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________________ गाथा - ६ चित्करत्वात्। अपि च, विजातीयविकल्पोदयेऽपि विशददर्शनस्य प्रतिहतिप्रसक्तिरिति पीताद्यध्यवसायप्रसवे नीलादिकं न प्रतिपन्नं स्यात् । न च विजातीयत्वात् पीतविकल्पो नीलादिदर्शनस्य न प्रतिघातक इति वक्तव्यम्, नित्यताध्यवसायस्यापि क्षणक्षयदर्शनं प्रति प्रतिघातकत्वाऽप्रसक्तेः विजातीयत्वाऽविशेषात् । आकारभेदादेव ह्यन्यत्रापि विजातीयत्वम् तच्च नित्यानित्ययोरपि तुल्यमेव । न च प्रथमोत्पन्नक्षणिकदर्शनसमानाधिकरणतया नित्योल्लेखस्योत्पत्तेः प्रतिघातकत्वं विरुद्धाकारावभासिनोः प्रत्यययोः सामानाधिकरण्या- 5 नुपपत्तेः, अन्यथाऽतिप्रसक्तेः । तन्न सामानाधिकरण्यात् तत्प्रतिहतिरित्यध्यक्षस्वरूपबाधकप्रमाणनिश्चेयो न क्षणक्षय-सत्तयोरविनाभाव इति न सत्तातः क्षणक्षयसिद्धिः । न चानुमानरूपेण बाधकप्रमाणेन क्षणक्षयाऽविनाभूता सत्ताध्यवसीयते, तदनुमानेऽविनाभावस्यान्यानुमानबलात् जफा क्यों नहीं है ? संनिधान तो दोनों ओर एक-सा है। क्षणभंगावभास पहले हुआ है, स्थायित्वाध्यवसाय बाद में, इतने मात्र से पहले को दूसरे की जफा बताना अनुचित है, क्योंकि पूर्वापरभाव यहाँ नियामक 10 न होने से दूसरे को पहले की जफा भी हो सकती है। ऐसा अगर माना जाय कि स्थायित्वाध्यवसाय विजातीय होने से विशददर्शनरूप क्षणभंगसंवेदन का व्याघात करेगा, तो अन्य प्रकार के विजातीय विकल्प से भी विशददर्शन का व्याघात प्रसक्त होगा, उदा० पीतादिअध्यवसाय के उदय से नीलादिप्रतिपत्ति भी रुक जायेगी। यदि कहें कि पीतविकल्प विजातीय होने से नीलादिदर्शन का व्याघातकारि नहीं होगा तो यह ठीक कथन नहीं, हम कहेंगे कि स्थायित्वाध्यवसाय भी क्षणभंगसंवेदन का विजातीय 15 होने से उस का विघातक नहीं होगा, क्योंकि पीतविकल्प और स्थायित्वाध्यवसाय दोनों ही क्रमशः नीलदर्शन और क्षणभंगदर्शन का समानतया विजातीय हैं । यहाँ वैजात्य आखिर है क्या ? आकारभेद, वह तो क्षणभंग और स्थायित्व दोनों में तुल्यतया मौजूद है । [ विरुद्धाकार दो प्रतीतियों का सामानाधिकरण्य नहीं ] - खण्ड - ३, — यदि कहें प्रथमजात क्षणिकतादर्शन के अधिकरण में समानाधिकरणतारूप से स्थायित्वविकल्प 20 उत्पन्न होता है इसलिये वह क्षणिकतादर्शन का सामानाधिकरण्य के कारण विघातक होता है । तो यह जूठा है, क्योंकि ( पहली बात, बौद्धमत में दो ज्ञानक्षणों का कोई एक आत्मादि अधिकरण है नहीं, सन्तान तो काल्पनिक है) यदि ये दो अधिगम विरुद्धाकार हैं तो उन की एक अधिकरणता ही अघटित है, अन्यथा प्रकाश और अन्धकार भी समानाधिकरण होने की मुसीबत आ पडेगी । निष्कर्ष, सामानाधिकरण्यमूलक दर्शनविघात शक्य नहीं है । अत एव स्थायित्वप्रत्यक्षस्वरूप के बाधक ( अनुमान) 25 प्रमाण से सत्त्व - क्षणिकत्व का अविनाभाव उपलब्ध नहीं हो सकता अतः सत्ता हेतु से क्षणभंगसिद्धि T अशक्य है प्रत्यक्ष से अविनाभाव का पता नहीं चल सकता यह प्रथम विकल्प निरस्त हुआ । अनुमानात्मक बाधकप्रमाण से भी सत्ता क्षणभंगाविनाभाविनी होने का पता नहीं चलता । कारण, उस बाधकप्रमाणरूप अनुमान करने के लिये जिस अविनाभाव की जरूर पडेगी उस के लिये अन्य अनुमान करना पडेगा... उस के लिये भी अन्य अन्य अनुमान.. तो इस तरह अनवस्था दोष होगा । 30 Jain Educationa International - २१७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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