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________________ खण्ड - ३, गाथा - १२ २५१ स्थूलावभासः, सञ्चितेष्वपि तेषु प्रत्येकं समुदितेषु वा स्थूलरूपतायाः परेणानभ्युपगमात्, सञ्चयस्य च वस्तुरूपस्यैकस्य द्रव्यपक्षोक्तदोषप्रसक्तितोऽनिष्टेः । न चाऽन्यथावभासोऽन्यथाभूतार्थव्यवस्थापकः अतिप्रसक्तेः । तन्नालंबनप्रत्ययतया परमाणवः स्थूलावभासजनकाः तत्र स्वरूपानर्पकत्वेनाऽप्रतिभासनात् । स्थूलाकारस्य वा तेष्वनुस्यूतज्ञानावभासिनो भावेऽनुगतव्यावृत्तहेतुफलरूपभावाभ्युपगमात् परवादाभ्युपगमप्रसक्तिः । यदि च स्तम्भादिप्रतिभासो मिथ्या तर्हि 'अतथाभूते तथाभूतारोपणं मिथ्या' इत्यन्यथाभूतवस्तुसद्भावावेदकं 5 प्रमाणं वक्तव्यम्। तच्च न प्रत्यक्षम् उक्तोत्तरत्वात् । नाप्यनुमानम् क्षणिक- परस्परविविक्तपरमाणुस्वभावभावकार्याऽदर्शनात् स्थूलैकस्वभावस्य चोपलभ्यमानस्य न तत्कार्यत्वम्, तस्याऽवस्तुसत्त्वेन परैरभ्युपगमात् । न चाऽवस्तुसत् कस्यचिद् व्यवस्थापकम् अतिप्रसङ्गात् । वस्तुसत्त्वेऽपि न तस्य क्षणिकविविक्तपरमाणुव्यवस्थापकत्वम् तस्य तद्विरुद्धत्वात् । न हि पावकप्रतिभासो जलव्यवस्थापकत्वेन प्रसिद्धः । का प्रयोजक नहीं कह सकते, क्योंकि वैसा कोई परमाणु अवभास प्रमाणसिद्ध नहीं है। असंवेद्यमान 10 परमाणु-अवभास को प्रमाण या मिथ्या नहीं बता सकते क्योंकि प्रामाण्य / अप्रामाण्य प्रतीतिधर्म है, परमाणु प्रतीत ही नहीं है तो उस के प्रामाण्य की चर्चा ही कैसे ? [ स्थूलावभास समुदितपरमाणुमूलक नहीं है ] यदि अनुगत स्थूलावभास को परमाणुसञ्चयमूलक बताया जाय तो वह जूठा है क्योंकि स्थूलरूपता न तो सञ्चित एकैक परमाणु में आप को स्वीकार्य है न तो समुदितपरमाणुवृन्द में, फिर स्थूलरूपता 15 का बोध होगा ही कैसे ? यदि आप परमाणुसञ्चय को एक वस्तुरूप मान लेंगे तो स्थूल - एकद्रव्य वाद पक्ष में आपने जो दोषारोपण किया है वह सब अब आप के पक्ष में प्रसक्त होगा जो आप को इष्ट नहीं है । एकप्रकार का बोध अन्य प्रकार के अर्थ का निश्चायक नहीं बन सकता, अन्यथा अश्व का बोध गधे का निश्चायक हो जायेगा यह अतिप्रसंग होगा। फलितार्थ :- परमाणु स्वविषय प्रतीतिमात्र से स्थूलाकार बोध का कारण नहीं हो सकते क्योंकि वे (परमाणु) बोध में अपने आकार 20 का (स्थूलाकार का) अर्पण करते हो ऐसा दिखता नहीं है। यदि आप मान लेंगे कि परमाणु में, अनुगताकार ज्ञान में भासमान स्थूलाकार की वास्तविक सत्ता है, तब तो अनुगताकारबोध जो कारण है और व्यावृत्ताकार बोध जो फल है इस हेतु-फल भाव का स्वीकार कर लेने पर प्रतिवादीमत का स्वीकार ही गले पडेगा । - Jain Educationa International - [ स्थूल - एक स्तम्भादि के प्रतिभास में मिथ्यात्व अप्रमाण ] स्थायित्ववादी उत्पाद-व्ययवादी को पूछता है क्या स्तम्भादि प्रतिभास मिथ्या है ? मिथ्या की व्याख्या है अतथाभूत (शुक्ति आदि) में तथाभूत ( रजनादि) का आरोपज्ञान । यदि स्तम्भादि भान मिथ्या है तो वह 'अतथाभूतवस्तुसत्' हो ऐसा घोषित करनेवाला प्रमाण दिखाना चाहिये। वह प्रमाण प्रत्यक्ष हो सकता है ? नहीं, पहले ही उस का कारण कह दिया है। क्या अनुमान है ? नहीं, विधिसाधक अनुमान स्वभावलिंगक या कार्यलिंगक होता है, यहाँ स्तम्भादि वस्तु में क्षणिक परस्पर भिन्न परमाणु 30 स्वभाव रूप लिंग का अथवा वैसे तथाविध परमाणु के किसी कार्य लिंग का उपलम्भ है नहीं । क्या स्थूल- एक उपलभ्यमान ( स्तम्भादि) उन परमाणुओं का कार्य लिंग है ? नहीं, क्षणिक वाद में स्थूल For Personal and Private Use Only 25 www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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