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________________ १९८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ भावात् - अभावे वा स्वभावनानात्वा (त्) क्षणिकत्वप्रसक्तेः - पुनरपि तावत्कालमवस्थानमनुभूय तेन (न) नंष्टव्यमिति घटादेः कौटस्थ्यप्रसङ्गः । विनाशहेतुस्व (? स्त्व) भावस्याऽकिञ्चित्करतयाऽनपेक्षणीयः । न ह्यसौ भावमेव करोति कृतस्य करणाऽयोगात् । न च भावान्तरं करोति, तत्करणेऽपि भावस्य किं सञ्जातमिति तथोपलब्ध्यादिप्रसङ्गात्। न च तस्य तेन सम्बन्धो येन 'तस्यायं विनाश:' इति व्यपदेशभाग् भवेत्, 5 तयोरुपकार्योपकारकभावाऽभावात् तदभावे च पारमार्थिकसम्बन्धाऽयोगात् । यदि पुनर्भावान्तरं विना स्वयमेव क्रियते, विनाशहेतुवैक ( ? फ ) ल्यम् स्वत एव तस्य तत्करणसमर्थत्वात् अन्यापेक्षाऽनुपपत्तिः, असमर्थत्वेऽन्यसंनिधानेऽपि करणानुपपत्तेर्न भावान्तरमपि विनाशहेतुनिर्वर्त्त्यम् । अभावकरणेऽपि पर्युदासपक्षेऽयमेव दोषः । प्रसज्यपक्षे त्वभावं करोतीति क्रियाप्रतिषेधमात्रमेव । तत्र च हेतुरकिंचित्कर एवेत्यनपेक्षणीयः स्यात् तस्य निर्हेतुकत्वात् । स्वरसतो भवन्नभावो भावस्य पावकोष्णत्ववन्न कालान्तरभावीति । असदेतत्- हेतुतः साध्यसिद्धेः प्रत्यक्षस्य च क्षणिकत्वग्राहकत्वेनाऽप्रवृत्तेः न तत्प्रतिबद्धत्वेन हेतु - अगर नहीं रहेगा तो स्वभावभेद प्रसक्त होने से स्वयं क्षणिकत्व आ पडेगा । जव पुनः विनाशकाल प्राप्त होगा तब भी कुछ काल जीवित रहने का स्वभाव तदवस्थ रहने से वह कभी नष्ट नहीं होगा माना जाय तो व्यर्थ है क्योंकि अभाव 'विनाशहेतु मोगरादि अभावकारक नहीं, इस प्रकार घटादि कुटस्थ नित्य रहेगा। किसी को वहाँ 'विनाश हेतु' तुच्छ होने से वहाँ हेतु अपेक्षणीय नहीं रहेगा । यदि कहें कि 15 भावकारक हो सकता है।' तो वह शक्य नहीं, भाव तो अपने हेतु से उत्पन्न है उस का पुनरुत्थान असंभव है । 'विनाशहेतु अन्य भाव को करे यह भी शक्य नहीं, यदि वह अन्य भाव का कारक बने तो प्रस्तुत घटरूप भाव से क्या निस्बत, वह तो मोगरसांनिध्य में भी तदवस्थ रहने से पुनः पुनः उपलब्धि का प्रसंग जारी रहेगा । घटादि के साथ अन्य भाव का कोई सम्बन्ध नहीं है जिस से कि 'उस का यह विनाश' ऐसा कहा - माना जा सके, क्योंकि घटादि के साथ उस भावान्तर का कोई उपकारक-उपकार्यभाव 20 है नहीं, उसके बिना उन दोनों में कोई वास्तविक सम्बन्ध होगा नहीं । 10 [ विनाशहेतु की निष्फलता का आपादन ] यदि कहें कि — “ विनाशहेतु या तज्जन्य भावान्तर के बिना विनाशहेतु संनिधि में घटादि स्वयं ही किया जाता हो, तब तो विनाशहेतु सर्वथा निष्फल रहेगा, क्योंकि घटादि स्वयं स्वकरण के लिये समर्थ है, उसे अन्य किसी की अपेक्षा नहीं रही। यदि वह स्वयं समर्थ नहीं, अतः फलित होगा कि 'अन्यभाव 25 भी विनाशहेतु का कार्य नहीं हो सकता। यदि भावकरण के बदले अभावकरण माना जाय तो पर्युदासनञ् पक्ष में अभावकरण का अर्थ अन्यभाव करण ही होगा, अतः उक्त दोष अनिवृत्त रहेगा। प्रसज्य नञ् पक्ष में, 'अभावं करोति' का अर्थ होगा 'भावं न करोति' यानी कुछ (भी) नहीं करता - इस प्रकार क्रिया होने पर विनाशहेतु अकिञ्चित्कर सिद्ध होने अपेक्षाविषय नहीं रहा, क्योंकि निषेध तो निर्हेतुक है। भाव का अभाव जब स्वयमेव हो सकता है तो वह तत्क्षण हो जायेगा कालान्तरप्रतीक्षा क्यों ? अग्नि की उष्णता 30 स्वयमेव होती है, तो अग्नि उत्पत्ति के साथ तत्क्षण हो जाती है कालान्तरप्रतीक्षा नहीं करती । " [ सहेतुकविनाश की हेतुपूर्वक सिद्धि ] तुवादी :- यह पूरा कथन गलत है। क्षणिकत्व साध्य की सिद्धि हेतु पर निर्भर है । जब प्रत्यक्ष से क्षणिकत्व सिद्ध नहीं है तो क्षणिकत्वग्राहकरूप से प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति के विरह में क्षणिकत्व से व्याप्त हेतु www.jainelibrary.org Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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