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सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १
दिकालसम्बन्धित्वावस्यातीतादित्वमभ्युपगम्यते येनाऽनवस्था स्यात् । नापि पदार्थानामतीतावित्वेन कालस्यातीतादित्वम् येनेतरेतराश्रयदोषः । किन्तु स्वरूपत एवातीतादिसमयस्यातीतादित्वम् । तथाहिअनुभूतवर्तमानत्व: समयोऽतीत इत्युच्यते, अनुभविष्यद्वर्तमानत्वश्चाऽनागतः, तत्सम्बन्धित्वात् पदार्थस्याप्यतीतानागतत्वेऽविरुद्ध ।
अथ यथातीतादेः समयस्य स्वरूपेणैवातीतादित्वं तथा पदार्थानामपि तद्भविष्यतीति व्यर्थस्तदभ्युपगम:-एतच्चात्यन्ताऽसंगतम् , नोकपदार्थधर्मस्तदन्यत्राप्यासजयितुयुक्तः, अन्यथा निम्बादेस्तिक्तता गडादावल्यासञ्जनीया स्यात।न च साऽत्रैव प्रत्यक्ष सिद्धा इत्यन्यत्रासजनेतद्विरोध इत्युत्तरम्, प्रकृतेऽप्यस्योत्तरस्य समानत्वात । भवतु पदार्थधर्म एवातीतादित्वं तथापि नास्माकमभ्युपगमक्षतिः, विशिष्टपदार्थपरिणामस्वातीतादिकालत्वेनेष्टः, “परिणाम-वर्तना-दिवि-(? विधि-)पराऽपरत्व'[प्रशमरति-२१८ ] इत्याद्यागमात् । तथाहि-स्मरणविषयत्वं पदार्थस्यातीतत्वमुच्यते, अनुभवविषयत्वं वर्तमानत्वम्, स्थिरावस्थादर्शनलिंगबलोत्पद्यमान-कालान्तरस्थाय्ययं पदार्थ:-इत्यनुमानविषयत्वं धर्मोऽनागतकालत्वमिति ।
मानकालसंबन्धितया सत् होती है-असत् नहीं होती, उसी प्रकार अतीत वस्तु अतीतकालसंबंधीतया सत् ही होने का संभव है, असत क्यों ?
[ अतीतकाल का असत्त्च असिद्ध है। यदि यह कहा जाय-"अतीतादि काल वर्तमान में न होने से अतीतकालसंबंधी वस्तु भी वर्तमान में नहीं है। अतीतकाल का असत्त्व तो पूर्वपक्षवादी ने अनवस्था और इतरेतराश्रय दोष के प्रतिपादन [पृ. २१७ ] द्वारा पहले ही घोषित किया हैं।"- तो यह ठीक है कि, पूर्वपक्षी ने अतीतकाल के असत्त्व की घोषणा की है किंतु वह संगत नहीं है । जैसे-हम लोग अन्य अन्य अतीतकाल के संबन्ध से काल को अतीत नहीं मानते हैं जिससे अनवस्था को अवकाश मीले, तथा पदार्थों के अतीतत्वादि धर्म के आधार पर काल को अतीत नहीं मानते हैं जिससे अन्योन्याश्रय दोष अवसर प्राप्त हो सके। अतीतादि समय को हम अपने स्वरूप से ही अतीत मानते हैं । जैसे-जिस समय को वर्तमानता पर्याय प्राप्त हो चुका है वह समय अतीत कहलाता है। जिस पमय को वर्तमानता पर्याय प्राप्त नहीं हआ वह समय अनागत कहलाएगा । स्वरूपत: अतीत और अनागत काल के सम्बन्ध से अन्य पदार्थ को अतीत एवं अनागत मानने में कोई विरोध न
[ पदार्थों में कालवत स्वरूपतः अतीतत्वादि का असंभव ] शंका-अतीतादि समय में यदि स्वरूपतः अतीतत्वादि मानते हैं तो पदार्थों को भी स्वरूपत: अतीतादि मान लेने से अतीतकालादि की कल्पना व्यर्थ होगी।
उत्तर-यह शंका अत्यन्त असंगत है, जो एकपदार्थ का प्रसिद्ध धर्म है उस का दूसरे पदार्थ में प्रसंजन करना उचित नहीं है । नहीं तो नीम आदि की कटुता का गुडादि द्रव्य में भी प्रसंजन किया जा सकेगा । यह उत्तर भी ठीक नहीं है कि "कटुता धर्म नीम में प्रत्यक्षसिद्ध होने से गुडादि में उसका प्रसंजन अशक्य है" क्यों कि ऐसा उत्तर कालपक्ष में भी समान ही है । काल में अतीतत्वादि धर्म सर्वजनप्रसिद्ध है अतः अन्यत्र उस का प्रसंजन नहीं हो सकता।
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