SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय; खण्ड:-का०-३ ३१५ गतः ? अथ यदि नामाध्यक्षधीरभेदं नाधिगच्छति तदुत्थापितमनुमानं तु प्रत्याययिष्यति । तथाहि - स्थिरावस्थामर्थानामुपलभ्य वर्षादिस्थितिमधिच्छन्ति व्यवहारिणः 'यतो यदि ध्वंसहेतुरस्य न संनिहितो भवेत् तदा वर्षादिकमेष स्थास्यति' । इति, अतो यस्य सहेतुको विनाशः तस्य तद्धेतुसंनिधानमन्तरेण स्थितिसद्भावः इति कालभेदः यस्य तु मन्दरादे शहेतुर्न विद्यते स सर्वदा स्थितिमनुभवतीत्युभयथाप्यभेदोऽनुमानावसेयः । असदेतत् - यतो यत्राध्यक्षं न प्रवृत्तम् नापि प्रवर्त्तते नापि प्रवर्तिष्यते अभेदे न तत्रानुमितिः प्रवर्तते । न च कालान्तरस्थायी भावोऽक्षजप्रत्ययेनावगतः यदि पुनर्वर्त्तमानकालतावभास्यक्षजप्रत्ययः कालान्तरस्थितिमवभासयति तदा स्पष्टगवगत एवाभेद इति किमनुमानेन ? अथ कालान्तरभाविनाऽध्यक्षेण कालान्तरस्थितिरधिगम्यते । तंदप्ययुक्तम् यत उत्तरकालभाव्यपि दर्शनं तत्कालमेवार्थमधिगन्तुं प्रभुर्न पूर्वसत्तावगाहीति कथं तदप्यभेदावभासि ? न च वर्तमानाध्यक्षेण प्रतिभाति वस्तुनि अतीतादिकालसम्बन्धिताधिगम विना तदभेदावगमः सम्भवति । लिये प्रवर्त्तमान नहीं होती, भूतकाल के ग्रहण में स्मृति और भविष्यकाल के ग्रहण के लिये अनुमान की ही प्रवृत्ति होती दिखाई देती है। कैसे यह सुनिये - पूर्वापर काल में स्थायि-अवस्थावाले अर्थ के दर्शन से ज्ञाता को 'यह पहले देखा था' ऐसा स्मृतिगर्भित भूतकालसंबन्धि अध्यवसाय होता है । तथा दर्शन के विषय बने हुए पदार्थ की भाविकालस्थिति का बोध अनुमान से होता है । किन्तु स्पष्टसंवेदनात्मक दर्शन से कभी कालभेद का बोध नहीं होता । जब वस्तु की भूतकालीन एवं भाविकालीन स्थिति स्पष्टदर्शन का विषय ही नहीं है तो उन से मिलित अभेद कैसे प्रत्यक्षगम्य हो सकता है ?! ★ प्रत्यक्षजन्य अनुमान से अभेदग्रह अशक्य★ प्रश्न : आप कहते हैं अभेद का उल्लेख प्रत्यक्ष में नहीं होता, तो क्षणभेद का भी उल्लेख संवेदन में नहीं होता फिर कैसे उस को प्रत्यक्षग्राह्य कहेंगे ? उत्तर : प्रश्न गलत है, क्योंकि अभेद का विपर्यास यानी अभेद से उल्टा है वही क्षणभेद कहा जाता है । कालान्तरस्थिति तो प्रत्यक्षगम्य नहीं है, तब उस का विपर्यास ही गृहीत रहना चाहिये अत: मध्यक्षण के सत्त्व का प्रत्यक्ष से ग्रहण होता है वही क्षणभेद का ग्रहण कैसे नहीं है ?! ___ आशंका : प्रत्यक्षबुद्धि भले अभेद का उल्लेख न कर सके, किंतु प्रत्यक्षजन्य अनुमान से तो उस की प्रतीति हो सकती है। कैसे यह देखिये - व्यवहारी जन पदार्थों की स्थिरावस्था को प्रत्यक्ष से देखते हैं, देखकर अनुमान से पता लगा लेते हैं कि यह चीज एक या दो साल... यावत् शाश्वतकाल तक रहेगी । जैसे: अगर इस चीज का विनाशक हेतु जब तक प्राप्त नहीं हुआ तब तक यह चीज (आचार-मुरब्बा आदि) वर्ष देढ वर्ष तक चलेगी । इस प्रकार यह सामान्य से भी अनुमान करते हैं कि जिस चीज का विनाश कारणाधीन है वह विनाशककारण की प्राप्ति न हो तब तक स्थितिधारी रहेगा - यही कालाभेद का अनुमान है । मेरुपर्वत आदि जिस का कोई विनाशकारण तीनों काल में नहीं है, वह शाश्वत काल के लिये स्थितिधारी रहेगा । यह भी कालाभेदग्रहण ही है। दोनों में अनुमान से कालाभेद का ही उल्लेख होता है। उत्तर : यह भी गलत वक्तव्य है, क्योंकि जिस चीज का (यानी कालान्तर का) उल्लेख करने के लिये प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति न कभी भूतकाल में हुई, न वर्तमान में होती है, न भविष्य में भी होगी उस चीज यानी कालान्तर-अभेद के ग्रहण में अनुमान की प्रवृत्ति भी नहीं हो सकती, क्योंकि पूर्वकाल में प्रत्यक्षगृहीत वस्तु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy