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________________ १८२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ योग्यतात:; नन्वेवं किमनिमित्तमर्थस्य ज्ञान प्रति कारणता परिकल्प्यते ? अथ न तद्ग्रहणान्यथानुपपत्तेस्तत्प्रति तत्कारणतापरिकल्पनम् किन्त्वन्वय-व्यतिरेकाभ्याम् । 'अर्थे सति तदवभासि ज्ञानमुपलब्धं तदभावे च न' इत्यन्वयव्यतिरेकनिबन्धनोऽन्यत्रापि हेतु-फलभाव इति। असदेतत्- योगिज्ञानस्य सकलातीतानागतपदार्थसाक्षात्कारिणोऽतीतानागतत्पदार्थाभावेऽपि भावाभ्युपगमात्। न च सर्वेप्यतीतानागता भावास्तदा सन्ति, सर्वभावानां नित्यताप्रसक्तेः । न च तद्विषयं तज्ज्ञानं न भवति - ‘सदसद्वर्गः कस्यचिदेकज्ञानालम्बनः अनेकत्वात् पञ्चाङ्गुलीवत्' इत्यनुमानविरोधात्। __एतेन 'यस्य ज्ञाने प्रतिभासस्तस्य तत्र तत्कारणत्वं निमित्तमभिधीयते, नत्वप्रतिभासमानस्य समवायादेस्तन्निमित्तः प्रतिभासो भवतु इत्यासञ्जयितुं युक्तम्।' ( ) इत्यध्ययनादिमतं निरस्तम्; योगि है और समवाय के अंश में अनिर्णयात्मक है।' शब्द की तरह रूपप्रत्यक्ष में, रूपत्वसामान्य एवं उस 10 के समवाय के लिये भी निर्णय की आपत्ति समझ लेना। यदि कहें कि – 'ज्ञान का कारण होने मात्र से अर्थ गृहीत होता है इतना ही पर्याप्त नहीं है, योग्यता भी होनी चाहिये, इन्द्रिय एवं समवाय में योग्यता न होने से उन का ग्रहण प्रसक्त नहीं होगा' - अरे तब तो योग्यता से ही कार्य निपट जाने पर व्यर्थ ही अर्थ में ज्ञान की कारणता की कल्पना क्यों करते हैं ? [ ज्ञान में अर्थकारणता साधक अन्वय-व्यतिरेक निष्फल ] 15 यदि कहा जाय - अर्थ को ज्ञान का कारण न माना जाय तो उस ज्ञान से अपने विषयभूत अर्थ का ग्रहण ही नहीं होगा - ऐसी अन्यथानुपपत्ति के बल से ही हम अर्थ में कारणता की कल्पना कहाँ करते हैं ? तो ? अन्वय-व्यतिरेक के बल से हम अर्थ में ज्ञानकारणता की कल्पना करते हैं। देखिये - अर्थ के संनिहित होने पर अर्थावभासि ज्ञान का उद्भव होता है, अर्थ के न होने पर नहीं होता। इस अन्वय-व्यतिरेक के जोर पर ही अन्य अन्य स्थलों में भी कार्य-कारणभाव निश्चित 20 किया जाता है। ___ तो यह ठीक नहीं है - सकल भूत-भावि पदार्थ को साक्षात् करने वाले वर्तमानकालीन योगिज्ञान का उद्भव भूत-भावि पदार्थों का वर्तमान में अन्वय न होने पर भी सभी को मान्य है। भूत-भाविभाव साक्षात्कारी योगिज्ञान तो वर्तमान में है लेकिन उस काल में कोई भी भूत-भावि पदार्थ विद्यमान नहीं है, यदि उन्हें वर्तमान में सत् मानेंगे तो सभी पदार्थ में त्रैकालिकत्व के जरिये नित्यत्व प्रसक्त हो 25 जायेगा। ऐसा तो नहीं है कि भूत-भावि भावों का साक्षात्कार ही नहीं होता। यदि न होने का मानेंगे तो साक्षात्कार साधक अनुमान प्रमाण से विरोध होगा। प्रयोग यह है – 'सभी भाव-अभाव पदार्थवृन्द किसी पुरुष के एक (प्रत्यक्ष) ज्ञान में प्रतिबिम्बित होते हैं, क्योंकि वे अनेक हैं, जैसे पंच अंगुलीवृन्द ।' यहाँ अनेकत्व हेतुसे त्रैकालिक पदार्थवृन्द में एकज्ञानविषयतारूप साध्य सिद्ध होता है। यानी सर्वदर्शिता सिद्ध होती है। इस अनुमान से भूत-भावि का भी साक्षात्कार सिद्ध है। 30 [प्रतिभासविषय ज्ञान का निमित्त - अध्ययनमत का निरसन ] अध्ययनादि का जो मत है - 'जिस ज्ञान में जो प्रतिभासित होता है वही उस ज्ञान का कारण होता है, इसी को निमित्त कहा जाता है, जो प्रतिभासित नहीं होता ऐसा समवायादि 'निमित्त' न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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