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________________ विषय निर्देश १७ पृष्ठ विषय पृष्ठ विषय २५८...इन्द्रियसूत्र में मन के अग्रहण का कारण |२७६ ...अनागत अर्थ भी प्रेरणा का विषय होता है २५८ ...प्रत्येक इन्द्रिय के लक्षण २७७ ...सूत्रोक्त लक्षण की संशयादि में अतिव्याप्ति २५९ ...इन्द्रियलक्षण के बाद तुरंत मन का निरूपण तदवस्थ क्यों नहीं ? २७८ ...अक्षपादीय प्रत्यक्षलक्षणं मिथ्या-जैनमतम् २६० ...अव्यवधान से मन के निरूपण का दूसरा कारण | २७८ ...चक्षुरिन्द्रियप्राप्तकारित्वनिरसनम २६० ...सांख्यवादी विन्ध्यवासिकृत प्रत्यक्षलक्षण की | २७८ ...नास्तिक कथित प्रत्यक्ष की व्याख्या तथ्यविहीन परीक्षा २७८ ...नैयायिक अभिमत प्रत्यक्षलक्षण का प्रतिकार २६१ ...श्रोत्रादि की वृत्ति का विकल्प द्वारा परीक्षण - जैन २६२ ...श्रोत्रादि से अर्थान्तररूप वृत्ति में प्रतिनियत २७८ ...चक्षुरिन्द्रियतथ्यता की परीक्षा विशेष के स्वरूप की छानबीन २७९ ...प्रत्यक्ष या अनुमान से चक्षुसंनिकर्ष की अप्रसिद्धि २६२ ...अर्थाकार परिणतिरूप वृत्ति होने पर विकल्पत्रयी २८० ...चक्षुरश्मि की कल्पना व्यर्थ २६३ ...ईश्वरकृष्णप्रदर्शित प्रत्यक्षलक्षण की परीक्षा २८१ ...संनिकृष्ट अर्थ द्योतक बहिरिन्द्रिय का विचार २६३ ...नैयायिककृतं मीमांसासूत्रोक्तप्रत्यक्षलक्षणनिरसनम् २८२ ...तेजोद्रव्य में अनुद्भूत रूप एवं स्पर्श की असिद्धि २६३ ...मीमांसकसूत्रप्रदर्शितप्रत्यक्षलक्षण का निरसन | २८२ ...नेत्ररश्मिसाधक अनुमान का प्रतिबंध २६४ ...धर्मग्रहण का अनिमित्त वह प्रत्यक्ष किस का ? २८३ ...मार्जारनेत्रकिरणवत् दिन में सूर्य किरण मानने २६५ ...योगिप्रत्यक्ष में धर्म-अनिमित्तत्व दिखानेवाला की विपदा प्रसङ्गसाधन २८४ ...प्रदीपरश्मि की अन्तराल में अनुपलब्धि की २६६ ...योगिप्रत्यक्ष प्रति प्रसङ्गसाधन की असंगतता समीक्षा २६६ ...मीमांसक प्रदर्शित प्रसङ्गपूर्वक विपर्यय से २८५ ...चक्षु में स्वरश्मिसम्बद्धार्थप्रकाशकता का निषेध किस का ? २६७...मीमांसक की धर्मी-निषेधाशंका का उत्तर __ अनुमान - नैयायिक २६८ ...गीध-मार्जारादि का सातिशय प्रत्यक्ष भी मर्यादित २८६ ...पृथ्वी आदि में किरणसिद्धि का अनिष्ट २८६ ...नारीनेत्रों के रश्मि की सिद्धि में हेतुदोष एवं २६८...मानसप्रत्यक्ष की विशेषता के प्रदर्शनद्वारा नैयायिक का समाधान प्रत्यक्षबाध २७१ ...मनोविज्ञान भाविअर्थग्राहि होने में आक्षेप २८७ ...नेत्र में तैजसत्वसाधक अनुमान का निरसन प्रतिकार २८८ ...तैजसद्रव्य का अन्तर्भाव चन्द्रकिरण की तरह २७१...भाविरूपता का वि०वि० भाव कैसे ? प्रदीप में २७२ ...संनिकर्ष के विना प्रतिभा कैसे प्रत्यक्ष ? | २८९ ...नीलादिरूप में रूपप्रकाशकत्व हेतु साध्यद्रोही ? २७३ ...प्रतिभा प्रत्यक्षेतर ज्ञान नहीं है २९० ...प्रदीप में रूपप्रकाशनव्यभिचार का वारण २७४ ...प्रतिभा अप्रमाण नहीं निष्फल २७४ ...प्रातिभ प्रत्यक्ष के लिये वि०वि० भाव संनिकर्ष | २९० ...प्रदीप से रूपदर्शन या रूप से प्रदीप दर्शन ? २७५ ...सत्सम्प्रयोग० सूत्र का विद्यमानोपलम्भ अर्थ | २९१ ...प्रसंगात् तमसः तेजोऽभावरूपता निरसनम् असंगत |२९१ ...तमस् में तेज-अभावस्वरूप का निरसन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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