SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ तन्न बहिरुद्द्योतमानो नीलादिरन्तस्तब्धस्याकाराभ्युपगन्तव्य इति न विज्ञानवादो ज्यायान् ??) [?? न च बहीरूपतया प्रतिभास()न्नीलादेस्तथैव सत्यता, वा(?भ्रा)न्तरजतादौ तद्रूपाभावेऽपि तथाप्रतिभासोपलब्धेः। अथापि स्यात्- शुक्तिकायां प्रतिभासमानस्य रजतस्य वाऽसत्यता, पूर्वदृष्टस्यैव तत्र तस्य स्मृतेरनुभूतरजतस्य स्मृतेरनुकारदर्शनेऽपि रजतस्याऽप्रतिभासात् पूर्वप्रतिभातं च रजतं ततस्तब्धस्याकारोऽभ्युपगन्तव्यः (सं)विदसत्यतयाऽऽपत्तिदर्शनं(?ने) शून्यवादिनो भवेत्। - असदेतत्, यतो यत् शुक्तिकायां पूर्वदृष्टं रजतरूपं सत्यं तस्य प्रतिभासे स्मर्यमाणतया प्रतिपत्तिर्न भवेत्, यच्च वर्त्तमानमिदानींतनदर्शनाद् विपरीतख्यातिः स्याद् न स्मृतिप्रमोषः । तथाहि- स्मृतिरभावः तदा तदभावे कथं पूर्वदृष्टरजततदभावप्रतीति: स्यात् । नाप्यन्यदर्शनं स्मृतिप्रमोषस्तद्भावे परिस्फुटवपुरन्यदर्शनमेव प्रतिभातीति कथं रजते स्मृतिप्रमोषः ? सर्वदर्शनस्य स्मृतिप्रमोषतापत्तेः। नापि (वि)परीताकारवेदित्वं स्मृतेः प्रमोषः विपरीतख्या10 तित्वप्रसक्तेः। यदेव प्रत्यक्षाकारणं स्मृतेरभावन: आकारस्तदासौ प्रत्यक्षस्य रूपं न स्मृतेः इति कथं तेन रूपेण स्मृतिः प्रतिभाति ? निष्कर्ष – बाह्यरूपता से भासित होनेवाले नीलादि अन्तस्तत्त्वाकार मानना युक्तिसंगत नहीं होने से विज्ञानवाद तनिक भी प्रशस्त नहीं है। [ बाह्यरूपता से नीलादि की सत्यता का निषेध ] 15 यदि बाह्यरूपता से भासमान नीलादि की बाह्यरूप से ही सत्यता स्वीकारेंगे तो भ्रान्तरजतस्थल में बाह्यरूपता से भासित होनेवाले रजतादि बाह्यरूपता के न होने पर भी बाह्यरूप से सत्यता माननी पडेगी। यदि यह कहा जाय - ‘सीप में भासित होनेवाले रजत को सत्य नहीं मानेंगे क्योंकि वहाँ पूर्वदृष्ट रजत का ही स्मरण होता है। यद्यपि पूर्वानुभूत रजत का स्मृति में अनुकार (यानी रजत का आकार) जरूर दिखता है किन्तु रजत स्वयं वहाँ नहीं दिखता। रजत तो पूर्वदर्शन में देख लिया 20 था। अतः यही मानना चाहिये कि रजत से संसृष्ट आकार ही वहाँ भासता है। अतः शून्यवादी के मत में ही ज्ञान की सत्यता की आपत्ति आयेगी।' – यह कथन गलत है, कारण :- सीप में पूर्वदृष्ट रजत सत्य है उस का प्रतिभास होगा तो स्मृतिविषयतारूप से उस का भान नहीं हो सकता । तथा भूतकालीन होने पर भी वर्तमानकालतारूप से जो वर्तमान में रजतज्ञान है वह तो विपरीतख्याति हुई तो विज्ञानवाद में वहाँ स्मृति का प्रमोष (स्मृतिरूप से भ्रान्तज्ञान का अभासन) नहीं होगा। देखिये25 स्मृति का प्रमोष यानी अभाव माना जाय तो उस वक्त प्रमोषकाल में स्मृति न होने पर पूर्वदृष्ट रजत और उस के अभाव की प्रतीति कैसे होगी ? स्मृति प्रमोष यदि अन्यार्थ का दर्शन रूप है तो प्रमोषकाल में स्पष्ट मूर्तरूप अन्यदर्शन ही भासित होगा, फिर रजत के साथ स्मृतिप्रमोष का नाता क्या ? सभी चीज एक-दूसरे से अन्य होने के कारण दर्शनमात्र स्मृतिप्रमोषरूप बन कर रहेगा। स्मृति प्रमोष यदि विपरीताकारवेदनरूप कहा जाय तो अन्यथाख्याति की आपत्ति होगी। ऐसा कहा जाय कि 30 जो (रजतादि आकार) प्रत्यक्ष का विषयविधया कारण न हो कर, स्मृति का न हो ऐसा आकार प्रत्यक्ष में दिखता है वह तो स्मृति का नहीं प्रत्यक्ष का ही रूप हुआ, फिर उस रूप से स्मृति का भान कैसे होगा ? (स्मृतेरभावनः आकारः यह पाठ अशुद्ध लगता है, शुद्ध पाठ ध्यान में नहीं आया ।) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy