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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ तस्याऽसत्त्वेन कुटिलत्वात्, तस्य वचनम् = पदं वाक्यं वा तस्य विच्छेदो = अन्तः सीमा यावत् । 'ऋजुसूत्रवचनस्य' इति कर्मणि षष्ठी, तेन 'ऋजुसूत्रस्य एवमयमर्थो नान्यथा' इति प्ररूपयतो वचनं विच्छिद्यमानं यत् तत् मूलनिमेनम अत्र गृह्यते। ननु कथं वचनविच्छेदः शब्दरूपः परिच्छेदस्वभावस्य नयस्याधारः ? नैष दोषः, विषयेण विषयी(?यि)5 कथनरूपत्वादस्य । न च वचनार्थोऽस्य विषयः न शब्द इति वाच्यम्, वचनार्थयोरभेदात् वचनमपि यतो विषयः। अथ विषय एव किं नोक्त इति न प्रेरणीयम्, शब्दनयानां यत् शब्दहतस्यैव प्रमाणत्वमिति ज्ञापनार्थत्वादेवमभिधानम्, तस्य च पूर्वापरपर्याये(?यै)विविक्ते एकपर्याय एव प्ररूपयतो वचनं विच्छिद्यते बोधात्मक नय। ऐसे विशेषग्राही नय का जो मूलाधार है वह है ऋजुसूत्रवचनविच्छेद । विशेषग्राही नय तो शब्द-समभिरूढ-एवंभूत भी है, किन्तु उनका भी मूलाधार ऋजुसूत्रवचनविच्छेद है। ऋजु = वर्तमान समय 10 की वस्तु। अतीतानागत यानी नष्ट और अनुत्पन्न भाव अपने स्वरूप से च्युत रहते हैं जब कि वर्तमानसमय की वस्तु अपने स्वरूप में अवस्थित होती है। ऋजु शब्द से उसी का निर्देश है, क्योंकि ऋजु यानी सरल, वर्तमान समय की वस्तु ही स्वकार्य के लिये सरलता से उपलब्ध होती है, नष्ट-अनुत्पन्न वस्तु सरलता से उपलब्ध हो नहीं सकती, अत एव वह वक्र यानी असत् कही जाती है। ऋजु यानी वर्तमान समय की वस्तु का ही जो सूत्रण = ग्रहण या बोध करे, अतीत-अनागत का नहीं, वह है ऋजुसूत्र । अतीत अनागत 15 तो कुटिल = वक्र होने से, सरलता से उपलब्ध न रहने से असत् होने के कारण उस का सूत्रण ऋजुसूत्र नहीं करता। इस प्रकार के ऋजुसूत्र का वचन = पद या वाक्य, उस का विच्छेद = अन्त अथवा सीमा, यह है ऋजुसूत्रविच्छेद । [ ऋजुसूत्रवचनविच्छेद-शब्द का तात्पर्य ] __ 'ऋजुसूत्रवचनविच्छेद' का उपरोक्त व्याख्या अनुसार मतलब यह हुआ कि ऋजुसूत्र यानी वर्तमान समय 20 की वस्तु के ग्रहण की सीमा यानी अवधारण। पर्यायनय (ऋजुसूत्र से लेकर एवंभूतनय) गर्भित पद या वाक्य कभी भी ऋजुसूत्र की मर्यादा को लाँघ कर वस्तुबोधकारक नहीं हो सकता। विच्छेद यानी एक प्रकार से अवधारण, इस का निशान है ऋजुसूत्रवचन, निशान यानी व्याकरण की परिभाषा अनुसार कर्म । व्याख्याकार ने ऋजुसूत्रवचन का विच्छेद इस ढंग से जो समास का विग्रह दिखाया है वहाँ षष्ठी विभक्ति से विच्छेद = अवधारण का कर्म (या निशान) सूचित किया है। अतः ऋजुसत्रवचनविच्छेद का फलितार्थ 25 यह होगा कि वर्तमान वस्तुग्रहण यह ऋजुसूत्र का ही अर्थ = विषय है, अन्य किसी का नहीं - इस प्रकार की मर्यादा गर्भित अवधारण विषयभूत जो वचन, वही पर्यायनय का मूलनिमेन यानी मूलाधार है - प्रस्तुत में यही समझना है। [ शब्दात्मक वचनविच्छेद नयाधार कैसे ? ] शंका :- नय तो बोधस्वभाव होता है, बोध अर्थाधारित (यानी स्वविषयावलम्बी) होता है न कि .30 वचनाधारित। तब सूत्रकार ने शब्दात्मक वचनविच्छेद (= सीमितवचन) को नय का आधार कैसे जताया ? उत्तर :- इस में कोई दोष नहीं है। विषयभूत अर्थ के माध्यम से (पर्याय नयों के प्रस्ताव में) विषयी v. 'णिमेणमवि ठाणे' - 'णिमेणं = स्थानम्' - देशीना० च० व० गा० ३७ - टीका - इति पूर्वसम्पादकौ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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