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________________ ३४० सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ इति प्रथम-द्वितीयौ, ताभ्यां युगपदभिधातुमशक्तेरवाच्यः। विवक्षितसंस्थानादिनेव यदीतरेणापि घटः स्याद् एकस्य सर्वघटात्मकत्वप्रसक्तिः। अथ विवक्षितेनाप्यघटः पटादाविव घटार्थिनस्तत्राप्यप्रवृत्तिप्रसक्तिः। एकान्ताभ्युपगमेऽपि तथाभूतस्य प्रमाणाऽविषयत्वतोऽसत्त्वादवाच्यः ।३। ___ यदि वा स्वीकृतप्रतिनियतसंस्थानादौ मध्यावस्था निजं रूपम्, कुशूल-कपालादिलक्षणे पूर्वोत्तरावस्थे 5 अर्थान्तररूपम् ताभ्यां सदसत्त्वं प्रथम-द्वितीयौ। युगपत् ताभ्यामभिधातुमसामर्थ्याद् अवाच्यलक्षणस्तृतीयो भङ्गः। तथाहि- मध्यावस्थावदितरावस्थाभ्यामपि यदि घटः स्यात् तस्य अनाद्यनन्तत्वप्रसक्तिः। अथ मध्यावस्थारूपेणाप्यघटः सर्वदा घटाभावप्रसक्तिः । एकान्तररूपत्वेऽप्ययमेव प्रसङ्गः इत्यसत्त्वादेवावाच्यः ।४। ___ अथवा तस्मिन्नेव मध्यावस्थास्वरूपे वर्तमानाऽवर्त्तमानक्षणरूपतया सदसत्त्वात् प्रथम-द्वितीयभंगी। ताभ्यां युगपदभिधातुमशक्तेरवाच्यलक्षणस्तृतीयः। तथाहि- यदि वर्त्तमानक्षणवत् पूर्वोत्तरक्षणयोरपि घट: 10 स्यात् वर्तमानक्षणमात्रमेवासो जातः, पूर्वोत्तरयोर्वर्तमानताप्राप्तेः। न च वर्तमानक्षणमात्रमपि पूर्वोत्तरापेक्षस्य अपने अपने आकार से नामादिरूप 'सत्' है (आद्य भंग हुआ) और पराये आकारों से वह 'असत्' हैं (दूसरा भंग हुआ)। दोनों मिल कर एक साथ घट प्रतिपादन न कर सकने से वह अवाच्य है (तीसरा भंग हुआ)। यहाँ भी पूर्ववत् सोचना है कि नामादि घट विवक्षित संस्थान (= आकार) से 'सत्' है ऐसे यदि अन्य संस्थानों से भी 'सत्' होगा तो एक ही घट में सर्व घटा(कारा)त्मकत्व प्रसक्त 15 होगा। अन्य आकारों से 'असत्' घट यदि स्वाकार से भी असत् (यानी अघट) होगा तो जैसे पटादि में घटार्थी की प्रवृत्ति नहीं होती वैसे घट में भी घटार्थी की प्रवृत्ति शून्य हो जायेगी। यदि एकान्ततः निरपेक्ष आकारों से सत्त्व-असत्त्व माना जायेगा तो वैसा घटादि प्रमाणसिद्ध न होने से, असत् बन जाने से, आखिर वह अवाच्य बनेगा ।।३।।। [ मध्य-पूर्वोत्तरावस्थाभेद से तीन भंग - ४ ] 20 और एक नया भेद :- एक बार घट का पृथु-बुध्नाकार स्वीकार लिया, वह है मध्यावस्था, यह घट का स्व-रूप है, पूर्वावस्था कुशूल एवं उत्तरावस्था कपाल (ठीकरा) यह पररूप है। इन रूपों से 'सत्' और 'असत्' क्रमशः दो भंग हुए। दोनों रूपों से एक साथ प्रतिपादन अशक्य होने से अवाच्यता तीसरा भंग आयेगा। भावना :- मध्यावस्था की तरह घट यदि अन्य अवस्थाद्वय से भी 'सत्' माना जाय तो पूर्व-पूर्व उत्तरोत्तर समस्त अवस्थाओं में 'सत्' घट अनादि-अनन्त हो जायेगा। एवं यदि 25 पूर्वोत्तरावस्था की तरह घट मध्यावस्था में भी असत् होगा तो सदा काल घट का अभाव अचल रह जायेगा। एकान्त सत् या असत् मानने पर भी यही समस्या खडी रहेगी, फलतः असत्त्व प्रसक्त होने पर ‘अवाच्यता' लब्धावकाश है।४ । अन्य तरह से भङ्गत्रय :- घट की मध्यावस्था में भी वह वर्त्तमानक्षण में 'सत्' होता है (प्रथम भंग), पूर्वोत्तरक्षण के रूप में तो 'असत्' होता है (द्वितीय भंग)। एक साथ उक्त प्रकारों से सत्त्व30 असत्त्व की विवक्षा रखने पर प्रतिपादन शक्य न होने से घट अवक्तव्य है - यह तीसरा भंग हुआ स्पष्टता :- वर्तमानक्षण की तरह यदि घट पूर्वोत्तरक्षण में भी 'सत्' माना जाय तो वर्तमान के साथ पूर्वोत्तरक्षण का भी ऐक्य हो जाने से घट वर्त्तमानक्षणमात्ररूप बना रहेगा, पूर्वोत्तरक्षणों का ही लोप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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