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सन्मतितर्कप्रकरण- काण्ड - २
नापि तद्बाधकप्रमाणसद्भावात्, तस्यैवाऽसिद्धेः । तथाहि - तद्बाधकमध्यक्षम् अनुमानं वा प्रकल्प्येत ? प्रमाणान्तरानभ्युपगमात्। न तावदध्यक्षं तद्बाधकं संभवति अविकल्पप्रसाधकस्य तस्य तद्बाधकत्वात् । न च निरंशक्षणिकैकपरमाणुसंवेदनं स्वसंवेदनाध्यक्षतः सिद्धमिति प्राक् प्रतिपादितमिति नाध्यक्षं तद्बाधकम् । नाप्यनुमानं तद्बाधकं संभवति अध्यक्षाऽप्रवृत्तौ तत्पूर्वकस्य तस्यापि तत्राऽप्रवृत्तेः । यदपि 'यद् यथा 5 प्रतिभाति तत्तथा सद्व्यवहृतिमवतरति '... इत्यादि (११९-४) निर्विकल्पाध्यक्षप्रसाधकमनुमानमुपन्यस्तम् तत्रापि प्रत्यक्षानुमाननिराकृतत्वं पक्षदोषः, नामादिविशेषणोल्लेखविविक्ततया नाक्षमतिरुद्भातीति । हेतोर - सिद्धता च जाति-गुण-क्रियाद्यनेकविशेषणविशिष्टस्थिरस्थूराकारस्तम्भादिविषयाक्षजप्रत्ययस्यैकानेकस्वभावस्य विशेषणविशिष्टतया स्वसंवेदनाध्यक्षतो निर्णयात् अस्य च प्राक् प्रसाधितत्वात् । यदपि 'विशेषणपरिष्वक्तवपुषः संविदोऽध्यक्षत्वविरोधात्' इत्युक्तम् (११९-५) तदपि प्रलापमात्रम्: स्वसंवेदनाध्यक्षप्रसिद्धे स्वरूपे विरोधाऽयोगात्, 10 अन्यथाऽतिप्रसङ्गात् ।
उपरोक्त प्रकार से, निश्चयात्मकता हेतु में असिद्धि-विरुद्ध - अनैकान्तिकादि किसी भी दोष का कलंक न होने से, इस हेतु से अपने प्रयोगकथित (अर्थविषयतारूप) साध्य की सिद्धि निराबाध है । निष्कर्ष, 'प्रत्यक्ष में निर्णयात्मकता साधक कोई प्रमाण नहीं है' ऐसा बहाना बता कर निर्णयात्मक प्रत्यक्ष का निषेध करना अशक्य है ।
(पृ०१५१-पं०१० में कहा था कि प्रत्यक्ष को निर्णयात्मक सिद्ध करने में बाधक प्रमाण का अभाव असिद्ध है वह प्रथम विकल्पनिरसन पूरा हुआ। अब 'बाधकप्रमाण की सत्ता' दूसरे विकल्प का निरसन प्रस्तुत है)
[ प्रत्यक्ष की निश्चयात्मकता में बाधक चर्चा - दूसरा विकल्प ]
प्रत्यक्ष को निर्णयात्मक सिद्ध करने में बाधक प्रमाण की सत्ता का विकल्प भी निषेधार्ह है क्योंकि 20 बाधक प्रमाण ही असिद्ध है । बाधक होगा तो वह प्रत्यक्ष होगा या अनुमान ? अन्य किसी प्रमाण
का बौद्धों को स्वीकार ही नहीं हैं । प्रत्यक्ष की निश्चयात्मकता में प्रत्यक्ष प्रमाण बाधक होने का संभव नहीं है। प्रत्युत, निर्विकल्पसिद्धिव्यग्र अनुमान का ही प्रत्यक्ष बाध करता है। पहले कई बार कहा गया है कि निरंश-क्षणिक-एकपरमाणु का प्रत्यक्षसंवेदन किसी भी स्वसंवेदीप्रत्यक्ष से सिद्ध नहीं है तो वह निर्णयात्मकता को सिद्ध करने में कैसे बाधक होगा ?
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[ अनुमानप्रत्यक्ष की निश्चयात्मकता का बाधक नहीं ]
अनुमान भी प्रत्यक्ष की निश्चयात्मकता का बाधक नहीं हो सकता। कारण, अनुमान प्रत्यक्षमूलक होता है, प्रत्यक्ष की जहाँ प्रवृत्ति नहीं होती वहाँ अनुमान की प्रवृत्ति अशक्य है । यह जो निर्विकल्पप्रत्यक्षसाधक अनुमानप्रयोग करते हैं “जो जैसा भासित होता है वह उसी रूप से सद्भूतव्यवहार में अवतीर्ण होता है”... इत्यादि; इस अनुमान से निर्विकल्प प्रत्यक्ष की सिद्धि स्वप्नतुल्य है क्योंकि 30 इस में प्रत्यक्षबाध एवं अनुमानबाध ये दो पक्षदूषण है । प्रत्यक्ष बुद्धि कभी भी नामादि विशेषण उल्लेख
से विनिर्मुक्त भासित नहीं होती, इस लिये निर्विकल्परूप से व्यवहारावतीर्ण हो नहीं सकती यह पहला पक्षदूषण हुआ। दूसरा, अनुमान का हेतु असिद्ध है, मतलब पक्ष में हेतुशून्यता दूषण है । कैसे यह
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