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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ एव चक्षुराद्यधिगतेः। द्वितीयपक्षेऽपि 'भविष्यति रोहिण्युदयः कृत्तिकोदयाद् अतीतक्षपायामिव' इत्यस्यानुमानस्य भावि रोहिण्युदयोऽकारणत्वात् विषयो न स्यात् । न हि भावी रोहिण्युदयः कृत्तिकोदयस्य परम्परयाऽपि कारणम् । अथ भावी रोहिण्युदयः प्राग्भाविनः कृत्तिकोदयस्य कारणं प्रज्ञाकराभिप्रायेण कार्यस्य प्राग्भावित्वात् तर्हि 'अभूद् भरण्युदयः कृत्तिकोदयात्' इत्यनुमानमविषयं भवेत् । अथ भरण्युदयोऽपि कृत्तिकोदयस्य कारणम् तेनाऽयमदोषः। ननु येन स्वभावेन भरण्युदयात् कृत्तिकोदयस्तेनैव यदि शकटोदयादपि, तदा भरण्युदयादिव पश्चात्ततोऽपि भवेत्, यथा वा शकटोदयात् प्राक् तथैव भरण्युदयादपि प्राग् भवेत् । अथान्यतरकार्य कृत्तिकोदयस्तन्यतरस्यैव ततः प्रतीतिर्भवेत्, न चैवम् इति न युक्तं 'कारणमेव विषयः' इति पक्षाश्रयणम् । अत एव रूपादि ज्ञान चक्षुसापेक्ष होता है। - इस अनुमान से आप चक्षु आदि सिद्ध करना चाहते
हैं - यह अनुमानप्रयोग व्यर्थ ठहरेगा; क्यों कि 'जो कारण होता है वह विषय भी होता है' इस 10 व्याप्ति के अनुसार रूपादि प्रत्यक्ष ज्ञान का कारण होने से चक्षुआदि उस का विषय भी बनेगा - इस तरह रूपादिप्रत्यक्ष से ही चक्षुआदि की सिद्धि हो गयी फिर अनुमानप्रयोग की जरूर क्या ?
[ अनुमान से अनुमेय की सिद्धि दुष्कर ] Pदूसरे पक्ष में – कृत्तिका नक्षत्र के उदय रूप हेतु से, व्यतीत रात्रि के उदाहरण द्वारा, रोहिणीनक्षत्र के भावि उदय की अनुमानद्वारा सिद्धि नहीं हो सकेगी क्योंकि रोहिणी का भावि उदय उक्त अनुमान 15 का कारण न होने से विषय नहीं बन सकता। भावि रोहिणी-उदय परम्परातः भी वर्तमान कृत्तिका
उदय का कारण नहीं है जिस से कि कार्य से कारण का अनुमान हो सके। यदि कहा जाय- 'प्रज्ञाकरगुप्त के मतानुसार तो भावि रोहिणीउदय भी अपना पूर्वभावि (अधुनातन) कृत्तिका के उदय में कारण होता है, अत एव कारण होने के जरिये वह अनुमान का विषय भी बनेगा - अतः कोई उक्त दोष नहीं
रहता।' - तो कृत्तिका उदय से पूर्वभावि भरणीनक्षत्र का उदय तो कृत्तिकोदय का कारण न होगा 20 (क्योंकि कारण तो भावि रोहिण्युदय माना है न !) अत एव 'भरणी का उदय बीत गया क्योंकि
अब कृत्तिका उदित है' इस अनुमान का विषय भरणीउदय नहीं बनेगा (कारण न होने से विषय नहीं बन सकता ।) यदि कहें कि - भरणी-उदय भी कृत्तिकोदय का पूर्वकालीन कारण है - तब तो स्वभावप्रश्न खडा होगा कि जिस स्वभावमूलक भूतकालीन भरणीउदय से कृत्तिकोदय होता है यदि
उसी स्वभाव से भाविकालीन शकट (= रोहिणी) उदय के द्वारा पूर्व में कृत्तिकोदय होता है तो स्वभाव 25 एक ही होने से अनिष्ट प्रसङ्ग यह होगा कि भरणीउदय के पश्चात् जैसे कृत्तिकोदय होता है वैसे
ही शकटउदय के पश्चात् ही कृत्तिकोदय होगा (क्योंकि भूतकालीन भरणीउदय और भाविकालीन शकटोदय दोनों एक ही स्वभाव से कारण बने हैं।) या तो ऐसा अनिष्ट होगा कि शकटोदय के पूर्व जैसे कृत्तिकोदय होता है वैसे भरणीउदय के पूर्व ही कृत्तिकोदय होगा (क्योंकि एकस्वभाव से दोनों कारण
बने हैं।)। यदि कहें कि – 'कृत्तिकोदय दोनों (भरणीउदय-शकटोदय) का कार्य नहीं है किन्तु उन दोनों 30 में से किसी एक का ही कार्य है' - 'तब तो दो में से कोई एक ही कारण उस अनुमान का
विषय बनेगा। किन्तु कोई एक (यानी शकटोदय) तो कारण न होने पर भी विषय होता है इस लिये 'कारण ही विषय होता है' यह दूसरा पक्ष संगत नहीं है।
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