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________________ पृष्ठांक: विषय: २२२ सविकल्पज्ञान से कार्यकारणभाव का अवगम अशक्य २२३ कार्यकारणभावग्रह में प्रत्यक्षान्यनिमित्त की आवश्यकता २२३ कारणता पूर्वक्षणवृत्तितारूप नहीं किन्तु शक्तिरूप है २२४ अनुमान में कार्यकारणभावग्रह की अशक्ति २२४ प्रसिद्धानुमानवत् सर्वज्ञानुमान में भी व्याप्तिग्रह का संभव २२५ पक्षधर्मताविरहदोष का निराकरण २२६ असिद्धि आदि तीन दोष का निराकरण २२६ प्रमेयत्वहेतुक अनुमान में साध्यविकल्प अयुक्त है २२७ प्रमेयत्व हेतुवत् धूम हेतु में भी समान विकल्प २२८ धूम सामान्य की कल्पना में चक्रक दूषण २२६ प्रसंगसाधन में प्रतिपादित युक्तियों का परिहार २२६ प्रत्यक्षत्व और सत्संप्रयोगजत्व की व्याप्ति असिद्ध २३० किंचिज्ज्ञता और वक्तृत्व की व्याप्ति प्रसिद्ध २३१ धर्मादि के प्रत्यक्ष में तीन विकल्प २३२ तीनों विकल्प की अयुक्तता २३३ नेत्र से अतीन्द्रियार्थदर्शन की सोदाहरण उपपत्ति २३३ विषयमर्यादाभंग की आपत्ति का प्रतिकार २३४ धूमहेतुक अनुमान उच्छेद प्रतिबन्दी का प्रतिकार २३५ प्रत्यक्षानुपलम्भ से धूम में अग्निजन्यत्वसिद्धि २३५ गधे में कुम्भकारनिरूपित कार्यता आपत्ति का निराकरण २३६ धूम में अनग्निजन्यता का तीन विकल्प से प्रतिकार २३६ धूम में प्रदृश्यहेतुकत्व का निराकरण २३७ धूम में अग्निजन्यत्व का समर्थन २३७ असर्वज्ञता के साथ वक्तृत्व का सम्बन्ध २१ Jain Educationa International पृष्ठांक: विषयः २३८ वचन की संवादिता ज्ञानविशेष का कार्य असिद्ध २३८ संवादिज्ञान के विरह में संवादिवचन का असंभव २३६ अनुगत एक सामान्य के अस्वीकार में श्रापत्ति शंका-समाधान २४० तिर्यक्सामान्यवादी को विशिष्टधूम सामान्य के अबोध की आपत्ति २४१ ज्ञानविशेष - वचनविशेष के काररणकार्यभाव ग्रहण में शंका २४२ क्षयोपशमविशेष से कारण कार्यभावग्रहण २४२ कार्यकारणभाव दोनों से अतिरिक्त नहीं २४३ क्षयोपशमविशेष से कार्यकारणभाव का ग्रहण २४४ प्रत्यक्ष ही व्याप्तिसंबंध का प्रकाशक है २४५ नेत्रजन्यत्वादि चार विकल्प का निराकरण २४५ सर्ववस्तुविषयक उपदेशज्ञान का संभव २४६ चक्षुजन्यज्ञान में प्रतीन्द्रियविषयता का समर्थ २४६ अस्पष्ट ज्ञान से सर्वज्ञता नहीं मानी जाती २४७ भावनाबल से ज्ञानवैशद्य का समर्थन २४८ भित्ति आदि के आवारकत्व की भंगापत्ति २४८ सर्वज्ञज्ञान में अस्पष्टत्वापत्ति का निरसन २४६ रागादि के निर्मूल क्षय की श्राशंका का उत्तर २५० रागादि नित्य और प्राकस्मिक नहीं है २५० रागादि के प्रतिपक्षी उपाय का ज्ञान असंभवि २५१ लंघनवत् सीमित ज्ञान शक्ति की श्राशंका का उत्तर २५१ प्रतिशयित लंघन क्रिया में अभ्यास कैसे उपयोगी ? २५२ जलतापवत् सीमितज्ञान की शंका का उत्तर २५३ कपधातु के उदाहरण से नियमभंग शंका का उत्तर २५३ मिथ्याज्ञान के क्षयानंतर पुनरुद्गम का असंभव २५४ सर्वज्ञज्ञान में प्रत्यक्षत्व कैसे ? उत्तर २५५ व्युत्पत्तिनिमित्त की सर्वज्ञ प्रत्यक्ष में उपपत्ति For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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