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________________ खण्ड-३, गाथा-२७ २९१ विरोधः असतोऽधिकरणत्वायोगात् तस्य वस्तुधर्मत्वात्। अथ कारणं निवृत्तेर्नाधिकरणमपि तु तद्धेतुः । न, निवृत्तेरुत्तरकार्यवत् तत्कार्यत्वप्रसङ्गात् तदनभ्युपगमे कारणस्य तद्धेतुत्वप्रतिज्ञाहानिः अकार्यस्य तद्धेतुत्वविरोधात् अविरोधे वन्ध्याया अपि सुतं प्रति हेतुत्वप्रसक्तेः । न च कारणाहेतुकैव कारणनिवृत्तिः, कारणानन्तरभावित्वविरोधात् । न च कारणहेतुका तन्निवृत्तिः, कारणसमानकालं तदुत्पत्तिप्रसङ्गतः प्रथमक्षण एव कारणस्यानुपलब्धिप्रसक्तेः उपलम्भे वा न कदाचित् कारणस्यानुपलब्भिर्भवेत् तन्निवृत्त्याऽविरुद्धत्वात्। 5 न च कारणनिवृत्तिः स्वहेतुका, स्वात्मनि क्रियाविरोधात्। न च निर्हेतुकैव, कारणानन्तरमेव तस्या भावविरोधात् अहेतोर्देशादिनियमाभावात् । सत् है या असत् है - बोलो ! सत् है तो कारण का विनाश अघटित होगा, क्योंकि आधेयरूप निवृत्ति के साथ कारणात्मक आधार का कोई विरोध नहीं रहा क्योंकि कारण निवृत्तिकाल में भी सत् है। यदि विरोध होगा तो कारण और उस की निवृत्ति में समकालीनता नहीं रहेगी। असत् है तो 10 अधिकरणता के साथ विरोध होगा, क्योंकि जो (कारण) असत् है वह किसी का (निवृत्ति का) आधार नहीं बन सकता। आधारता सद् वस्तु का धर्म होता है असत् का नहीं। [कारण और निवृत्ति के आधार-आधेयभाव की असंगति ] ____ यदि कहें कि हम कारण को निवृत्ति का आधार नहीं मानते, निवृत्ति का हेतु मानते हैं। - तो यह भी निषेधपात्र है क्योंकि जैसे मिट्टी का उत्तर कार्य होता है घट वैसे निवृत्ति (= असत्) 15 को उस कारण का (मिट्टीपिण्ड) कार्य मानने की आपत्ति होगी। कार्य मानने का निषेध करेंगे तो कारण में निवृत्ति की हेतुता के निरूपण को हानि पहुँचेगी, क्योंकि जो (वन्ध्यापुत्र) कार्य नहीं होता, उस की हेतुता किसी में (वन्ध्या में) स्वीकारने पर विरोध प्रसक्त होगा। यदि विरोध नहीं मानेंगे तो वन्ध्या में भी पुत्रोत्पत्ति की हेतुता माननी पडेगी। यदि कहें कि हम कारणनिवृत्ति को कारणहेतुक नहीं मानते - अरे तब तो कारण के उत्तर काल में ही निवृत्ति होती है इस तथ्य का विरोध प्रसक्त 20 होगा। (यहाँ 'न च कारणहेतुका' पाठ के बदले जो 'न च कारणकारणहेतुका' ऐसा पाठ है वह ठीक अँचता है -) यदि कारण के कारण से (उत्तर) कारण की निवृत्ति मानेंगे तो पूर्व कारण से जब उत्तरकारण उत्पन्न होगा उसके साथ ही कारणनिवृत्ति भी पूर्वकारण से उत्पन्न होगी, फलतः उस काल में निवृत्ति के साथ विरोध होने से प्रथम क्षण में ही उत्तर कारण की उपलब्धि ही रुक जायेगी। यदि नहीं रुकती यानी उपलब्धि होगी - तब तो मानना पडेगा कि उस को रोकनेवाला 25 कोई न होने से सदा काल (उत्तर) कारण की उपलब्धि चलती ही रहेगी क्योंकि निवृत्ति के साथ उस का कोई विरोध नहीं है। यदि कहें कि कारणनिवृत्ति कारणहेतुक या अन्यहेतुक या अहेतुक नहीं है किन्तु स्वयं स्व की हेतु है - तो वह ठीक नहीं, क्योंकि अपने में अपने उत्पादन का व्यापार मानना विरोधग्रस्त है। सुशिक्षित नट भी अपने खन्धे पर आरोहण नहीं कर सकता। यदि निर्हेतुक ही मानेंगे तो वह कभी भी या सदा के लिये हो सकती है, कारण के उत्तर काल में ही उस के 30 उद्भव में स्पष्ट विरोध होगा क्योंकि निर्हेतुक वस्तु में (गगनादि में) नियत देश-कालादि का कोई नियम नहीं होता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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