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________________ ५४६ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १ अथास्मदादिप्रत्यक्षत्वविशेषणविशिष्टस्य विभद्रव्यविशेषगुणत्वस्य धर्मादावसंभवाद् न व्यभिचारः । असदेतत् , विपक्षविरुद्ध हि विशेषणं ततो हेतु निवर्तयति, यथा ( सहेतुकत्वं) अहेतुक त्व. विरुद्ध ततः कादाचिकत्वं निवर्तयति । न चास्मदादिप्रत्यक्षत्वमक्षणिकत्वविरुद्धम् , अक्षणिक प्वपि सामान्यादिषु भावात् , ततो यथाऽस्मदादिप्रत्यक्षा अपि केचित क्षणिका प्रदीपादयः, अपरेऽक्षणिकाः सामान्यादयस्तथाऽस्मदादिप्रत्यक्षा श्रपि विभुद्रव्यविशेषगुणाः केचित क्षणिका:, अपरेऽक्षणिका भविध्यन्तोति संदिग्धविपक्षव्यावृत्तिकत्वादनकान्तिको हेतुः । न दाऽस्माप्रित्यक्षत्वविशेषणविशिष्टस्य विभुद्रव्यविशेषगुणत्वस्याक्षणिकेऽदर्शनात्तो व्यावृत्तिसिद्धिः, प्रदर्शनस्यात्मसम्बन्धिनः परलोकादिनाउनैकान्तिकत्वात् , सर्वसम्बन्धिनोऽसिद्धत्वात् । न च कृतकत्वादाप्ययं दोष: समानः, तत्र विपक्ष हेतोः सद्भावबाधकप्रमाणभावात् प्रकृतहेतोश्च तस्याभावात्। धर्माधर्म में इच्छा-द्वेषजन्य ता-साध्य नहीं है । तदुपरात, धर्माधर्म को जैसे आप उत्तरोत्तरक्षण में नये नये उत्पन्न मानते हो उसी प्रकार उससे उत्पन्न भोगादि कार्य भी उत्तरोत्तरक्षण में नये नये उत्पन्न होते रहेंगे-यह अतिप्रसंग होगा। फलतः यही मानना उचित है कि शब्द से शब्द को उत्पत्ति की तरह धर्मादि से धर्मादि की उत्पत्ति नहीं होती। अतः यदि उसे क्षणिक मानेगे तो जन्मान्तर में उससे फलप्राप्ति न हो सकेगी। इसलिये धर्मादि को अक्षणिक ही मानना होगा, अत: उसके फलस्वरूप शब्द में क्षणिकत्व साधक विभुद्रव्यविशेषगुणत्वरूप हेतु धर्मादि में साध्यद्रोही ठहरेगा। [ अस्मदादिप्रत्यक्षत्वविशेषण की निरर्थकता ] यदि यह कहा जाय-'हम लोगों को प्रत्यक्ष होने के साथ' ऐसे विशेषण से विशिष्ट विभूद्रव्यविशेषगुणत्व हेतु धर्मादि में नहीं रहता है अत: वहाँ साध्यद्रोह निवृत्त हो जायेगा । तो यह गलत है विभुद्रव्यविशेषगुणत्व को धर्मादि में से निवृत्त करने के लिये आप अस्मदादिप्रत्यक्षत्व (=हम लोगों को प्रत्यक्ष होने के साथ) ऐसा विशेषण लगाते हैं किन्तु इससे विभूद्रव्यविशेषगुणत्व की धर्मादि में से व्यावृत्ति तो नहीं हो जाती, वह तो वहाँ पडा ही रहता है। (विशिष्ट शुद्ध से अतिरिक्त नहीं होतायह न्याय भी यहाँ स्मरणीय है) । जो विपक्षविरोधी विशेषण हो उसके लगाने से ही हेतु की विपक्ष से व्यावृत्ति हो सकती है जैसे कि किसी एक वस्तु में अनित्यत्व की सिद्धि के लिये कादाचित्कत्व को हेतु किया जाय तो वह विपक्षभूत नित्य अहेतुक पदार्थों में भी रह जाता है अत: सहेतुकत्व विशेषण लगा देने पर वह अहेतुकत्व का विरोधी होने से कादाचित्कत्व को अहेतुक विपक्ष से व्यावृत्ति कर देता है । यहाँ अक्षणिकत्व विपक्ष है, अस्मदादिप्रत्यक्षत्व उसका विरोधी नहीं है, क्योंकि अक्षणिक घटवादि सामान्य में वह रहता है । सच बात यह है कि जैसे हम लोगों को प्रत्यक्ष होने पर भी दीपादि कुछ पदार्थ क्षणिक होते हैं और घटत्वादि सामान्य अक्षणिक होते हैं। अत: शब्द हम लोगों को प्रत्यक्ष होने पर भी अक्षणिक होने का संदेह हो सर ता है अतः वही विपक्षरूप में संदिग्ध हआ और उसमें हेतु रहने से संदिग्धविपक्षव्यावृत्ति के कारण हेतु साध्य द्रोही बना रहेगा । यह नहीं वह सकते किअस्मदादिप्रत्यक्षावविशेष णविशिष्ट विभूद्रव्यविशेष गुणत्व हेतु अधक्षणिक किसी भी पदार्थ में असाट है अत: अक्षणिकवस्तु से उसकी व्यावृत्ति सिद्ध हो जायेगी क्योंकि अपने अदर्शनमात्र से यदि किसी को निवृत्ति हो जाती हो तो परलोकादि भी निवृत्त हो जायेंगे किन्तु वे निवृत्त नहीं होते अतः अपना अदर्शन तो निवृत्ति का विद्रोही हुआ। यदि सर्वसम्बन्धी अदर्शन कहेंगे तो वही असिद्ध है । यदि कहें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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