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________________ 5 खण्ड-४, गाथा-१ न च विवक्षितज्ञानं ज्ञानत्वमवभासनं चात्मन्येव प्रतिपद्य तयोर्व्याप्तिमधिगच्छति। तत्रैवानुमानप्रवृत्तेः तत्र च तत्प्रवृतेर्वेयर्थ्यम् साध्यस्याध्यक्षसिद्धत्वात् । न च सकलं ज्ञानमात्मनि तयोर्व्याप्ति प्रतिपद्यत इति वक्तव्यम् सकलज्ञानाऽवेदने वादिनैवं प्रतिपत्तुमशक्तेः । न च न परमार्थतस्तयोर्व्याप्तिः अपि तु व्यवहारेणेति वक्तव्यम् व्यवहारस्यापि प्रमाणत्वाऽभ्युपगमे उक्तदोषाऽनिवृत्तेः । अथाप्रमाणम् विकल्पमात्रमसौ; नन्वनुमानमप्यतः प्रवृत्तिमासादयत् तथाभूतमिति नातोऽभिमतसिद्धिः। ___ न च मिथ्याविकल्पविषयधूमाग्निव्याप्तिप्रभवाग्न्यनुमानवदस्यापि स्वसाध्याऽव्यभिचारित्वम् मिथ्याविकल्पावगतव्याप्तिप्रभवस्य तस्य स्वसाध्याऽव्यभिचारित्वव्याघातात् । न हि ‘साध्यभाव एव साधनभाव' -लक्षणव्याप्त्यभावे साधनप्रभवानुमानस्य कस्यचित् स्वसाध्याऽव्यभिचारोऽविरुद्धः । न चाऽविद्यमानव्याप्तिव्यापकों को) अवगत किये विना सम्बन्ध (व्याप्ति) का भान कैसे हो सकता है ? कहा भी है - ___“दो (सम्बन्धी) का ग्रहण होने पर ही सम्बन्ध का भान हो सकता है, दो में से एक रूप (सम्बन्धी) 10 के अवगममात्र से सम्बन्ध का भान नहीं हो सकता जो कि दोनों सम्बन्धियों से संलग्न होता है।" * ज्ञान और अवभासन की व्याप्ति का ग्रहण निरर्थक * यदि कहा जाय कि – 'विवक्षित कोई एक ज्ञान अपने देह में ही ज्ञानत्व और अवभासनत्व दो संबंधियों को ज्ञात कर लेगा, फिर उन की व्याप्ति का ग्रहण भी कर लेगा।' - तो यहाँ मुसीबत आयेगी कि अनुमान की प्रवृत्ति निरर्थक बन जायेगी, क्योंकि अपने देह में ज्ञानत्व तो साध्य है, 15 अगर उस को स्वयं प्रत्यक्ष कर लिया तो अनुमान की अब क्या जरूर ? एवं उस अनुमान के लिये अपने देह में व्याप्ति के ग्रहण की प्रवृत्ति भी निरर्थक ठहरेगी क्योंकि अब तो अनुमान की जरूर ही नहीं है। उपरांत, यह भी सिद्ध नहीं है कि 'प्रत्येक ज्ञान अपने देह में ही व्याप्य-व्यापक अवभासन एवं ज्ञान की व्याप्ति को ग्रहण कर लेता है।' जब तक सभी ज्ञानों का संवेदन न कर लिया जाय तब तक वादी (बौद्ध) में ऐसी कोई शक्ति नहीं होगी जिस से व्याप्ति का ग्रहण कर सके। 20 यदि कहें कि - ‘पारमार्थिक रूप से तो (ज्ञान एवं अवभासन एक होने से) उन में कोई व्याप्ति होती नहीं है, व्याप्ति एवं अनुमानप्रवृत्ति सब व्यावहारिक हैं इस लिये कोई दोष नहीं।' - तो यह भी बोलना मत, क्योंकि व्यवहार प्रमाण है या अप्रमाण ? प्रमाण मानेंगे तब तो उक्त दोष भी प्रामाणिक मानना होगा, वह आप का पीछा नहीं छोडेगा। यदि वह अप्रमाण है तब तो वह आप के मत में असत् विकल्प ही ठहरा, उस व्यवहार से (व्याप्तिग्रहव्यवहार से) जो अनुमान करेंगे वह भी असत् 25 विकल्प ही ठहरा। उस विकल्प से आप का वांछित कब सिद्ध होगा ? * मिथ्याविकल्प द्वारा गृहीत व्याप्ति से सत्य अनुमान अशक्य * यदि कहा जाय – ‘सकल धूम-वह्नि का वेदन न होने पर भी मिथ्याभूत विकल्प से धूमवह्नि की व्याप्ति गृहीत हो कर अग्नि का अनुमान उदित होता है वैसे ज्ञानत्व साध्य का भी अवभासन हेतु अव्यभिचारि क्यों न माना जाय ?' - यह भी अयुक्त है, मिथ्या विकल्प से गृहीत व्याप्ति से 30 जन्य अनुमान में स्वसाध्य का अव्यभिचार व्याघातग्रस्त है। ‘साध्य-सत्ता होने पर ही साधन की सत्ता का होना' – यह व्याप्ति है, ऐसी व्याप्ति न होने पर भी अवभासनजन्य किसी अनुमान में अपने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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