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________________ खण्ड - ३, गाथा - ३२ ३११ अतीतानागतवर्त्तमानानन्तार्थ - व्यञ्जनपर्यायात्मके पुरुषवस्तुनि 'पुरुष' इति शब्दो यस्यासौ पुरुषशब्दः तद्वाच्योऽर्थो जन्मादिर्मरणपर्यन्तोऽभिन्न इत्यर्थः ' पुरुषः' इत्यभिन्नाभिधान-प्रत्यय-व्यवहारप्रवृत्तेः तस्यैव बालादयः पर्याययोगाः परिणतिसम्बन्धा बहुविकल्पा अनेकभेदाः प्रतिक्षणसूक्ष्मपरिणामान्तर्भूता भवन्ति तत्रैव तथाव्यतिरेकज्ञानोत्पत्तेः । एवं च 'स्यादेकः' इत्यविकल्पः 'स्यादनेकः' इति सविकल्पसिद्धः । अन्यथाभ्युपगमे तदभाव एवेति विपक्षे 'अत्थि त्ति णिव्वियप्पं' ( पृ० ३३३ ) इत्यनन्तरगाथया बाधां दर्शयिष्यति । 5 द्वितीयपातनिकाऽऽयातगाथार्थस्तु - 'पुरुष' वस्तुनि पुरुषध्वनिर्व्यञ्जनपर्यायः, शेषो बालादिधर्मकलापोऽर्थपर्याय इति गाथासमुदायार्थः । । [ वाच्य-वाचकसम्बन्धमीमांसायां वैयाकरणाभिप्रायः ] ननु कोऽयं 'पुरुष' शब्द: कथं वा शब्दोऽर्थस्य पर्याय:, ततोऽत्यन्तभिन्नत्वात् घटस्येव पटः ? सामान्यरूपता) का मूल व्यञ्जनपर्याय है और सविकल्पकत्व ( विशेषरूपता) का आधार अर्थपर्याय है । 10 गाथार्थ :- पुरुष के लिये जन्म से लेकर मरणकालपर्यन्त पुरुषशब्द चलता । उस के बालादि पर्यायवृंद बहुविकल्पशाली हैं ।। ३२ ।। [ पुरुष में व्यञ्जनपर्याय- अर्थपर्याय की स्पष्टता ] एक छोर जिस का इस विग्रह से मृत्यु व्याख्यार्थ :- पुरिसम्मि... इत्यादि सूत्र से उपरोक्त बात कहते हैं बहुव्रीहि समास पद है 'पुरुष' है (वाचक) शब्द जिस का पद से वाच्य समझना । तात्पर्य, पुरुषवाच्य अर्थ पुरुष के नहीं किन्तु जन्म से ले कर मृत्यु पर्यन्त ( मृत्यु है पर्यन्त के बाद भी कुछ काल तक प्रजा में ) प्रवृत्त रहता है। किसी भी अवस्था में उस के लिये 'पुरुष' ऐसा एकविध नाम, 'पुरुष' ऐसी एकविध प्रतीति और 'यह पुरुष' ऐसा लौकिक व्यवहार होते रहते हैं। अतीत-अनागत-वर्त्तमान के अनन्त अर्थ-व्यञ्जनपर्यायों से अभिन्न पुरुषात्मक वस्तु के लिये पुरुष - 20 शब्दप्रयोग होता है, उसी में बालादि पर्याययोग यानी परिणाम नियोजना ( अर्थपर्याय) बहुविकल्पशाली होती है। बहु विकल्प यानी प्रतिपल अनेक प्रकारवाले सूक्ष्म परिणामों का, उस में अन्तर्भाव होता है । कारण :- उसी पुरुष में भिन्न भिन्न बालादि अनेक पर्यायों की उपलब्धि होती है। मतलब, पुरुषादि वस्तु कथंचिद् एक है ( यह सामान्यावगाहि ) अविकल्प प्रकार हुआ । तथा परिणामों के भेद से 'यह अनेक हैं' इस तरह सविकल्प (विशेषावगाहि ) प्रकार हुआ । यदि एकान्ततः 'एक' या 'अनेक' ही माना 25 जाय तो वैसा कोई असंकीर्ण पदार्थ अस्तित्व में नहीं है, फिर भी वैसा मानने का आग्रह करेंगे तो उस में 'अत्थिति णिव्वियप्पं '... इत्यादि आगामी ३३ वीं गाथा ( पृ० ३३३ ) से बाधप्रदर्शन किया जायेगा । जो दूसरी अवतरणिका है उस के मुताबिक गाथार्थ इस प्रकार होगा 'पुरुष' वस्तु के लिये जो 'पुरुष' ऐसा ध्वनि यानी शब्दप्रयोग है वह व्यञ्जन पर्याय है और शेष बाल्यादि धर्मवृंद है वह अर्थपर्याय है ऐसा समुदित गाथार्थ समझना । । ३२ । । [ शब्दस्वरूप मीमांसा - सम्बन्धसमीक्षा - स्फोटचर्चा ] व्याख्याकार यहाँ शब्दस्वरूप एवं उस के अर्थवाचकत्व की विस्तृत मीमांसा का प्रारम्भ करते Jain Educationa International मूल गाथा में जो 'पुरुषशब्द' = अर्थ का, वह अर्थ 'पुरुषशब्द' 15 विषय में कोई एक-दो दिन के लिये ही = For Personal and Private Use Only 30 www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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