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________________ खण्ड-३, गाथा-६ २२७ स्वभावमेकसामग्रीजन्यं ज्ञानं सम्भवति पराभ्युपगमेन निराकारत्वेन तस्य विषयसंवेदनत्वानुपपत्तेः। तस्मान्नैकमनेकजन्यमिति स्थितम् । नापि पूर्वसामग्रीत उत्तरा सामग्री प्रभवतीति बौद्धाभ्युपगमात् अनेकमनेकमुत्पादयतीति वक्तव्यम्, यतः कारणायत्तः कार्याणां स्वभावः, अन्यथा निर्हेतुकत्वं तस्य स्यात् । पूर्वसामग्री च सर्वेषां सामग्र्यन्तर्भूतानां समग्राऽजनकत्वेन व्यवस्थितेति कथं कार्यविशेषस्य सामग्र्यन्तर्गतस्यैकस्वभावता ? एवं च रूपस्य ज्ञान- 5 रूपतापत्ति नजन्यत्वात् ज्ञानस्वरूपवत्, ज्ञानस्यापि रूपस्वरूपतापत्ति: रूपजन्यत्वात् रूपस्वरूपवत् - इत्यनेकत्वव्याघातः । न वा किञ्चित् रूपम् प्रतिनियतस्वरूपाभावात् । अथाऽवान्तरकारणसामग्रीविशेषसम्भवात् तज्जन्यस्य कारणभेदादेव स्वभावनानात्वमिति नायं दोषः । तथाहि- चक्षुरूपालोकमनस्कारादिषु विज्ञानादिकार्योत्पादकेषु मनस्कारो विज्ञानमुपादानत्वेन जनयति शेषकार्याणि सहकारित्वेन, एवं रूपादिकमपि रूपादिकार्यमुपादानत्वेन शेषाणि सहकारित्वेनेत्यवान्तरसामग्रीभेदेन सिद्धः तज्जन्यानां स्वभावभेदः । नन्वत्रापि 10 की तरह इन दोनों में अभेद नहीं हो सकता। तथा एकसामग्री(= अनेक)जन्य ज्ञान अभेदानुविद्ध निराकारस्वरूप नहीं हो सकता, क्योंकि यदि विज्ञानवादीबौद्ध कथनानुसार वह निराकार (और एकरूप) होगा तो निराकार होने से साकार विषय का संवेदी वह नहीं हो सकेगा। (ज्ञान तो साकार ही संविदित होता है। अतः एक के जनक अनेक नहीं हो सकते - यह सार निकला। [अनेक से अनेक की उत्पत्ति - चतुर्थविकल्प निरसन ] __ अनेक से अनेक की उत्पत्ति यह विकल्प भी मिथ्या है क्योंकि बौद्ध विद्वान् तो पूर्व सामग्री से उत्तर सामग्री की उत्पत्ति को मानते हैं। कारण यह है कि कार्यों के स्वभाव का मूल, कारण होता है। अन्यथा कार्यस्वभाव को निर्हेतुक मानना पडेगा। कारणीभूत पूर्व सामग्री, सामग्रीअन्तर्भूत समस्त भावों के समग्रस्वरूप से समग्र कार्यों की जनक नहीं होती यह निर्विवाद है, तो सामग्री-अन्तर्भूत कार्यविशेष की एकस्वभावता कैसे हो सकती है ? फलतः पदार्थरूप और ज्ञान में अन्योन्य सांकर्य इस तरह 20 प्रसक्त होगा - ज्ञान जन्य होने से ज्ञानस्वरूप की तरह पदार्थरूप में ज्ञानस्वरूपता प्रसक्त होगी, तथा ज्ञान में पदार्थरूपजन्यता होने से पदार्थस्वरूप की तरह पदार्थरूपता (नीलादिविषयरूपता) प्रसक्त होगी, इस प्रकार कारण-कार्य (विषय और ज्ञान) में एकरूपता प्रसक्त होने पर अनेकत्व को व्याघात पहुँचेगा। अथवा नियत एकस्वरूपता न होने से पदार्थमात्र नीलरूप ही मान लेना पडेगा। [कारणभेद से कार्य में भी अनेक स्वभाव की शंका और उत्तर ] शंका :- दीपक-प्रकाशादि जनक एक तैलादि सामग्री में मषी, वतिहास आदि की जनक अवान्तर अनेक विशष्ट सामग्री अन्तर्भूत होती है, अतः उस सामग्री से जन्य कार्य कारणभेदाधीन विविध स्वभाव युक्त हो सकता है, कोई पूर्वोक्त दोष अब रहता नहीं। देखिये - विज्ञानादि कार्य के जनक चक्षु है रूप है आलोक है मनस् है - तो इस में मन विज्ञानजनक है क्योंकि वह उपादान है, विज्ञान के उपरांत जो भी वचनादि कार्य हैं उस में मन उपादान नहीं किन्तु सहकारी होता है। इसी तरह 30 रूपादि भी रूपादि कार्य के उपादानतया कारण होते हैं, शेष ज्ञानादि कार्यों के प्रति सहकारितया । इस तरह अवान्तर सामग्री भेद से, सामग्रीजन्य कार्य में स्वभाव भेद सिद्ध होता है। __15 25 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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