SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५० सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड-१ दोषसद्भावात् तदावृतत्वेन सर्वविद्विज्ञानस्याभावः स्यादिति स एव दोषः । आकस्मिकत्वेऽपि मिथ्याज्ञानस्य हेतुव्यतिरेकेणापि प्रवत्तेस्तत्कार्यभूतरागादीनामपि प्रवृत्तिरिति पुनरपि सर्वज्ञज्ञानाभावः । अहेतुकस्य च मिथ्याज्ञानस्य देशकाल-पुरुषप्रतिनियमाभावोऽपि स्यादिति न चेतनाऽचेतनविभागः । न च तत्प्रतिपक्षभूतस्योपायस्याऽपरिज्ञानम् , मिथ्यात्वविपक्षत्वेन सम्यज्ज्ञानस्य निश्चितत्वात् । तदुत्कर्ष मिथ्याज्ञानस्यात्यन्तिकः क्षयः । तथाहि-यदुत्कर्षतारतम्याद् यस्यापचयतारतम्यं तस्य विपक्षप्रकर्षावस्थागमने भवत्यात्यन्तिकः क्षयः, यथोष्णस्पर्शस्य तथाभूतस्य प्रकर्षगमने शीतस्पर्शस्य तथाविधस्यैव । सम्यगज्ञानोपचयतारतम्यान विधायी च मिथ्याज्ञानापचयतरतमादिभावः इति तदुत्कर्षऽस्यात्यन्तिकक्षयसद्भावात तत्कार्यभूतरागाद्यनुत्पत्तेरावरणभावः सिद्धः। रागादिविपक्षभूतवैराग्याभ्यासाद वा रागादीनां निर्मूलतः क्षय इति कथं नावरणाभावः ? [ रागादि नित्य और आकस्मिक नहीं है ] २-रागादि नित्य भी नहीं है, यदि वे नित्य होते तो सर्वज्ञज्ञान का ही अभाव हो जायेगा जब कि आगे दिखाये जाने वाले प्रमाण से सर्वज्ञज्ञान निश्चित है। ३-रागादि यह आकस्मिक भी नहीं है क्योंकि फिर से वही सर्वज्ञज्ञान का अभाव हो जाने की आपत्ति होगी। ४-रागादि का उत्पादक हेतु अप्रसिद्ध है ऐसा भी नहीं है क्योंकि-'रागादि का जनक मिथ्याज्ञान है' यह तो सर्वत्र प्रसिद्ध है । ५-यह मिथ्याज्ञान नित्य भी नहीं है । यदि वह नित्य होगा तो वही एकमात्र अविकल कारणरूप होने से मिथ्याज्ञान के सर्वदा रहने पर प्रवाह से उत्पन्न होने वाला रागादि दोषगण भी सदा अवस्थित रहने से ज्ञान उससे सदा ही आवृत्त रहेगा तो सर्वज्ञज्ञान के अभाव की वही पूर्वोक्त आपत्ति ध्रुव रहगा । मिथ्याज्ञान को आकस्मिक कहेंगे तो विना हेतु वह प्रवर्तमान रहेगा तो उसके कार्यभूत रागादि की भी प्रवृत्ति सतत रहेगी। इस प्रकार फिर से स त रहेगी। इस प्रकार फिर से सर्वज्ञज्ञानाभाव की आपत्ति होगी। मिथ्याज्ञान यदि विना हेतु उत्पन्न होगा तो अमुक ही देश, अमुक हो काल, अमुक ही पुरुष में उसके सद्भाव का नियम न रहने से सर्वदा और सर्वत्र व्याप्त हो जायेगा तो कोई भी अचेतन नहीं रहेगा फिर जड-चेतन का विभाग भी गायब हो जायेगा। |रागादि के प्रतिपक्षी उपाय का ज्ञान संभवित है ] ६-रागादि के निवारणार्थ प्रतिपक्षी उपायभूत वस्तु का ज्ञान अशक्य भी नहीं है क्योंकि यह सुनिश्चित है कि सम्यग्ज्ञान यह मिथ्याज्ञान का प्रबल विरोधी है । अतः सम्यग्ज्ञान का जितना उत्कर्ष होगा उतना ही मिथ्याज्ञान का अपकर्ष और अन्ततः क्षय भी होगा । यह इस प्रकार- जिसके उत्कर्ष की तरतमता पर जिसके अपचय की तरतमता अवलम्बित हो, उसका विपक्ष यदि प्रवर्षप्राप्त हो जायेगा तो वह अत्यन्त क्षीण हो जायेगा । उदा० शीतस्पर्श का विरोधी उष्णस्पर्श जब प्रकर्षप्राप्त हो जाता है तो उष्णस्पर्श का विरोधी शीत स्पर्श अत्यन्त क्षीण हो जाता है । प्रस्तुत में, जब जब सम्यग् ज्ञान का बहु बहुतर आदि उपचय होता है उस वक्त मिथ्याज्ञान का अपचय बहु बहुतर अंश में होता हुआ दिखाई देता है अत: सम्यग्ज्ञान की चरमोत्कर्षावस्था में मिथ्याज्ञान का आत्यन्तिक क्षय अवश्यंभावी है और उसका क्षय होने पर उसके कार्यभूत रागादि की उत्पत्ति अवरुद्ध हो जाने से आवरण की निवृत्ति सिद्ध होती है । ७-अथवा यह भी अन्य उपाय है- रागादि का विरोधी वैराग्य है, अत: उसके तीव्र अभ्यास से रागादि का समूल क्षय हो जायेगा तो आवरण का अभाव क्यों सम्पन्न नहीं होगा? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy