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________________ खण्ड-३, गाथा-६ २२५ तु तत्कल्पने अतिप्रसक्तिरित्युक्तमिति नार्थक्रियाभेदात् कारणभेदः अन्यभेदस्याऽन्याभेदकत्वात् । किञ्च, यदि नाम क्रम-योगपद्याभ्यां नित्यादर्थक्रिया व्यावृत्ता तथापि न ततः क्षणक्षयसिद्धिः । तथाहि- यथैषाऽक्षणिकेभ्यो व्यावृत्तत्वात् क्षणिकत्वं साधयति तथा क्षणिकेभ्योऽपि व्यावृत्तत्वादक्षणिकतां साधयेत् । न च क्षणिकेभ्योऽस्या अव्यावृत्तिः, यतः क्षणिका अपि कार्यमुत्पादयन्तः किं केवला एकमुत्पादयन्ति, उतानेकम् ? तथा समुदिता अपि तदेकमनेकं वा ? न तावदेक एकमुत्पादयत्यनभ्युपगमात् अदर्शनाच्च । 5 तथाहि- एक एवाऽग्निः इन्धनविकार-धूम-भस्मादिकमनेकं कार्यमुत्पादयन्नुपलभ्यत इति नैक एकमेव जनयतीति नियमः, 'न वै किञ्चिदेकं जनकम्' [ ] इत्यभ्युपगमविरोधश्चैकस्यैकजनकत्वे। 'नाप्येकमनेकोत्पादकम् सामग्र्या एव जनकत्वाभ्युपगमात्, अनेकस्मात् कार्योत्पत्त्युपलब्धेश्च। नाप्यनेकमेकोत्पादकम् कार्यस्यानेकस्मादुपजायमानस्य नानात्वापत्तेः । न हि विज्ञानवाद्यभ्युपगतकार्यव्यतिरेकेण बाह्यं वस्तु सामग्रीत: उपजायमानं विज्ञानं वा एकं भवति। सौत्रान्तिक-वैभाषिकमतेन सञ्चितेभ्यः परमाणुभ्यः सञ्चितानां 10 तेषामुत्पत्तेः सञ्चितपरमाणुव्यतिरेकेणाऽपरस्य भिन्नस्याऽभिन्नस्य वा सञ्चयस्य वस्तुसतोऽभावात् । यस्य होता, क्योंकि एक का (कपालादि का) भेद अन्य (तन्तु आदि) के भेद का कारक नहीं बन सकता । [क्षणिकत्व के साथ अर्थक्रिया की असंगति ] और एक बात :- यदि नित्य वस्तु में क्रमिक/एकसाथ अर्थक्रिया-संगति नहीं होती, तथापि इतने मात्र से क्षणिकत्व की सिद्धि किस तरह हो गयी ? देखिये- अक्षणिक वस्तु में जैसे अर्थक्रिया नहीं 15 घटती इसलिये आप क्षणिकत्वसिद्धि की आशा रखते हैं, इसी तरह क्षणिक वस्तु में वह न घटने से अक्षणिकत्व की सिद्धि भी हो सकती है। 'क्षणिकों में वह घटती है' ऐसा है नहीं। कारण :- प्रश्न - क्षणिक भावों १क्या केवल (यानी एक भाव) स्वयं ही एक कार्य को उत्पन्न करते हैं ? या २अनेक ? क्या समदित (अनेक) हो कर एक कार्य को उत्पन्न करते हैं या ४अनेक कार्य को ? किसी १एकमात्र व्यक्ति से एक कार्य की उत्पत्ति मान्य नहीं है क्योंकि वैसा कभी देखा नहीं। देखो- 20 एक ही अग्नि इन्धन का रूपान्तर, धूम्र, भस्म आदि अनेक कार्यों को उत्पन्न करते हुए दिखते हैं अतः 'एक व्यक्ति से एक कार्य का उत्पाद' ऐसा नियम नहीं बना सकते, क्योंकि “कोइ एकउत्पादक नहीं" [ ] आप की इस मान्यता का ‘एक से एक का जनन' मानने पर विरोध प्रसक्त होगा। [ दूसरे-तीसरे विकल्पों का निरसन ] २एक से अनेक की उत्पत्ति, ऐसा भी नहीं है, सामग्री ही उत्पादक होती है ऐसी मान्यता होने 25 से एवं कार्य की उत्पत्ति अनेक से ही, दृष्टिगोचर होने से। ३ अनेक से एक की निष्पत्ति' यह तीसरा विकल्प भी योग्य नहीं, क्योंकि अनेक से उत्पन्न कार्यों में भी भेद की आपत्ति होगी। विज्ञानवादी स्वीकृत कार्य के अलावा सामग्री से जायमान वस्तु अथवा विज्ञान एकरूप नहीं हो सकता। तथा सौत्रान्तिक - वैभाषिक बौद्धमतानुसार तो परमाणुपुञ्ज से परमाणुपुञ्ज की ही उत्पत्ति होती है, समुदित परमाणुपुञ्ज को छोड कर भिन्न या अभिन्न अन्य किसी समुदाय (अवयवी) की वास्तव सत्ता नहीं 30 7. न तु स्वोपादानमात्रभावि किञ्चित् कार्यं सम्भवति, सामग्रीतः सर्वस्य सम्भवात् । यथोक्तम् - 'न किञ्चिदेकमेकस्मात् सामग्र्या सर्वसम्भवः ।।' (तत्त्वसं. पञ्चिका पृ.११३ पं.१२) इति भूतपूर्वसम्पादकयुगलम् ।) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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