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________________ २४८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ (मूलम्-) उप(प्प)ज्जंति वियंति य भावा नियमेण पज्जवणयस्स। दव्वट्ठिअस्स सव्वं सया अणुप्पन्नमविणटुं ।।११।। उत्पद्यन्ते = प्रागभूत्वा भवन्ति विशेषेण निरन्वयरूपतया गच्छन्ति = नाशमनुभवन्ति भावाः = पदार्थाः – नियमेन इत्यवधारणे पर्यायनयस्य मतेन - प्रतिक्षणमुत्पाद-विनाशस्वभावा एव भावाः पर्याय5 नयस्याभिमताः। द्रव्यार्थिकस्य सर्वं वस्तु सदा अनुत्पन्नमविनष्टम् आकालं स्थितिस्वभावमेवेति मतम् । एतच्च नयद्वयस्याभिमतं वस्तु प्राक् प्रतिपादितमिति न पुनरुच्यते ।।११।। परस्परनिरपेक्षं चोभयनयप्रदर्शितं वस्तु प्रमाणाभावतो न सम्भवतीत्याह(मूलम्) दव्वं पज्जवविउयं दव्वविउत्ता य पज्जवा णत्थि। उप्पाय-ट्ठिइ-भंगा हंदि दवियलक्खणं एयं ।।१२।। 10 दव्वं पर्यायवियुक्तं नास्ति मृत्पिण्ड-स्थास-कोश-कुशूलाद्यनुगतमृत्सामान्यप्रतीतेः। द्रव्यविरहिताश्च पर्यायाः न सन्ति अनुगतैकाकारमृत्सामान्यानुविद्धतया मृत्पिण्ड-स्थास-कोश-कुशूलादीनां विशेषाणां प्रतिपत्तेः। अतो द्रव्यार्थिकाभिमतं वस्तु पर्यायाक्रान्तमेव न तद्विविक्तम, पर्यायाभिमतमपि द्रव्यार्थानुषक्तं न तद्विकलम परस्परविविक्तयोः कदाचिदप्यप्रतिभासनात् । किंभूतं पुनर्द्रव्यमस्तीत्याह – उत्पाद-स्थिति-भङ्गा यथाव्यावर्णित गाथार्थ :- पर्यायनय में नियमतः भावों का उत्पत्ति-व्यय चलता है। द्रव्यार्थिक नय में हरहमेश , 15 सब कुछ उत्पत्तिविनाशरहित है ।।११।। व्याख्यार्थ :- पर्यायनय अभिमत पदार्थ नियमतः (अवश्य) उत्पन्न होते हैं यानी पूर्व में न हो कर वर्तमान में होते हैं तथा विशेषरूप से यानी निरन्वय (बिना कारण) चले जाते हैं, नाश का अनुभव करते हैं। मतलब भाव क्षण-क्षण में उत्पत्ति-विनाशधर्मी होते हैं। द्रव्यार्थिक मत में सर्व वस्तु सदा के लिये अनुत्पन्न अविनष्ट होती है, सर्वकाल में स्थिर स्वभाव होती है।।११।।। [ द्रव्य का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रुवता ] अवतरणिका :- दो नय के द्वारा निरूपित वस्तु परस्परनिरपेक्ष नहीं हो सकती, परस्परनिरपेक्ष होने पर उस का साधक कोई प्रमाण न होने से एकान्त वस्तु की संगति नहीं हो सकती यह तथ्य १२ वी गाथा से कहते हैं - गाथार्थ :- पर्यायविहीन द्रव्य नहीं होता, पर्याय द्रव्यविहीन नहीं होता। उत्पाद-स्थिति-व्यय यह 25 द्रव्य का सही लक्षण है।।१२।। ___ व्याख्यार्थ :- द्रव्य कभी पर्यायमुक्त नहीं हो सकता, मिट्टी-तास-कोश-कुशूल इत्यादि विशेषों में मिट्टी समानरूप से प्रतीत होती है। पर्याय कभी द्रव्यरहित नहीं रह सकते । सर्व में अन्तर्भूत एकाकार मिट्टीरूप सामान्य से अनुविद्ध हो कर ही मिट्टी-तास-कोश-कुशूल आदि विशेषरूपों की प्रतीति होती है। सारांश, द्रव्यार्थिकमान्य (द्रव्य) वस्तु पर्यायानुषक्त ही होती है, पर्यायरहित नहीं होती, एवं पर्यायास्तिकमान्य 30 (पर्याय) वस्तु द्रव्यरूप अर्थ से अनुविद्ध ही होती है, उस से रहित नहीं, कभी भी द्रव्य-पर्याय एक दूसरे से पृथक् भासित नहीं होती। 'द्रव्य का स्वरूप कैसा है' – इस प्रश्न के उत्तर में उत्तरार्ध में कहते हैं - परस्पर अपृथग्भाव से रहने वाले उत्पाद-स्थिति-व्यय – जिन का स्वरूप पहले कहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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