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प्रथमखण्ड-का० १-उपसंहार
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उपरोक्त चर्चा से यह अब सिद्ध होता है कि मूल कारिका में "आत्मा से कथञ्चिद् अभिन्न अनुपमसुखादिस्वभाववाले स्थान को प्राप्त करने वाले" यह जिनों का विशेषण सर्वथा निर्दोष है ।
प्रथम कारिका विवरण समाप्त
तर्कसम्राट्-आचार्यश्री सिद्धसेनदिवाकरसूरिजोविरचित श्री सम्मति प्रकरण की तर्कपश्चानन आचार्यश्री अभयदेवसूरिजीविरचिततत्त्वबोधविधायिनीव्याख्या का मुनि जयसुदरविजयकृतहिन्दीभाषा विवरण-प्रथमखंड समाप्त हुआ
-: प्रथमखंड संपूर्ण :
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