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________________ द्वितीयगाथा विवरण समाप्त तृतीयगाथा सव्याख्या तृतीयगाथाव्याख्यारम्भ मूल गाथा का शब्दार्थ तृतीयगाथा के शब्दों का व्युत्पत्ति - अर्थ द्रव्यास्तिकपद का शब्दार्थ पर्यायास्तिक व्युत्पत्ति आदि मूल नय सिर्फ दो ही हैं शुद्ध द्रव्यास्तिकनय-संग्रहनयवत् प्ररूपणा एक तत्त्व दर्शक आर्ष वाणी देशभेद से भेद प्रत्यक्षग्राह्य नहीं है कालभेद से वस्तुभेद प्रत्यक्ष से अग्राह्य स्मृति द्वारा कालभेद से वस्तुभेद अग्राह्य पूर्वकालीन अर्थभेदप्रतिभास अशक्य अपरोक्ष नीलादिआकारव्यतिरिक्त बोधात्मा असत् बोध सव्यापार होने में अनुपपत्ति बोधव्यापार सव्यापार होने पर अनवस्था स्वप्रकाश नीलादिपक्ष में भेदस्फुरण अशक्य भेदपक्ष में चरम परमाणु की सिद्धि दुष्कर 'सर्व सत्' प्रतीति से अभेद सिद्धि शक्य दर्शन - स्मरण की मिलित सामग्री से भेदवेदन अशक्य मुमुक्षुप्रयत्न अविद्या का निवर्त्तक अविद्यानिवृत्ति के असम्भव की आशंका अविद्या मीमांसा और उसकी निवृत्ति जीवाश्रित अविद्यापक्ष में प्रश्नोत्तर अनादि एवं निष्प्रयोजन अविद्या द्वैतापत्ति और उसका निराकरण विद्या का उद्भव और अविद्या के नाश की प्रक्रिया असत्य के द्वारा सत्य की प्राप्ति कैसे ? बोधकता के बदले स्मारकता, शंका समाधान Jain Educationa International २६४ २६५ २६५ २६५ २६६ २६७ २६८ २६९ २७० २७१ २७२ २७३ २७३ २७४ २७५ २७६ २७७ २७८ २७९ २८० सुख - दुखानुभूति, बन्ध-मोक्षव्यवस्था कैसे ? २९३ अशुद्धद्रव्यास्तिक-सांख्यदर्शन व्यवहारालम्बी नयः २९४ व्यवहारालम्बी अशुद्धद्रव्यार्थिक नय २९४ सांख्यदर्शन की सृष्टि प्रक्रिया २९५ ईश्वरकृष्ण की कारिका का विशेषार्थ २९६ कार्यभेद कारण से अत्यन्त भिन्न नहीं है २९६ २९७ व्यक्त और अव्यक्त में विलक्षणता सत्कार्यवादसाधक हेतुश्रेणि २९९ ३०० ३०१ सत्कार्यसिद्धि में सर्वसम्भवाभाव हेतु शक्तिशालि हेतु से शक्यकार्यजन्म सत्कार्यसाधक पाँचवा हेतु कारणभाव प्रधानतत्त्व के आविर्भाव में पाँच अनुमान दूसरा हेतु - भेदों का समन्वय ३०३ ३०३ ३०४ तीसरा हेतु शक्ति अनुसार प्रवृत्ति ३०५ प्रधानसाधक चौथा हेतु-कारण- कार्यविभाग पाँचवा हेतु - वैश्वरूप्य का अविभाग पर्यायास्तिकनपनिरूपण २८९ २९० २९१ (१) सदद्वैतप्रतिक्षेपकः पर्यायास्तिकनयः पर्यायास्तिकनयप्ररूपण-अद्वैतप्रतिक्षेप भेद नहीं किन्तु अभेद ही कल्पित है प्रत्यक्ष की भेदग्राहिता का उपपादन देशान्तरस्थभेदानुगम की अनुपपत्ति २८१ २८२ २८३ २८४ अभेदानुसन्धान के लिये आत्मा असमर्थ २८५ अभेदसाधक पूर्वापरकालसम्बन्धिता असिद्ध २८६ प्रत्यक्षजन्य अनुमान से अभेदग्रह अशक्य कालान्तरस्थायित्व में संदेहविषयता भी अशक्य नाशहेतुविरह में स्थायित्व - सिद्धि की आशा व्यर्थ २८७ अनुगत सद्रूपत्व का अनुभव असम्भव प्रत्यभिज्ञा से, अनुगतसद्रुपत्व का अवगम अशक्य मुगरघातादिकाल में ही नाश का अभ्युपगम अप्रामाणिक For Personal and Private Use Only ३०५ ३०५ ३०६ ३०६ ३०७ ३०८ ३१० ३११ ३११ ३१३ ३१४ ३१५ ३१६ ३१७ ३१८ www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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