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________________ ३४४ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ इत्येवमप्यवक्तव्यः । न चैतत्त(चैवम/चैकान्त)तोऽवाच्या, अनेकान्तपक्षे तु कथञ्चिदवाच्य इति न कश्चिद् दोषः।१०। यद्वा व्यञ्जनपर्यायोऽर्थान्तरभूतः तदतद्विषयत्वात्तस्य, घटार्थपर्यायस्त्वन्यत्रावृत्तेनिजः, ताभ्यां प्रथमद्वितीयौ, अभेदेन ताभ्यां निर्देशेऽवक्तव्यः। यतोऽत्रापि यदि व्यञ्जनमनूद्य घटार्थपर्यायविधिः तदा तस्या5 शेषघटात्मकताप्रसक्तिरिति भेदनिबन्धनतद्व्यवहारविलोपः। अथार्थपर्यायमनूध व्यञ्जनपर्यायविधिः, तत्रापि कार्य-कारणव्यतिरेकाभावप्रसक्तिः, सिद्धविशेषानुवादेन घटत्वसामान्यस्य विधाने तस्याऽकार्यत्वात्। एवं च घटस्याभावादवाच्यः। अनेकान्तपक्षे तु युगपदभिधातुमशक्यत्वात् कथंचिदवाच्या सिद्धः।११।। __यद्वा सत्त्वमर्थान्तरभूतम् तस्य विशेषवदेकत्वादनन्वयिरूपता। अत एव न तद्वाच्यमन्त्यविशेषवत् । अन्त्यविशेषस्तु निजः सोप्यवाच्योऽनन्वयात् । प्रत्येकाऽवक्तव्याभ्यां ताभ्यामादिष्टो घटोऽवक्तव्यः। अनेकान्तपक्षे 10 प्रागभावादि का अभाव प्रसक्त होगा। अतः पूर्वोक्त न्याय से (सत् या असत् से भेद का लोप हो जाने के कारण) विशेषण-विशेष्य का लोप हो जाने पर ‘सन् घटः' ऐसा भी वक्तव्य नहीं हो सकेगा, 'असन् घटः' ऐसा भी वक्तव्य न हो पायेगा- आखिर घट अवक्तव्य ठहरेगा। अनेकान्त वाद में सर्वश ऐसा अनिष्ट प्राप्त न होने से कथंचिद् अवाच्य मान सकते हैं।१०। [ व्यञ्जनपर्याय-अर्थपर्याय से पर-स्वरूप से भंगत्रय - ११ ] 15 ११ वाँ प्रकार :- घट का व्यञ्जनपर्याय (घट पदात्मक) पर रूप है क्योंकि वह तद्घट (मिट्टी के घट) विषयक होता है और अतद्घट (धातु के घट) विषयक भी होता है मतलब कि साधारण होता है। घट का अर्थ पर्यायस्वमात्रवृत्ति होने से स्व-रूप है। इन दोनों रूपों से ‘घट सत्' 'घट असत्' ऐसे दो भंग बनेंगे। एक साथ अभेदरूप से दोनों की विवक्षा करने पर अवक्तव्य तीसरा भंग बनेगा। पूर्ववत् (१० वे प्रकार की तरह) यहाँ भी यदि व्यञ्जनपर्याय को उद्देश कर के घट के अर्थपर्याय 20 का विधान करेंगे तो व्यञ्जन-घट में सकलघटार्थपर्यायरूपता प्रसक्त होगी, तथा भिन्न भिन्न धातु-मिट्टी आदि घटों के भेदमूलक व्यवहार का लोप होगा। अब यदि घटार्थपर्याय को उद्देश कर के व्यञ्जन पर्याय का विधान करेंगे ‘घट ही घटशब्द है' - तो कारणकार्यव्यतिरेक सहचार लुप्त होगा क्योंकि कपालादि के बिना भी घटशब्दात्मक घट उत्पन्न होता है एवं ओष्ठ-तालु आदि के बिना भी मिट्टी घट पैदा होता है। परिणाम यह होगा कि सिद्ध विशेषरूप 25 मिट्टीस्वरूप घट का अनुवाद कर के व्यञ्जनपर्यायात्मक घटत्व सामान्य का विधान करने पर घट मात्र सामान्यरूप बन जायेगा, सामान्य तो नित्य होने से घट में अकार्यत्व प्रसक्त होगा। अकार्यरूप बन जाने से अवाच्य हो जायेगा (खर-विषाण की तरह ।) अनेकान्तवाद में तो पृथक् पृथक् प्रतिपादन से वाच्य होने पर भी एक साथ वाच्य न होने से, कथंचिद् अवाच्यत्व सिद्ध हो जाता है ।११। [दो अवाच्यों से स्व-पर-रूप से अङ्गत्रय - १२ ] 30 १२ वा प्रकार :- सत्त्व घट का पररूप है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का सत्त्व पृथक् पृथक् होता है जैसे विशेष । पृथक् सत्त्व अन्वयी यानी अनुगत (= साधारण) नहीं होता। अत एव वह शब्दवाच्य भी नहीं होता जैसे विशेष । शब्दवाच्य वही धर्म होता है जो अनेक में अनुगत हो। अन्त्य विशेष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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