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________________ १९४ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ स्वहेतुमन्निर्हेतुसन्निधिबलायातत्वाद् घटक्षणस्याऽसमर्थक्षणान्तरजननकालेनोप()लम्भविषयता यत एवानेकस्यैव क्षणघटस्य विलक्षणक्षणान्तरोत्पादकत्वाभ्युपगमप्रसक्तिः स्यात्। एवं च मुद्गरादेर्न विरोधित्वम् विनाशस्याऽहेतुकत्वात्। नापि जनकत्वम् पूर्वोक्तदोषप्रसक्तेरिति विलक्षणसन्तत्युत्पादे सन्तानोच्छेदे वा मुद्गरादेरन्वय-व्यतिरेकाननुविधानप्रसक्तितो नाग्न्यादीनां दहनादिकार्ये 5 लोकस्योपादानं भवेत्। न च परमार्थकत्वस्याभावे घटादीनां मुद्गरादिव्यापारानन्तरमनुपलब्धिर्भवेत्। न च पूर्वसन्तानोच्छेदाद् विलक्षणसन्तानोत्पत्तेश्च तदा घटानुपलब्धिरिति वक्तव्यम्, विलक्षणसन्तत्युत्पादस्य प्राक्तनन्यायेनाभावात् पूर्वसन्ततिनिवृत्तेरपि वि(?नि)वर्तमानेभ्योऽनन्तरत्वात् तथैवोपलब्ध्यादिप्रसक्तेः तदा तस्य स्वरूपक्षतेरभावात्। न च न तदा तस्य स्वरूपप्रच्युतिरुत्पद्यते किन्तु तस्यैकक्षणावस्थायित्वेन तदाऽभवनमिति नोपलम्भः, यतः स्वरूपादप्रच्युतस्य नाऽभवनं नाम किञ्चित् तत्सद्भावाभ्युपगमे वा कथं 10 न स्वरूपप्रच्युतिस्ततोऽर्थान्तरभूतोत्पत्तिमती ? अथ स एव न भवति, न तु तस्याऽपरं सत्त्वम् न तु तदेवेदं पुना रूपाऽभवनमभिधीयते, तत्र च तदेवोत्तरम् । :- तब तो प्रत्येक घटक्षणों में विलक्षण (असमान) अन्य क्षण उत्पादकत्व के स्वीकार की आपत्ति होगी, (क्योंकि मोगरसांनिध्य हो या न हो कोई फर्क पडनेवाला नहीं है)। [ मोगरप्रहारव्यर्थ होने पर लोकव्यवहारनिष्फलताप्रसंग ] 15 उक्त प्रकार से तो बौद्धमत का निष्कर्ष यही होगा कि मोगरादि घट के विरोधी नहीं है क्योंकि विनाश तो निर्हेतुक है एवं (कपालिकादि का) जनक भी नहीं है क्योंकि तब पूर्वकथित दोषप्रसंग खडे होंगे। उस का नतीजा यह होगा कि विलक्षणसन्तान की उत्पत्ति या सन्तानोच्छेद में मोगरादि की अन्वय-व्यतिरेक अनुवृत्ति निष्फल होने से (कारणताज्ञापक न होने से) कोई भी लोग पचनादि कार्यों के लिये अग्नि आदि की अपेक्षा नहीं रखेगें। तथा, घटादिसन्तान में यदि वास्तव एकत्व नहीं 20 होगा तो जरूरी नहीं है कि मोगरादि के प्रहार के बाद घटादि की अनुपलब्धि हो। यदि कहें कि - प्रहार के बाद पर्व घटसन्तान का उच्छेद एवं विलक्षण (ठिकरे) सन्तान का उत्पाद होने से घटादि की अनुपलब्धि जरूरी है।' - तो यह अयुक्त है - क्योंकि पूर्वोक्त युक्तियों से स्पष्ट हो चुका है कि विलक्षणसन्तानोत्पाद सम्भव नहीं है। तथा पूर्वसन्ताननिवृत्ति भी निवर्तमानक्षणों से पृथक् न होने पर उन की उपलब्धि का प्रसंग तदवस्थ रहेगा, क्योंकि मोगरप्रहार व्यर्थ होने से उन क्षणों को कोई 25 स्वरूपहानि होती नहीं। ऐसा भी नहीं कहना कि - ‘वहाँ कोई स्वरूपप्रच्युति उत्पन्न होने की बात नहीं है। किन्तु घटादि एकक्षणस्थितिवाले होने के कारण बाद में अभवन हो जाने से घटादि की उपलब्धि नहीं होती।' – निषेधकारण :- स्वरूप से प्रच्युति यदि नहीं हुई तो अभवन-शब्द का कुछ अर्थ ही नहीं है, यदि अभवन का सद्भाव है तो स्वरूपप्रच्युति कैसे नहीं जो कि अर्थान्तरभाव की उत्पत्तिरूप मानी गयी है ? यदि ऐसा भी कहें कि - ‘वह नहीं होता यही स्वरूपप्रच्युति है, और किसी भाव 30 की सत्ता नहीं, पूर्वक्षण में जो है वह उत्तरक्षण में नहीं है इसी को तद्रूप का अभवन कहा जाता है' - तो यहाँ भी पूर्ववत् ही उत्तर समझ लेना। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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