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________________ २१६ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ सत्तायास्तदविनाभावमावेदयितुमलम् । न च प्रत्यक्षवपुषि स्फुटमाभाति प्रतिक्षणविशरारुता भावानाम् किन्तु विपरीताध्यवसायोदयात् प्रतिहन्यत इति वक्तव्यम् विहितोत्तरत्वात् प्रागेव। किञ्च, यदि अध्यक्ष प्रतिक्षणमपायमवभासयति भावानाम् किमिति तदनुसारी निश्चयो नोदयमासादयति ? सादृश्यदर्शनात् भ्रान्तेनिश्चयानुदय इति न च वक्तव्यम् सादृश्ये प्रमाणाभावात्। न चाप्रामाणिका सादृश्यपरिकल्पना 5 ज्यायसी। किञ्च, यदि विपरीतनिश्चयोत्पादात् प्रतिक्षणापायप्रतिभासप्रतिहतिरभ्युपगम्यते, नन्वेवं पुरोवर्तिनि स्तम्भादौ विजातीयस्मरणसमये प्रतिभासमाने क्षणक्षयनि सो भवेत् नित्योल्लेखाभावात्। किञ्च, यदि क्षणक्षयावभासि संवेदनं स्थायिताध्यवसायश्च परस्पराऽसंसक्तरूपं प्रत्यक्षद्वयमुदयमासादयति तदा क्षणक्षयावभासस्य न काचित् प्रतिहतिः। न च नित्याध्यवसायसंनिधानमेव तस्य प्रतिहतिः, क्षणक्षयावभासस्यापि नित्याध्यवसायप्रतिघातकत्वप्रसक्तेः, संनिधेरविशेषात्, पूर्वोत्तरकालभावित्वस्याप्यकि 10 का प्रतिभास नहीं होता। क्षणभंगस्वरूप ग्रहण न करनेवाला प्रत्यक्ष सत्ता में क्षणिकता के अविनाभाव का प्रतिपादन कर नहीं सकता। शंका :- प्रत्यक्ष दर्पण में स्पष्ट ही भावों की प्रतिक्षणविनाशित्व का अनुभव होता ही है, किन्तु क्षणिकताविरुद्ध स्थायित्व के अध्यवसाय (निश्चय) उदित होने के कारण उक्त क्षणिकताग्राहि प्रत्यक्ष को व्याघात लग जाता है। उत्तर :- ऐसा नहीं बोलना, क्योंकि पहले ही, प्रत्यक्ष में क्षणिकत्व के प्रतिभास का कोई प्रमाण नहीं... इत्यादि उत्तर दिया जा चुका है। [क्षणिकत्व प्रत्यक्ष के बाद स्थायित्वनिश्चय का उदय क्यों ? ] शंकाकार को यह प्रश्न है कि यदि प्रत्यक्ष प्रतिक्षणविनाशित्व को ग्रहण करता है, उस के अनुसार निश्चय का उदय क्यों नहीं होता - क्यों उस से विपरीत निश्चय उदित होता है ? यदि उत्तर में कहें कि सादृश्यमूलक भ्रान्ति के कारण क्षणिकत्वनिश्चय का उदय नहीं होता - तो पहले सादृश्य को सिद्ध करनेवाला प्रमाण दिखाओ - वह तो है नहीं। निष्प्रमाण सादृश्यकल्पना शोभावर्धक नहीं 20 है। उपरांत, यदि विपरीत अध्यवसाय के उद्भव से आप प्रतिक्षण विनाशप्रतिभास का व्याघात मानते हैं तो व्याघातमुक्त दशा में तो उस का उदय होना चाहिये - मतलब, जब एक ओर भाव के क्षणिकत्व का प्रत्यक्ष हुआ, एवं दूसरी ओर पुरोवर्ति स्तम्भादि के बारे में विसदृश स्मृति का उदय हुआ, यहाँ व्याघातकारक सादृश्य है नहीं, तो इस स्थिति में क्षणभंग का निर्भास = निश्चय हो जाना चाहिये क्योंकि यहाँ सादृश्यमूलक स्थायित्व का उल्लेख नहीं है जिस से कि व्याघातकल्पना की जा सके। 25 [क्षणिकत्वसंवेदन स्थायित्वाध्यवसाय - व्याघात किस को ? ] जब तक व्याघात की बात है तो इतना समझ लो कि अगर एक ओर क्षणिकताद्योतक संवेदन है, दूसरी ओर स्थायिता का निश्चय है, दोनों ही परस्पर असंसृष्ट है - इस प्रकार के दो दो प्रत्यक्ष उदित होते हैं तो इस में क्षणभंगप्रत्यक्ष को कोई जफा नहीं हो सकती। शंका :- जो स्थायित्वाध्यवसाय का संनिधान है वही बडी जफा है। उत्तर :- क्षणभंगावभास के संनिधान से स्थायित्वाध्यवसाय को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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