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________________ ८८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ विनाशकारणवशाद् विनाशो दृष्टः स एव ततस्तथा निश्चीयताम् नान्य कृतकत्वसाधर्म्यमात्रेण । न हि वस्त्रे रागस्य एव स्वहेतुसंनिधिसापेक्षस्याऽवश्यम्भाविना(?ता) तहेतुसंनिधेरप्यपरहेतुसंनिधिसापेक्षत्वात्, ‘न चावश्यं हेतवः फलवन्तः' (८६-१) इत्युक्तम्। अथ सापेक्षोऽपि वाससि रागः सर्वत्र यधुपलभ्यते किमित्यवश्यंभावी न भवेत् ? न च तथोपलभ्यते अन्यथापि तस्य ग्रहणात्। एवं यदि नाशस्याप्यन्यथापि भाव उपलभ्यते तदाऽसापेक्षत्वान्नावश्यंभाविता भवेत् । न चैवं सर्वत्र (??कृतके (ना)शस्योपलब्धेरिति। असदेतत्, भवतु समस्तवस्तुव्यापिज्ञानाभावात् भावेऽनुमानवृत्तेर्न(?)वैफल्यापत्ति: ??) हेतुबलादुपजातध्वंसस्य कस्यचिद् दर्शनेऽपि कारणप्रतिबद्धजन्मनामन्यथापि दर्शनात् उपजातशङ्को देशादिविप्रकृष्टेषु भावेषु कथं तथाभावं निश्चिनुयात् ? यद्यपि वा(?चा)कृतकानां विनाशं(?शो) नोपलब्धः, तथापि कालान्तरे तदा वाऽसौ हेतुनिमित्तो न सम्भवीति कुतो निश्चयः ? 10 सकते हैं कि जिन घटादि भावों का नाशकारणसांनिध्य से नाश दिखता है उन का ही नाशकारणजनित नाश स्वीकृत किया जाय, केवल कृतकत्व साधर्म्य से सभी कृतक भावों का नाश मानने की जरुर नहीं। - देखिये, वस्त्र में रंग के कारणों के सानिध्य से रंग उत्पत्ति होने पर भी, यह नहीं कह सकते कि सभी वस्त्रों में रंग की उत्पत्ति अवश्य होगी ही, क्योंकि कारणों का सांनिध्य भी अन्य कारणों पर निर्भर रहता है। अत एव हमने पहले कहा है (८६-१२) हेतु फलवन्त ही हो - ऐसा 15 नियम नहीं है। (समग्र कथन का तात्पर्य यह है कि यदि अभाव का नाश नहीं मानेंगे और उस की सहेतुक उत्पत्ति मानेंगे - वह भी सिर्फ उपरोक्त युक्तियों के आधार पर, तो उन्हीं युक्तियों के आधार पर कृतक भावों के अहेतुकत्व अथवा हेतुसंनिधि होने पर भी अनुत्पत्ति आदि की आपत्ति प्रसक्त होगी।) 1 [वस्त्र के रंग की अवश्यंभाविता अनिश्चित ] 20 अब दलील की जाय कि - ‘वस्त्र में परद्रव्यकृत राग यद्यपि अवश्य हेतुसापेक्ष है, (उस का मतलब यह नहीं कि हेतु के रहते हुए भी वह अवश्य उत्पन्न न भी हो) फिर भी यदि सभी वस्त्रों में कोई परद्रव्यकृत रंग दिखता है तो उसे सहेतुक अवश्यंभावी क्यों न माना जाय ? हाँ, सच है कि सभी वस्त्रों में वह (परद्रव्यकृत रंग) दिखता नहीं परद्रव्यसंयोग के विना भी वह दिखता है। यदि इस तरह कृतक का नाश भी विना हेतु के उपलब्ध होता तो हेतु-असापेक्ष हो जाने से उस 25 की अवश्यंभाविता बच नहीं पाती। किन्तु वैसा कहीं भी नहीं दिखता कि नाश विना हेतु के होता हो, कृतक सभी का नाश दिखता है।' - नील गलत है क्योंकि सभी कृतक का नाश बोल नहीं सकते जब तक हमें समस्तवस्तुव्यापि ज्ञान (सर्वज्ञता) नहीं है। - यदि होता तो अनुमान निष्फल होने की विपदा प्रसक्त होगी। किसी भाव का ध्वंस हेतु के प्रभाव से दिखाई देने पर भी सहेतुकोत्पन्न दृष्टिगोचर कुछ भावों का ऐसा 30 भी नाश दिखता है जहाँ कोई कारण नहीं दिखता। तब जो दृष्टिमर्यादा बाहर रहे हए कालदूरवर्ति भाव हैं उन में सहेतुकता का निश्चय ही कैसे होगा, जब तक पूर्वोक्त रीति से दृष्ट भाव के नाश के कारण भी शंकाग्रस्त हैं ? अकृतक के लिये भी प्रश्न होगा कि यद्यपि आज-कल उस का नाश यद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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