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________________ पृष्ठांक: विषयः पृष्ठांकः विषयः ५३१ सावशेषप्रघातिकर्ममूलक शासनस्थापना की | ५५० क्षणिकबुद्धि पक्ष में कारण-कार्यभाव को संगति अनुपपत्ति ५३१ शासनस्थापना कार्य की उपपत्ति अबाधित ५५१ विनश्यवस्थावाले कारण से कार्यात्पत्ति ५३२ आत्मविभुत्वस्थापन-पूर्वपक्षः ५३२ प्रात्मविभूत्व, मुक्ति में सुखाभाव मतद्वय का ५५१ ज्ञान में षटक्षणस्थिति भी अनुपपन्न निरसन ५५२ बुद्धिक्षणिकत्वपक्ष में कालान्तरावस्थान की ५३३ आत्मा सर्वव्यापी है-वैशेषिकपूर्वपक्ष अप्रसिद्धि ५३३ बुद्धि में गुणात्मकतासिद्धि के लिये अनुमान ५५३ बुद्धि के सम्बन्ध से आत्मचैतन्य की कल्पना ५३४ सामान्यविशेषवत्त्व विशेषण की सार्थकता प्रयुक्त ५३४ बुद्धि में क्रियारूपता का निषेधक अनुमान ५५३ सहकारियों से उपकार की बात असंगत ५३५ हेतु में असिद्धि प्रादि का निरसन ५५४ शब्द में गुणहेतुक द्रव्यत्व की सिद्धि ५५४ शब्द में स्पर्शवत्ता का समर्थन ५३६ आत्मविभुत्वनिरसनं-उत्तरपक्ष: ५५५ श्रोत का अभिघात शब्दकृत ही है ५३६ प्रात्मा व्यापक नहीं है-उत्तरपक्षः ५५६ परिमाण से शब्द में द्रव्यत्व की सिद्धि ५३६ बुद्धि आकाश का गुण क्यों नहीं ? ५३७ बुद्धि और आत्मा को अन्योन्यप्रतीति का ५५७ इयत्ता के अनवबोध से परिमाण का निषेध प्रसंभव अनुचित ५३८ बुद्धि में परोक्षात्मगुणता असंगत ५५७ प्रल्प-महान् प्रतीति तीव्रमन्दतामूलक ५३८ आत्मा को प्रत्यक्ष मानने में देहपरिमाण की ५५८ संयोग के प्राश्रयरूप में द्रव्यत्व की सिद्धि नहीं सिद्धि ५५९ आश्रय की गति से शब्दगुण की गति अयुक्त ५३९ अनुमान से प्रत्यक्ष का बाघ अयुक्त ५५६ संख्या के सम्बन्ध से शब्द में गुणवत्ता की ५४० परमाणुपाकजगुणों में कार्यत्वव्यभिचार की सिद्धि आशंका ५६० एकद्रव्यत्वहेतु से द्रव्यत्व की सिद्धि अशक्य ५४० दृष्टान्त में साध्य साधनविकलता न होने ५६० शब्द में अनेक द्रव्यत्वसाधक प्रतिअनुमान की शंका ५६१ वायु का स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष प्रतीति-सिद्ध है ५४१ दृष्टान्त में अन्योन्याश्रय दोषापत्ति ५६१ चन्द्रसूर्यादिस्थल में हेतु साध्यद्रोही ५४१ शब्दो द्रव्यं कियावत्त्वात ५६२ सत्तासम्बन्धित्वघटित हेतु में अनेक दोष ५४१ शब्द में द्रव्यत्वसाधक चर्चा ५६३ आत्मविभुत्वसाधक अन्य अनुमान का निरसन ५४२ जलतरंगन्याय से अनेक शब्दों की कल्पना | ५६४ ज्ञान प्रात्मा का विशेषगुण कैसे? ५४३ शब्द में एकत्व की प्रत्यभिज्ञा निर्वाध है | ५६४ आत्मविभुत्वसाधक हेतुओं में बाध दोष ५४४ शब्द में क्षणिकरवसाधक अनुमान का असंभव | ५६५ अदृष्ट का प्राश्रय व्यापक होने का अनुमान५४५ धर्मादि में क्षणिकत्व नहीं हो सकता पूर्वपक्ष ५४५ धर्माधर्म में इच्छा-द्वेषनिमित्तकत्व-अभाव ५६५ अदृष्ट में एकद्रव्यत्व के अनुमान का पृथक्की प्रापत्ति करण ५४६ अस्मदादिप्रत्यक्षत्वविशेषण की निरर्थकता | ५६६ अदृष्ट के आश्रय की व्यापकता के अनुमान ५४७ अदर्शनमात्र से विपक्षनिवृत्ति असिद्ध में आपत्तियां-उत्तरपक्ष ५४८ शब्द में गुणत्व सिद्ध करने में चक्रक दोष | ५६७ गुण-गुणी में कथंचिद् भेदाभेदवाद से आत्म५४९ ज्ञान में विभुद्रव्यविशेषगुणत्व की सिद्धि दुष्कर व्यापकता असिद्ध प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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