________________
प्रथम खण्ड-का० १ प्रामाण्यवाद
B अथ प्रमेयं बाध्यत इत्यभ्युपगमः, सोऽप्ययुक्तः, यतः B1 प्रमेयं बाध्यमानं कि प्रतिभासमानरूपेण बाध्यते, B2 उताऽप्रतिभासमानरूपसहचारिणा स्पर्शादिलक्षणेनेति विकल्पनाद्वयम् । BIतत्र यदि प्रतिभासमानेन रूपेण बाध्यत इति मतम् , तदयुक्तम् , प्रतिभासमानस्य रूपस्याऽसत्त्वाऽसंभवात् । अन्यथा सम्यग्ज्ञानावभासिनोऽप्यसत्त्वप्रसङ्गः। B2 अथाऽप्रतिभासमानेन रूपेण बाध्यत इति मतम् , तदप्ययुक्तम् , अप्रतिभासमानस्य प्रतिभासमानरूपादन्यत्वात् । न चान्यस्याभावेऽन्यस्याभावः, अतिप्रसंगाव।
C अथार्थक्रिया बाध्यते, ननु सापि C1 किमुत्पन्ना बाध्यते, C2 उतानुत्पन्ना? C। यद्युत्पन्ना, न तहि बाध्यते; तस्याः सत्त्वात् । C2 अथानुत्पन्ना, साऽपि न बाध्या, अनुत्पन्नत्वादेव । कि च, अर्थ
ही नष्ट हो जाने का मानते हैं, जो नष्ट है उस पर बाधक की प्रवृत्ति क्या कर सकती है ? अर्थात् वह सफल नहीं हो सकती। जैसे कि कहा गया है - 'दैवरक्ता हि किंशुकाः' । अर्थात् किंशुक यानी पलाश के पुष्प निसर्गतः रक्तवर्णवाले होते हैं, इसलिये अब इसको फिर से रक्तवर्ण चढाने की जरूर नहीं है । अब कोई प्रयत्न करे भी तो वह व्यर्थ जाता है ।
[प्रमेय का बाध-दूसरा विकल्प अयुक्त है ] __B अगर कहें-संभवित बाधक से विज्ञान का स्वरूप नहीं किन्तु विज्ञान का प्रमेय यानी विषय बाधित होता है तो वह भी युक्त नहीं है, क्योंकि यहाँ दो प्रश्न हैं- B1, बाधित होने वाला विषय जिस रूप से भासित होता है क्या उसी रूप में बाधित होता है ? B2 या अप्रतिभासमान स्वरूप के सहचारी ऐसे स्पर्शादि धर्मरूपेण बाधित होता है ? उदा०-शुक्ति में रजतज्ञान हुआ, वहाँ विषय रजत यह क्या प्रतिभासमान रजतत्व रूप से बाधित होता है ? या अप्रतिभासमान रजतगत स्पर्शादिरूप से (या अप्रतिभासमान शुक्तित्व सहचारी स्पर्शादि रूप से) बाधित होता है ? ऐसे दो प्रश्न हैं। B1 अब इनमें से अगर प्रतिभासमानरूप से विषय बाधित होता है यह पक्ष लिया जाय तो वह अयुक्त है चूंकि जो रूप प्रतिभासमान है उसका असत्त्व असंभवित है। अर्थात् प्रतिभासमानरूप असत् नहीं हो सकता। कारण, जो असत् होता है उसका आकाशपुष्पवत् प्रतिभास ही नहीं हो सकता, अगर प्रतिभासमान है तो इसी से वह सत् सिद्ध होता है। अगर असत् वस्तु का भी प्रतिभास होता, यानी प्रतिभासमान वस्तु असत् होती तब तो सम्यग् ज्ञान में भासमान वस्तु भी असत् होने की आपत्ति आयेगी।
B2 यदि प्रतिभासमानरूप से विषय बाधित होता है-यह पक्ष लिया जाय तो वह भी ठीक नहीं है क्योंकि जो रूप अप्रतिभासमान है वह प्रतिभासमान रूप से भिन्न है, और इस भिन्नरूप से यदि विषय बाधित होता हो अर्थात् विषय का अभाव कहा जाता हो तब अन्य के अभाव में अन्य का अभाव ही फलित हुआ, और इसमें तो अतिप्रसंग आयेगा। उदा०- रजत का ज्ञान रजतत्वरूप से भी बाधित होगा अर्थात् रजत में अप्रतिभासमान शुक्तित्वरूप से बाध मानने में शुक्तित्व के अभाव से रजतत्व के अभाव की आपत्ति होगी क्योंकि आपने अन्य के अभाव से अन्य के अभाव होने का विधान अंगीकार किया है। निष्कर्ष-अप्रतिभासमान रूप से भी प्रमेय बाधित नहीं हो सकता।
[ अर्थक्रिया का बाध-तीसरा विकल्प अयुक्त ] C बाध ज्ञान से जैसे विज्ञानस्वरूप एवं प्रमेय बाधित नहीं हो सकता वैसे अर्थक्रिया भी बाधित नहीं हो सकती। अगर कहें कि अर्थक्रिया बाधित होती है तो यह बताईये कि C1 वह अर्थ
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org