SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ __अथ न कारणं निवृत्तेर्हेतुः अधिकरणं वा, किन्तु स्वयमेव न भवति। नन्वत्रापि किं स्वसत्तासमय एव स्वयं न भवति आहोस्विदुत्तरकालमिति विकल्पद्वयानतिक्रान्तिः। यदि प्राक्तनविकल्पः तदा कारणानुत्पत्तिप्रसङ्गः प्रथमक्षण एव निवृत्त्याक्रान्तत्वात्। उत्पत्त्यभावे न निवृत्तिरपि, अनुत्पन्नस्य विनाशाऽसम्भवात् । नापि द्वितीयः, तदा निवृत्तिभवने उत्पन्नाऽनुत्पन्नतया कारण-स्वरूपाभवनयोस्तादात्म्यविरोधात् । यदि हि स्वसत्ताकाले एव न भवेत् तदा भवनाऽभवनयोरविरोधात् 'स्वयमेव भावो न भवेत्' [ ] इति वचो घटेत नान्यथा। न च जन्मानन्तरं भावाभावस्य भावात्मकत्वात् तदव्यतिरिक्त एवाभावः। नन्वेवमपि जन्मानन्तरं ‘स एव न भवति' इत्यनेन अभावस्य भावरूपतैवोक्तेत्युत्तरकालमपि कारणाऽनिवृत्तेस्तथैवोपलब्ध्यादिप्रसङ्गः। भावस्याभावात्मकत्वाद् नायं दोषः इति चेत् ? न, अत्रापि पर्युदासाभावात्मकत्वं भावस्य ? 10 प्रसज्यरूपाभावात्मकत्वं वा ? प्रथमपक्षे स्वरूपपरिहारेण तदात्मकतां प्रतिपद्यते अपरिहारेण वा ? प्रथमपक्षे [ 'कारण स्वयं नहीं होता' - यहाँ विकल्पद्वय का असमाधान ] आशंका :- कारण निवृत्ति का हेतु भी नहीं है, अधिकरण भी नहीं है, निवृत्ति से इतना ही कहना है कि 'कारण स्वयं नहीं होता'। प्रतिकार :- अरे ! यहाँ भी दो विकल्प :- कारण अपनी सत्ता के काल में स्वयं नहीं होता 15 या उत्तरकाल में ? – उत्तर दुष्कर है। प्रथमविकल्प में, प्रथम क्षण में ही 'न भवति' स्वरूप निवृत्ति से गभरा कर कारणोत्पत्ति रुक जायेगी। तथा, जब उत्पत्ति ही नहीं होगी तो निवृत्ति किस की होगी ? अनुत्पन्न का विनाश असम्भव है। दूसरे विकल्प में :- उत्तर काल में कारण का स्वयं अभवन होने का मतलब यह होगा कि कारण और उस का अभवन दोनों का मिलन होगा, उन में कारण उत्पन्न है और अभवन अनुत्पत्तिरूप है, उन दोनों के तादात्म्य का विरोध है, अतः ‘कारण स्वयं नहीं होता' स का वाक्यार्थ असंगत हो जायेगा। हाँ. यदि कारण अपनी सत्ता के काल में नहीं होगा (= अभवन होगा) तब भवन-अभवन का विरोध टल जाता और तब ‘स्वयमेव नहीं होता' इस के वाक्यार्थ की संगति होती, अन्यथा शक्य नहीं। ‘भाव की उत्पत्ति के बाद जो भावाभाव (= निवृत्ति) उत्तरकाल में होता है वह भावात्मक होता है, अभाव तो उस से अलग ही होता है।' ऐसा कहना अयुक्त है क्योंकि इस कथन से तो आपने - भाव की उत्पत्ति के बाद 'वह (उत्तरकाल में) नहीं होता' 25 इस प्रकार से अभाव की भावात्मकता ही प्रदर्शित कर दी, फलतः उत्तरकाल में भी कारणनिवृत्ति ___ न रह पायेगी, अतः उत्तरकाल में भी कारण की उपलब्धि प्रसक्त होगी। [ भाव के पर्युदास-प्रसज्य विकल्पों की चर्चा ] पूर्वपक्ष :- भाव अभावात्मक होता है इसलिये कारणनिवृत्ति काल में कारण की उपलब्धि का अतिप्रसंग निरवकाश है। 30 उत्तरपक्ष :- गलत है। यहाँ भी अभावात्मक से क्या अभिप्रेत है ? भाव की पर्युदासाभावात्मकता या प्रसज्यरूपअभावात्मकता ? प्रथम विकल्प में :- नये दो उपविकल्प हैं - भाव अपने स्वरूप का त्याग करके पर्युदासाभावात्मकत्व को अपनाता है या त्याग किये बिना ? पहले उपविकल्प में :- प्रसज्यनिषेध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy