________________
३१
पृष्ठांकः विषयः
पृष्ठांकः विषयः ५६८ क्रियाहेतुगुणत्वाव-इस हेतु की समीक्षा | ५८८ दर्शनादिव्यवहार से विपरीत कल्पना में ५६९ अन्यत्र वर्तमान अदृष्ट की हेतुता अनुपपन्न
बाधप्रसंग
५८६ देदमात्रव्यापी आत्मसाधक अनुमान में बाध ५७० अचल अदृष्ट से आकर्षण की अनुपपत्ति
दोष का निरसन ५७१ क्रिया का कारण अयस्कान्त का स्पर्शादि
५६० आहार कवल के दृष्टान्त में साध्य-शून्यता गुण ही है।
५९१ आत्मा के गुण देह से अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते ५७२ अयस्कान्त से लोहाकर्षण में अदृष्टहेतुता
५९२ देह में प्रात्मा को संकुचित वृत्ति मानने में का निरसन
बाधक ५७३ अदृष्ट को पूरे प्रात्मा में मानने पर आपत्ति ५६३ आत्मा में नश्वरता की आपत्ति नहीं ५७३ अष्ट में गुणत्वसाधक हेतु में संदिग्ध-साध्यद्रोह | ५९४ क्रियादिक्रम से द्रव्य नाश की प्रक्रिया का ५७४ अञ्चन और प्रयत्न दोनों स्थल में अन्य की
निरसन कारणता समान
५६५ मुकिम्वरूप मीमांसा ५७५ न्यायमत में देवदत्त शब्द के वाच्यार्थ की ५६५ प्रात्मा को मुक्तावस्था कैसी है ?
अनुपपत्ति ५९५ विशेषगुणोच्छेदस्वरूपमुक्ति-नैयायिक ५७६ शरीरसंयुक्त प्रात्मप्रदेशों को 'देवदत्त' नहीं ५६६ मुक्ति का हेतु तत्त्वज्ञान
कह सकते ५९६ उपभोग से ही कर्मविनाश की उपपत्ति ५७६ अन्य अन्य प्रात्मप्रदेश मानने में अनवस्था ५६७ तत्वज्ञानी को भी भोग में प्रवृत्ति युक्तियुक्त
दोष
५६८ नित्यनैमित्तिक अनुष्ठान का प्रयोजन ५७७ सर्वत्र उपलभ्यमानगुणत्व हेतु विरुद्ध या ५६८ मुक्ति परमानन्दस्वरूप-वेदान्तपक्ष
असिद्ध ६०० मुक्तिसुखवादिवेदान्तपक्ष का निरसन ५७८ आत्मा में मूर्तत्व की आपत्ति का निरसन ६०१ नित्यसुखसंवेदन में प्रतिबन्ध की अनुपपत्ति ५७९ सक्रियता के द्वारा मूर्तत्व की सिद्धि दुष्कर ६०२ अनित्य सुखसंवेदन की मुक्ति में अनुपपत्ति ५८० सक्रियता के द्वारा अनित्यत्व की आपत्ति का ५०२ मुमुक्षु की प्रवृत्ति इष्टप्राप्ति के लिये या निरसन
अनिष्टत्याग के लिये ? ५८१ विभुत्व के द्वारा आत्मा में महत परिमाण ६०३ अनिष्टाननुषक्त इष्ट का सद्भाव नहीं होता
की सिद्धि दुष्कर
६०४ आगम से नित्यसुख की सिद्धि अशक्य ५८१ आत्मविभुत्साधक पूर्वपक्षी के अनुमान की
६०४ दुःखाभावार्थक प्रवृत्ति मानने में मोक्षाभाव असारता
की आपत्ति ५८२ देहमात्रव्यापक आत्मा स्वसंवेदनसिद्ध
६०६ रमणीय विषयों से सुख विशेष की सिद्धि ५८२ अविभुत्वसाधक प्रमाण का अभाव नहीं ६०६ अभिलाषनिवृत्ति द्वारा सुखानुभव को शंका ५८३ हेतु में असिद्धता का उद्भावन-पूर्वपक्ष ६०६ भोग से इच्छा निवृत्ति प्रशक्य ५८४ देवदत्त के गुणों को अन्यत्र सत्ता असिद्ध- ६०७ अभिलाषतीव्रता से तीव्रसुखाभिमान की उत्तरपक्ष
शंका गलत ५८४ धर्माधर्म आत्मा के गुण नहीं है
६०७ दु.खाभाव अर्थ में भी सुख शब्द का प्रयोग५८५ धर्माधर्म स्वसंविदित ज्ञानरूप नहीं है
नैयायिक ५८६ अचेतन धर्माधर्म का साधक प्रमाण ६०८ स्वप्रकाश वस्तु के आवरण को असंगति ५८७ प्राग्भवीय शरीरसम्बन्ध को आत्मा में सिद्धि | ६०६ मुमुक्षुप्रवृत्ति द्वेषमूलक नहीं होती
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org