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________________ पृष्ठांक . . - - - - विषयः पृष्ठांकः विषयः ४६८ नित्य होने मात्र से कार्यत्व की निवृत्ति | ५१३ मुखादि के प्रभाव में वक्तृत्व की अनुपपत्ति अशक्य ५१४ देहादि के विरह में ईश्वरसता की प्रसिद्धि ४६६ विपक्ष में हेतु के अभाव की सिद्धि में अन्यो ५१५ कुम्हारादि में सर्वज्ञत्व की प्रसक्ति न्याश्रय | ५१५ क्षेत्र में सर्वज्ञ के अधिष्ठितत्व के अनुमान ४९९ प्रसिद्ध अनुमानों में विपक्ष में बाधक का ___ की परीक्षा सद्भाव | ५१६ अनवस्थादोष से पूर्वसिद्धि में अप्रामाण्य का ५०० हेतु में विशेषविरुद्धता का प्रबल समर्थन ज्ञापन ५०० अनीश्वरत्वादि के साथ कार्यत्व का व्यभि ५१६ सर्वज्ञ की सिद्धि में प्रागम प्रमाण कैसे ? __ चार नहीं ५१७ सत्तामात्र से ईश्वराधिष्ठान को अनुपपत्ति ५०१ कार्यत्व हेतु में संदिग्धविपक्षव्यावृत्ति और ५१७ सत्तामात्र से अधिष्ठान में असिद्धि दोष ५१८ इन्द्रियनिरपेक्ष ज्ञानव मुक्ति में सुखादि की ५०१ गुणत्व को सिद्धि से अनित्यत्व का ध्रय प्रसक्ति व्याघात ५१९ धर्म के विरह में सम्यग्ज्ञानादि का प्रभाव ५०२ विशेषविपर्यय का उद्धावन सार्थक नहीं है। ५१६ अनाप्तकामता से अनीश्वरत्व का पापादन ५०३ देहधारणादिक्रिया में देहयोग अविनाभावि है | | ५२० क्रीडा के लिए ईश्वरप्रवृत्ति की बात अनुचित ५०४ अचेतनव चेतन में भी चेतनाधिष्ठान की | ५२० इश्वर में करुणामूलक प्रवृत्ति असंगत आपत्ति ५२१ ईश्वर में कर्मपरतन्त्रता की आपत्ति ५०४ 'अचेतन' विशेषण में नैरर्थक्य को प्रापत्ति ५२२ सहकारीसंनिधान से सुखादिकर्तृत्व के ऊपर ५०५ सकल कार्यों की एक साथ पुनः पुनः उत्पत्ति का प्रसंग ५२३ ईश्वर में स्वभावभेदोपत्ति ५०६ विपक्षविरोधी विशेषण के विना व्यभिचार ५२४ शिषिकाबहनादि एक कार्य की अनेक से अनिवार्य उपपत्ति ५०७ नित्यज्ञान पक्ष में एक साथ जगत-उत्पत्ति ५२४ नित्यत्वादिविशेष के विरुद्ध अनुमानों का का प्रसंग औचित्य ५०७ अविकलकारणत्व हेतु में असिद्धिदोष की ५२५ अनित्यत्व हेतु से बुद्धिमदधिष्ठितत्व की प्राशंका प्रसिद्धि ५०६ अविकलकारणत्व हेतु में अनैकान्तिकता ५२६ अनित्यत्व हेतु में असिद्ध-विरुद्धादि दोषप्रसंग दोष नहीं | | ५२७ 'उत्तरकाल में प्रबुद्ध' होने की बात प्रसिद्ध है ५१० बुद्धि के प्राधाररूप में ईश्वर कल्पना निरर्थक | ५२७ व्यवहार म इश | ५२७ व्यवहार में ईश्वरोपदेशपूर्वकत्व की प्रसिद्धि ५१० बुद्धि में गुणरूपता की सिद्धि कैसे ५६८ सप्तभुवन में एक व्यक्तिकर्तृकत्व की अनु५१० ज्ञान से समवेतत्व का निश्चय अशक्य पपत्ति ५११ स्व के अग्राही ज्ञान से पर का ग्रहण अशक्य | ५२९ परस्परातिशयवृत्तित्वहेतुक अनुमान भी ५१२ प्रसंगसाधन के बाद विपर्ययप्रयोग सदोष है ५१२ शरीरसम्बन्धकर्तृत्व का व्यापक | ५३० भवविजेताओं का शासन-यह कथन सुस्थित है ५१३ कारकशक्तिज्ञान वरूप कर्तृत्व अनुपपन्न | ५३०'ठाणमणोव नसुहमुवगयाण' पदों की सार्थकता विकल्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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