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द्वितीयः खण्डः का० - ३
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अथ असत्कार्यवादिनः प्रतिनियताः शक्तयो न घटन्ते कार्यात्मकानामवधीनामनिष्पत्तेः । न ह्यवधिमन्तरेणावधिमतः सद्भावः सम्भवति । प्रयोगश्चात्र 'ये सद्भूतकार्यावधिशून्याः न ते नियतशक्तयः यथा शशशृंगादयः सद्भूतकार्यावधिशून्याश्च शालिबीजादयो भावा' : इति व्यापकानुपलब्धिः । सत्कार्यवादे तु कार्यावधिसद्भावाद्युक्तः कारणप्रतिनियमः । उक्तं च [ तत्त्वसं० - २९] -
अवधीनामनिष्पत्तेर्नियतोस्ते न शक्तयः सत्त्वे च नियमस्तासां युक्तः सावधिको ननु ॥ इति ॥ असदेतत् - हेतोरनैकान्तिकत्वात् ।
तथाहि - अवधीनामनिष्पत्तौ ' क्षीरस्य दध्युत्पादेन शक्ति:' इति व्यपदेशः केवलं मा भूत्, यत् पुनरनध्यारोपितं सर्वोपाधिनिरपेक्षं वस्तुस्वरूपम् - यदनंतरं पूर्वमदृष्टमपि वस्त्वन्तरं प्रादुर्भवति - तस्याऽप्रतिषेध एव । न च शब्दविकल्पानां यत्र व्यावृत्तिस्तत्र वस्तुस्वभावोऽपि निवर्त्तते, यतो व्यापकः स्वभावः कारणं अभेदवाद में वह कैसे होगा ? प्रमाणवार्त्तिक में कहा है कि " भेद होने पर तो वास्तविक रूप से 'कोई एक वस्तु कारण होना' बन सकता है, अभेदवाद में एक वस्तु में क्रिया और अक्रिया परस्पर विरोधी है ।' सत्कार्यवादी : असत्कार्यवाद में कार्यस्वरूप अवधि के अनिष्पन्न यानी अनुपस्थित होने के कारण, कारणों में उन अवधियों पर आधारित प्रतिनियत शक्ति का होना सुसंगत नहीं होगा । कारणगत शक्ति कार्यरूप अवधि को सापेक्ष होती है । अवधि के बिना अवधिमती शक्तियाँ भी कैसे हो सकती हैं ? यहाँ, प्रसंगापादान के लिये ऐसा न्यायप्रयोग है - " सत्कार्यस्वरूप अवधि से शून्य जो होंगे वे नियत शक्ति वाले नहीं हो सकते, उदा० शशसींग आदि । शशसींग आदि में कोई भी शक्ति नहीं है क्योंकि वे सत्कार्यरूप अवधि से रहित होते हैं । शालिबीजादि भाव भी (असत्कार्यवाद में) सत्कार्यरूप अवधि से शून्य ही हैं ।" यहाँ हेतु व्यापकानुपलब्धिरूप है । नियत शक्ति सत्कार्यरूप व्याप्त है । सत्कार्य अवधि इस व्यापक की अनुपलब्धि यहाँ हेतु बन कर नियत शक्ति के अभाव को सिद्ध करती है । सत्कार्यवाद में तो कार्य कारण में अवधिरूप से विद्यमान होने के कारण, कारणों में शक्ति नियम आसानी से बन सकता है । तत्त्वसंग्रह में कहा है - अवधियों की अनुपस्थिति में शक्तियाँ नियत नहीं हो सकती । अवधियों को सत् मानने पर शक्तियों का अवधिसापेक्ष नियम बन सकता है।
यह वक्तव्य गलत है, क्योंकि इस प्रयोग में हेतु साध्यद्रोही हो जाता है । ★ अवधिशून्यत्व हेतु साध्यद्रोही ★
हेतु कैसे साध्यद्रोही है यह देखिये अवधियों की अनुपस्थिति में भी नियतशक्ति होने में कोई बाध नहीं । हालाँकि, अवधि की अनुपस्थिति में, ऐसा विकल्प अथवा वाक्यप्रयोग कि 'दहीजननशक्ति दूध में है' नहीं हो सकता तो मत हो किंतु अनारोपित एवं सर्व उपाधि निरपेक्ष जो वस्तुस्वरूप होता है (जिस में वह शक्ति भी शामिल है), ऐसा वस्तुस्वरूप कि जिसके उत्तरक्षणों में, पूर्व में अनुपलब्ध अन्य वस्तु का प्रादुर्भाव होता है, उस वस्तुस्वरूप के ( जिस में वह शक्ति अन्तर्गत है) होने में कोई बाध नहीं है । बाध क्यों नहीं है यह भी देखिये 'शब्दप्रयोग एवं विकल्प की जिस के बारे में गति न हो उस का वस्तुस्वभाव निवृत्त हो जाय' ऐसा कोई नियम नहीं है। कारण, नियम ऐसा है कि जो स्वभावात्मक ( वृक्षादिस्वभाव) या कारणरूप ( अग्नि आदि) व्यापक हो उसकी होने पर अपने व्याप्य ( शिंशपादि) की या अपने कार्य (धूमादि) की *. 'भेदमात्राऽविशेषेऽपि स्वहेतुप्रत्ययनियमितस्वभावत्वात् केचिदेव कारकाः स्युर्नान्ये तत्स्वभावत्वादित्यत्र नैवं किंचिद्विरुद्धमस्ति । एकत्वे तु तस्य तत्रैव तथा कारकत्वमकारकत्वं चेति व्याहतमेतत् ।' इति प्रमाणवार्त्तिक स्वोपज्ञ टीकायाम् । [ १०२५९ ]
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