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________________ खण्ड-३, गाथा-६ १९७ घटस्वरूपं क्रियते, स्वहेतोरेव तस्य निष्पत्तेः । नाप्यसती स्वरूपप्रच्युतिरुत्पद्यते तत्र परैर्हेतुव्यापारानभ्युपगमात्। यत् तु कपालादिषु(?स्तु) मुद्गरादिना निष्पाद्यत इत्यभ्युपगतम् न तस्य विरोधान्न हेतुत्वं कुड्यादेरिवेति कथं न प्रागिवोपलब्ध्यादिकं भवेत् ।?? । [अथ स एव न तदा न तेन नित्यता न चोपलब्ध्यादिकं(?क)स्वकार्यक(?)रणम्। नैतदेवम् – यत: ‘सः' - 'न' इति शब्दयोः किं भिन्नार्थत्वम् आहोस्विदेकार्थत्वमिति वक्तव्यम्। यदि भिन्नार्थता 5 कथं न 'नञ्'शब्दवाच्या पदार्थान्तरमभावोऽभ्युपगतो भवेत् ? अभिन्नार्थत्वे तु पूर्वमपि 'नञ्' प्रयोगप्रसक्तिः । न चानुपलम्भे सति नप्रयोगाभ्युपगम इति वक्तव्यम् यतो व्यवधानाद्यभावे स्वरूपादप्रच्युतस्य तस्यैवानुपपत्तिर्भवेत् । अथ स्वरूपात् प्रच्युतिः कथं न कपालकाले मुद्गरादिहेतुकं भावान्तरं प्रच्युतिर्भवेत् ???] [??अथ कपालकाले घटविनाशा(न)भ्युपगमे स्वभावत एव घटस्याऽविनश्वरस्य परतोऽपि नाशाऽसम्भवतो यः स्वभावो घटस्य प्रथमक्षणात् कियत्कालावस्थानोत्तरकालविनाशलक्षणस्तस्य मुद्गरादिसंनिधानकालेऽपि 10 का ध्वंस' ऐसी उपलब्धि का अतिप्रसंग पूर्ववत् जारी रहेगा' - ऐसा मत कहना क्योंकि मोगरप्रहार घटध्वंस के साथ घटस्वरूप का निर्माण नहीं करता जिस से ‘घट का' इस प्रकार घट की (एवं तत्प्रतियोगिक ध्वसं की) पुनः पुन: उपलब्धि का निमित्त बन सके। घट तो अपने हेतु मिट्टी आदि से ही निर्मित होता है। बौद्ध मत में असत् के निर्माण के लिये हेतु के योगदान का स्वीकार न होने से, मोगर प्रहार से असत् प्रच्युति की उत्पत्ति का प्रश्न ही नहीं है। भीत्ति आदि का जैसे मिट्टी आदि से 15 निर्माण होता है वैसे ही मोगरप्रहार से कपालादि का निर्माण मान्य ही है, अतः वहाँ विरोध का आपादन कर के मोगरप्रहार के हेतुत्व का निषेध नहीं किया जाता। अतः एक बार कपाल उत्पन्न होने पर पहले पहल जैसे उस की उपलब्धि होती है वैसे जब तक उसका नाश न हो तब तक पूर्ववत् उसकी उपलब्धि क्यों नहीं होगी ? बौद्ध :- उस वक्त वही नहीं है, अतः नित्यता प्रसक्त नहीं होगी। एवं उपलब्धि आदि अपने 20 कार्य का करण भी नहीं होगा। नित्यवादी :- यह यथार्थ नहीं, स न भवति - इस में स और न शब्द भिन्नार्थक है या एकार्थक ? यह कहो। यदि भिन्नार्थक है तो अभाव नशब्दवाच्य एक पदार्थ है यह स्वीकारना होगा। यदि एकार्थक है पूर्वक्षण में भी नञ्प्रयोग प्रसक्त होगा। यदि कहें कि - 'पूर्वक्षण में उपलम्भ होने से नप्रयोग नहीं होगा, अनुपलम्भ के रहते ही वह होगा' - तो यह बोलने जैसा नहीं। कारण :- यदि दूसरे क्षण में कोई व्यवधान न रहा तो जो अपने स्वरूप से 25 अप्रच्युत है उसका अनुपलम्भ कैसे ? यदि स्वरूप से प्रच्युति मानेंगे तो कपाल (यानी ध्वंस) क्षण में मोगर आदि हेतुक कपालादि रूप अन्यभावात्मक प्रच्युति क्यों न मानी जाय ? [कपालकाल में घट के स्वतन्त्र विनाश की समीक्षा ] [पुनः यहाँ (१९७-१०) अथ कपाल.. से लेकर वितथत्वात् सिद्धः (२०१-८) पर्यन्त अशुद्ध पाठ का विवेचन] अहेतुनाशवादी :- कपालस्वरूप ही प्रच्युति मानेंगे, पृथक् विनाश नहीं मानेंगे तो घट को (नाश 30 न होने से) स्वभावतः ही अविनश्वरस्वभाव मानना होगा, फलतः किसी भी मोगरादि पर वस्तु से उस का नाश सम्भव नहीं होगा। कैसे यह देखिये - घट का जो आप को मान्य स्वभाव है - कुछ काल जीवित रह कर उत्तर काल में विनष्ट होना, वह स्वभाव तो मोगरसंनिधिकाल में भी तदवस्थ रहेगा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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