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________________ ३३२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ पर्यायैरनेकः ।।३२।। यथा पुरुषस्तथा सर्वं वस्त्वेकमनेकं वा, सर्वस्य तथैवोपलब्धः अन्यथाभ्युपगमे एकान्तरूपमपि तन्न भवेदिति दर्शयन्नाह(मूलम्-) अथित्ति णिव्वियप्पं पुरिसं जो भणइ पुरिसकालम्मि। स बालाइवियप्पं न लहइ तुल्लं व पावेज्जा ।।३३।। इति ‘अस्ति' इति = एवं निर्विकल्पं = निष्कान्ताशेषभेदस्वरूपं पुरुषम् एकरूपं पुरुषद्रव्यम् यो ब्रवीति पुरुषकाले = पुरुषोत्पत्तिक्षण एव असौ बालादिभेदं न लभते बालादिभेदरूपतया नासौ स्वयमेव व्यवस्थिति प्राप्नुयात् । नापि तद्रूपतयाऽपरमसौ पश्येत् । एवं चाभेदरूपमेव तत् पुरुषवस्तु प्रसज्येत । तुल्यं वा प्राप्नुयात् - तदप्यभेदरूपं बालादितुल्यतामेवाऽभावरूपतया प्राप्नुयात् भेदाऽप्रतीतावभेदस्याऽप्यप्रतीतेरभाव इति भावः । 10 यद्वा ‘अस्ति' इति = एवं निर्विकल्पम्- निश्चितो विकल्पो भेदो यस्मिन् पुरुषद्रव्ये तद् निर्विकल्पं भेदरूपं पुरुषं तत्स्वरूपलाभकाले भणति असौ बालादिविकल्पं न लभेत तुल्यम् इति द्रव्यतुल्यतामेवासौ कुमारादि पुरुष में दृश्यमान अर्थपर्याय अनन्तसंख्यक होते हैं। इस से यह फलित हुआ कि पुरुष व्यञ्जनपर्याय से एक है और बालादि अर्थपर्यायों से अनेक भी है।।३२ ।। [पुरुष की एकानेकरूपता न मानने पर अनिष्टापत्ति ] 15 पूर्व गाथा में यह कहा कि पुरुष जैसे एकानेक रूप होता है, तथैव सर्व वस्तु भी एकानेकरूप ___ होती है क्योंकि सर्व वस्तु का एकानेकरूप से ही उपलम्भ होता है। उपलम्भ की उपेक्षा कर के एकान्त एकरूप या एकान्त अनेकरूप माना जाय तो उस की एकान्तरूपता घट ही नहीं सकेगी - यह ३३ वीं गाथा में दर्शाते हैं - गाथार्थ :- पुरुषकाल में पुरुष के लिये ‘अस्ति' ऐसा भेदमुक्त वचनप्रयोग करता है वह बालादि 20 भेद का परिचय नहीं पाता, अथवा समानता ही मिलेगी।।३३ ।। व्याख्यार्थ :- दो प्रकार से गाथा की व्याख्या की गयी है। (१) पुरुषकाल में यानी पुरुषजन्म से ले कर मृत्यु तक जो उस के लिये पुरुष...पुरुष ऐसा एकविध पुरुषद्रव्य का ‘अस्ति' = है ऐसा प्रयोग करता है उस के मत में बालादिविविधपर्यायों का निश्चितरूप से परिचयलाभ नहीं हो पायेगा। एकान्तभेदरूपता माननेवाले को बालादि कुछ नहीं दिखायी देगा। अन्ततः वह पुरुष वस्तु एकान्त अभेदरूप 25 ही प्रसक्त होगी। अथवा, एकान्तवाद में वह अभेदरूप भी सुस्थित नहीं हो पायेगा, बालादि-तुल्यता असक्त होगी। मतलब, एकान्तवादी जैसे बालादि का निषेध ध्वनित करता है वैसे अभेदरूप का भी निषेध फलित होगा क्योंकि भेद उपलब्ध नहीं होगा तो अभेदप्रतीति का भी अभाव होने से अभेद का अभाव आ पडेगा। जैसे उन्नति-अवनति, एक की प्रतीति के बिना दूसरी प्रतीति नहीं होती। (२) अथवा, निर्विकल्प समास का विग्रह इस तरह करना - निश्चित (सिद्ध) है विकल्प यानी भेद जिस 30 पुरुष द्रव्य में ऐसे निर्विकल्प यानी भेदवाले अर्थात् भेदरूप पुरुष को अपने जन्मादि काल में 'अस्ति' ऐसा ही निर्देश करता है (यानी 'पुरुष' ऐसा विशिष्ट निर्देश ही करता है) उस को पुरुषभिन्न बालादिविकल्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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