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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ णाधिगमानुपपत्तेः। उक्तं च- (श्लो॰वा अभा०श्लो०१५) ‘अयमेवेति यो ह्येष भावे भवति निर्णयः। नैष वस्त्वन्तराभावसंवित्त्यनुगमादृते ।।' न चार्थाभावोऽध्यक्षसमधिगम्यः, अर्थविभासकत्वेन तस्योत्पत्तेः । न च तत्रावभासेऽपि तस्याभावः, विज्ञप्तेरप्यभावप्रसक्तेः । न च तैमिरिकाक्षजप्रतिभासे चकासदिन्दुद्वयं यथाऽसत्यत्वमनुभवति तथा शुद्धदृक्प्रति5 भासविषयस्यापि स्तम्भादेरपि वितथत्वम्- यतस्तिमिरपरिकरितदृग्विषयस्यार्थस्य बाध्यमानप्रत्ययविषयत्वादसत्त्वं युक्तम् न पुनः शुद्धदृगवसेयस्य, तत्र बाध्यत्वाऽयोगात्। यद्वा तैमिरिकावभासिनोऽपीन्दुद्वयादेरवैतथ्यमस्तु । न च बाधप्रत्ययावसेयस्य कथमवितथत्वमिति वक्तव्यम् बाध्यत्वाऽयोगात् । ___तथाहि- दर्शनं वा बाध्येत, तित्रावभासमानो वाऽर्थः प्रयोजनं वा ? न तावदाद्यः पक्षः, दर्शनस्योत्पन्नत्वात् । नाप्यर्थो बाध्यः प्रतिभासमानेन रूपेण तस्य सत्त्वात् अन्यथा प्रतीयमानताऽयोगात्। 10 न च 'प्रतिभासोऽस्ति किन्तु तन्निर्भासि रूपमसत्यम्' इति वक्तव्यम् प्रतिभासमानं रूपं बिभ्रतोऽप्यसत्त्वे _Aअर्थस्पर्शरहित हो ऐसे विज्ञानमात्र के बोध कराने में समर्थ कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। कारण, जब तक प्रत्यक्ष स्वयं बाह्याभाव का निश्चय नहीं करेगा तब तक ‘विज्ञानमात्र ही है' ऐसा भारपूर्वक बोधन करा नहीं सकता। श्लो० वार्त्तिक (अभाव श्लो०१५) में कहा है - ‘भाव के विषय में 'यही है' ऐसा (भारपूर्वक) निर्णय जो होता है वह अन्य किसी वस्तु के अभाव के संवेदन के 15 विना शक्य नहीं।' [ अर्थाभाव प्रत्यक्ष का विषय नहीं होता ] प्रत्यक्ष से अर्थाभाव का अधिगम हो नहीं सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष तो अर्थमात्रप्रकाशकस्वभाव ले कर ही उदित होता है। प्रत्यक्ष में स्तम्भादि अर्थ भासित हो जाय तब तो उस का अभाव सिद्ध ही नहीं होगा, अन्यथा प्रत्यक्ष में भासित होने वाले विज्ञान का भी अभाव प्रसक्त होगा। यदि कहा 20 जाय – 'तिमिररोगग्रस्त व्यक्ति के इन्द्रियजन्य प्रतिभास में चन्द्रयुगल हालाँकि भासित होता है किन्तु जैसे वह असत्य माना जाता है वैसे शुद्धदर्शनप्रतिभासविषयभूत स्तम्भादि भी असत्य माना जाय ।' - तो यह मिथ्या है क्योंकि तिमिरग्रस्तदृष्टि विषयभूत चन्द्रयुगलरूप अर्थ तो आखिर बाधितप्रतीति का विषय होने से असत्य माना जाय यह उचित है, किन्तु शुद्ध अबाधित दृष्टि ग्राह्य अर्थ स्तम्भादि असत्य नहीं होता, क्योंकि अबाधित दर्शन बाधग्रस्त नहीं होता। अथवा हम तो यही कहेंगे कि तिमिरग्रस्त 25 व्यक्ति से गृहीत चन्द्रयुगल भी मिथ्या नहीं है। यदि पूछेगे कि बाधित प्रतीति ग्राह्य विषय असत्य क्यों नहीं होगा तो उत्तर यह है कि उसकी प्रतीति में बाधवैशिष्ट्य ही नहीं है। [बाध है तो किस को ? - तीन विकल्प ] स्पष्टता :- बाध यदि है तो किस को है ? दर्शन को है ? bदर्शन में भासित होनेवाले अर्थ को है ? या प्रयोजन को ? पहला पक्ष अनुचित है क्योंकि दर्शन तो होनहार हो चुका है 30 उसको कौन सा बाध होगा ? bअर्थ को बाध नहीं पहुँचेगा क्योंकि जिस स्वरूप से वह दर्शन में भासता है उस स्वरूप से वह 'सत्' है, सत् नहीं होता तो प्रतीतिविषयता न होती। ऐसा मत कहना कि - 'प्रतिभास यद्यपि हो सकता है किन्तु प्रतिभासप्रदर्शित रूप असत्य है।' - क्योंकि प्रतिभासमान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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