्र की विपरीतव्याख्या से होढदान दूषणप्राप्त ४५१ ... अनुमानेन यौगपद्यस्थापनम् पंचमगाथा तद्व्याख्यानं च ४३५ ... पक्षधर्मता के विना महासमुद्र में अग्निबोध के आक्षेप का उत्तर ४४३... सामान्याकार दर्शन विशेषाकार ज्ञान ४४४ ... द्वि० काण्डे द्वि० गाथा तद्व्याख्यारम्भश्च ४४४ ... आत्मा दर्शनमय आत्मा ज्ञानमय ४४५... तृतीय गाथा - तद्व्याख्यानं च ४४६ ... केवलज्ञान-दर्शनयोः क्रमवादे पूर्वपक्षारम्भः चतुर्थगाथा तद्व्याख्या च ४४६ ... पूर्वपक्ष में ज्ञान - दर्शनभिन्नकालता का प्रदर्शन ४४७... केवलि णं - सूत्र का पूर्वपक्षाभिमत व्याख्यान ४३६ ... एकसामग्र्यधीनता की कल्पना से कार्यानुमानप्रसङ्ग ४३७... तादात्म्य के विना प्रतिबन्धाभाव की शंका का समाधान ४३८ ...अविनाभावग्रहण में अनुपलम्भसहकृत प्रत्यक्ष असमर्थ ४५१... केवल-ज्ञानदर्शन की समकालीनता का अनुमान ४५२... षष्ठ- सप्तमगाथे तद्व्याख्यानं च ४५२... क्रमवाद में आगमविरोध का उपदर्शन ४३९ ...अविनाभाव का ग्राहक ऊहसंज्ञक स्वतन्त्र ४५३ ... क्रमवाद में द्रव्यापेक्षया अपर्यवसितत्व अघटमान प्रमाण - जैन मत ४५४... क्रमवाद एकान्त में विरोध ४३९ .....कार्य-स्वभाव- अनुपलब्धि अविनाभाव के विना ४५४... अष्टमगाथा तद्व्याख्यानं च निरर्थक ४४० ... उपलब्धिलक्षण अप्राप्त से भी अभाव का अनुमान Jain Educationa International ४५५ ... ग्रन्थकर्तुः स्वपक्षनिरूपणे नवमगाथा तद्व्याख्यानं च ४५५ ... समकालीन उपयोगद्वय का अभाव अभेद साधक For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy