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द्वितीयः खण्डः - का० - ३
देशकालान्तरसम्बद्धस्वभावरहितं वस्तुतत्त्वं साम्प्रतिकम् एकस्वभावम् अकुटिलम् = ऋजु सूत्रयतोति ऋजुसूत्रः । न हि एकस्वभावस्य नानादिक्-कालसम्बन्धित्वस्वभावमनेकत्वं युक्तम् एकस्यानेकत्वविरोधात् । न हि स्वरूपभेदादन्यो वस्तुभेदः स्वरूपस्यैव वस्तुत्वोपपत्तेः । तथाहि विद्यमानेपि स्वरूपे किमपरमभिन्नं वस्तु यद् रूपनानात्वेऽप्येकं स्यादिति ? यद् वस्तुरूपं येन स्वभावेनोपलभ्यते तत् तेन सर्वात्मना विनश्यति न पुनः क्षणान्तरसंस्पर्शीति क्षणिकम्, क्षणान्तरसम्बन्धे तत्क्षणाकारस्य क्षणान्तराकारविशेषाऽप्रसंगात्, अतो जातस्य यदि द्वितीयक्षणसम्बन्धः प्रथमक्षणस्वभावं नापनयति तदा कल्पान्तरावस्थानसम्बन्धोऽपि तत्रापनयेत्, स्वभावभेदे वा कथं न वस्तुभेदः, अन्यथा सर्वत्र सर्वदा भेदाभाव - प्रसक्तिः ।
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अक्षणिकस्य क्रम - यौगपद्याभ्यामर्थक्रियानुपपत्तेरसत्त्वम्, सहकार्युपढौकितातिशयमनंगीकुर्वतस्तदपेक्षायोगादक्षेपेण कार्यकारिणः सर्वकार्यमेकदैव विदध्यादिति न क्रमकर्तृत्वम् नवा कदाचनापि स्वकार्यमुत्पादयेत् प्रवृत्त हुआ है, बाकी सब नय पर्याय का आश्रयण करते हैं ।"
इसका तात्पर्य यह हैं कि संग्रहनय भेदादिविशेषणविनिर्मुक्त शुद्ध द्रव्य की ओर दृष्टि करता है, जब कि नैगम और व्यवहार भेदादिविशेषण विशिष्ट (यानी अशुद्ध) द्रव्य को दृष्टिगोचर रख कर चलता है । [ जैसे कुछ अपराध कर के घर से भाग जाने वाला बेटा जब वापस छ: महीने के बाद घर आता है तब उसके पिता को वह 'अपराधी बेटा' दिखता है किन्तु उदारहृदयी माता को सिर्फ बेटा ही दिखता है । और लोगों को बेटा नहीं, सिर्फ अपराधी ही अपराधी दिखता है वैसे ही ] पर्यायवादी ऋजुसूत्रादि चार नयों की दृष्टि द्रव्य की ओर नहीं सिर्फ पर्यायों की ओर, भेदादि विशेषणों की ओर ही दृष्टि रहती है ।
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अन्यत्र कहा गया है
'नैगमनय मानता है कि समानाकार ज्ञान का कारणभूत सामान्य, और (भिनाकारज्ञान हेतुभूत) विशेष ये दोनों ही अलग अलग है।'
'सारे जगत् का अपना स्वभाव सद्रूपता से मुद्रित है, इस प्रकार सत्ता के रूप में अखिल वस्तु का संग्रह करने वाला संग्रह नय कहा गया है ।'
'व्यवहारनय वही सत्तारूपता एक एक वस्तु ( के कवच ) में रही हुई जिस विशेष रूप में दिखती है उसी रूप में, देहियों के समक्ष उसका व्यवहार करता है।'
★ पर्यायनयभेद : ऋजुसूत्रनयाभिप्राय ★
ऋजुसूत्र शब्द- समभिरूढ - एवंभूत ये चार पर्यायनय के भेद हैं ।
" ऋजुसूत्रनय की नीति शुद्धपर्यायों के ऊपर आश्रित है, क्योंकि स्थायित्व सम्भव न होने से भावमात्र सब नश्वर ही होते हैं ।"
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ऋजुसूत्र ऋजु यानी सीधी-सादी वस्तु का सूत्रण करता है, सीधी-सादी वस्तु यानी जिस का स्वभाव अन्य देश के सम्बन्ध और अन्यकाल के सम्बन्ध ( से निर्लेप हो- अलंकृत न हो) के आडम्बर से मुक्त हो, अतीत- अनागत की कुटिलता से अस्पृश्य सिर्फ वर्त्तमानकालीन हो और भिन्न भिन्न परिस्थिति में भिन्न भिन्न स्वभाव नहीं किन्तु एकस्वभावी हो । जो एकस्वभावी है उसमें विविध देश - कालसम्बन्धात्मक स्वभावरूप अनेकत्व का संग कैसे हो सकता है ? एक है तो उसमें अनेकत्व का होना विरुद्ध है । वस्तु का जो अपना
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