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________________ ॐ ह्रीँ श्री अहँ नमः श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ।। श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् [द्वितीयः खण्डः] [द्वितीयगाथावतरणिका एवमिष्टदेवतानमस्कारकरणध्वस्तप्रकरणपरिसमाप्तिविबन्धकृत्क्लिष्टकर्मान्तरायः सूरिर्जिनप्रणीतत्वेन शासनस्य प्रकरणमन्तरेणाऽपि स्वतः सिद्धत्वात् तदभिधेयस्य निष्प्रयोजनतामाशङ्कमानः 'समयपरमत्य' . इत्यादिगाथासूत्रेण प्रकरणाभिधेयप्रयोजनमाह समय-परमत्थ-वित्थर-विहाड-पज्जुवासण-सयनो आगममलारहियओ जह होइ तमत्थमुन्नेसु ॥२॥ इस प्रकार (पूर्वखण्ड में कहे अनुसार) आचार्य ने इष्टदेवता को नमस्कार कर के, इस प्रकरण की समाप्ति में विघ्न डालनेवाले क्लेशापादक अन्तराय कर्म का ध्वंस किया । अब यदि ऐसी आशंका हो जाय कि - 'द्वादशांगीरूप शासन तो जिनेन्द्रप्रणीत होने से स्वत: सिद्ध ही है इस लिये उस के अभिधेय का इस प्रकरण से प्रतिपादन करने का कोई प्रयोजन नहीं है' - तो इस आशंका को दूर करने के अभिप्राय से, आचार्य 'समयपरमत्थ'.... इत्यादि द्वितीयगाथासूत्र के द्वारा, इस प्रकरण का अभिधेय क्या है और उसको दिखाने का प्रयोजन क्या है यह कह रहे हैं गाथार्थ - आगम के विषय में मलार (बैल) की तरह (कुण्ठ) हृदयवाला भी जिस प्रकार (के अर्थ) से शास्रपरमार्थ के विस्तर का प्रकाशन करनेवाले (विद्वद्) लोगों की सेवा में सकर्ण (तत्पर) बन जाय (सेवा के फलभूत शास्त्रव्याख्यान के अर्थावधारण में समर्थ हो जाय) ऐसे अर्थ को मैं कहूँगा ॥२॥ * :- व्याख्याकार श्री अभयदेवसूरिजी ने यहाँ इष्टदेवता-नमस्कार की जो बात कही है उसके उपर किसीको वितर्क होगा कि - 'श्री सिद्धसेन दिवाकरसूरिजी ने प्रथम मूलगाथा में तो श्री जिनशासन का स्तव किया है, नमस्कार नहीं किया, फिर भी यहाँ नमस्कार का उल्लेख कैसे किया ?' - बात ठीक है कि 'नमामि' इत्यादि प्रयोग करके शासन को नमस्कार नहीं किया है, किन्तु गहराई से देखा जाय तो उस प्रथम मूल गाथा की व्याख्या में श्री अभयदेवसूरिजी ने कहा है कि 'शासन' ही अभीष्ट देवता है और असाधारण गुणोत्कीर्तन ही पारमार्थिक स्तव है । नमस्कार का अर्थ भी पूजा है और स्तव एक पूजा का ही विशेष प्रकार है, इसी अभिप्राय से ही व्याख्याकार ने शासनस्तव का 'इष्टदेवता नमस्कार' पद से उल्लेख किया है। श्री हरिभद्रसूरिजी ने 'नमुत्थु णं' सूत्र की व्याख्या में लिखा है . 'नमः शब्दः पूजार्थः' । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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