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________________ खण्ड-३, गाथा-१० २४७ कथं पर्यायास्तिक-द्रव्यास्तिकाभ्यां प्रतिक्षेप इति वक्तव्यम्, यतः प्रतिभासोऽप्रतिभासस्य बाधकः न तु मिथ्यात्वस्य, मिथ्यारूपस्यापि प्रतिभासनात् । तथाहि, पर्यायास्तिकः प्राह – न मया द्रव्यप्रतिभासो निषिध्यते तस्यानुभूयमानत्वात्, किन्तु विशेषव्यतिरेकेण द्रव्यस्याऽप्रतिभासनात् अव्यतिरेके तु व्यक्तिस्वरूपवत् तस्यानन्वयात् उभयरूपतायाश्चैकत्र विरोधात् गत्यन्तराभावात् द्रव्यप्रतिभासस्तत्र मिथ्यैव। विशेषप्रतिभासस्त्वन्यथा, बाधकाभावात् । यतः प्रतिक्षणं वस्तुनो निवृत्ते शोत्पादौ पर्यायलक्षणं न स्थितिः । द्रव्यार्थिकस्तु भजनोत्थापित- 5 स्वरूपः प्राह- अस्माकमप्ययमेवाभ्युपगमः न विशेषप्रतिभासप्रतिक्षेपः किन्तु तस्य भेदाभेदोभयविकल्पैर्बाध्यमानत्वाद् मिथ्यारूपतैव अभेदप्रतिभासस्तु अनुत्पादव्ययलक्षणस्य द्रव्यस्य तद्विषयस्य सर्वदाऽवस्थितेरबाध्यमानत्वात् सत्य इति ।।१०।। [ उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ये नयद्वयस्य स्वस्वाभ्युपगमः ] कल्पनाव्यवस्थापितपर्यायास्तिक-द्रव्यास्तिकयोरेवंलक्षणप्रदर्शितस्वरूपयोमिथ्यारूपताप्रतिपत्तिः सुकरा 10 भविष्यतीत्याह शंका :- परीक्षक को द्रव्य एवं पर्याय दोनों का प्रतिभास होता है, तब क्रमशः पर्यायास्तिक और द्रव्यास्तिक कैसे उन का अपलाप कर सकता है ? उत्तर :- प्रश्न अयोग्य है, प्रतिभास/अप्रतिभास अन्योन्य विरुद्ध है अतः प्रतिभास बाध करेगा तो अप्रतिभास का बाध करेगा, लेकिन द्रव्य या पर्याय के मिथ्यात्व का बाध कैसे करेगा ? प्रतिभास तो 15 मिथ्यारूप का भी होता है। देखिये - (दोनों नय एक दूसरे का विरोध कैसे करते हैं यह दैखिये-) पर्यायास्तिक बोलता है - मैं द्रव्यप्रतिभास का इनकार नहीं करता क्योंकि द्रव्यप्रतिभास तो अनुभवगोचर जरूर है, सिर्फ बात यह है कि विशेष से पृथक् द्रव्य का स्वतन्त्र प्रतिभास नहीं होता। यदि अपृथग्रूप से व्यक्तिस्वरूप जैसे व्यक्ति के साथ भासित होता है ऐसे यदि द्रव्य भी अपृथक् रूप से पर्याय के साथ भासित होगा तो मुसीबत यह होगी कि प्रमाणसिद्ध पर्यायों के साथ उस का अन्वय 20 (मेल) तो नहीं हो पायेगा, एक वस्तु में विरुद्ध उभयरूपता भी स्वीकारार्ह नहीं है, आखिर अन्य गति न होने से द्रव्यप्रतिभास को मिथ्या ही करार देना पडेगा। विशेष (पर्याय) प्रतिभास को मिथ्या नहीं कह सकते क्योंकि उस का कोई बाधक नहीं है, क्योंकि क्षण-क्षण वस्तु की जो निवृत्ति दिखती है वह सिद्ध करती है कि उत्पत्ति-विनाश पर्याय ही वस्तु का स्वरूप है स्थिति नहीं। भजना जब द्रव्यास्तिक को स्वरूपपृच्छा करती है तो वह कहता है – हमारा भी तुल्यरूप से यही अभिगम है - हम भी 25 विशेषप्रतिभास का इनकार नहीं करते किन्तु विशेष के प्रति द्रव्यभिन्न/द्रव्यअभिन्न विकल्प लगाने पर वह बाधित हो जाता है अतः पर्यायप्रतिभास मिथ्या ही है। अतः उत्पत्ति-व्ययरहित स्थितिरूप अभेद का प्रतिभास तो सत्य ही है क्योंकि उस के विषयभूत द्रव्य की स्थिरता में कोई बाधापादन है नहीं।।१०।। [उत्पत्ति-व्यय-स्थिति के बारे में नयद्रय का अभिप्राय 1 द्रव्यास्तिक-पर्यायास्तिक का विभाग तो कल्पनाप्रेरित है और तथाविध अपने अपने लक्षणों के 30 द्वारा उन का स्वरूप प्रदर्शित किया गया है, उस के आधार पर उन की मिथ्यारूपता की प्रतीति सरलता से हो सकेगी - इस आशय से गाथा ११ में कहते हैं - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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