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विषय:
२५५ अनंतपदार्थ होने पर भी सर्वज्ञता की उपपत्ति २५६ विरुद्धार्थग्राहकता में आपत्ति का प्रभाव २५६ संवेदन अपरिसमाप्ति दोष का निरसन २५७ परकोयरागसंवेदन से सरागता को प्रापत्ति नहीं
२२
२६४ प्रतीतादिकाल के प्रतिभास की उपपत्ति २६५ सर्वज्ञज्ञान में अतीतकालसम्बन्धिता की अनापत्ति २६५ सर्वज्ञरूप में सर्वज्ञ की प्रतीति अशक्य नहीं २६६ सर्वज्ञव्यवहारप्रवृत्ति प्रमाणभूत है २६७ 'कुसमय विसासणं' पद की सार्थकता २६७ वचन विशेषरूप हेतु के उपन्यास का प्रयोजन २६५ 'अविसंवादि' विशेषण की सार्थकता २६९ प्रत्यक्ष और वचनविशेष में अविसंवाद का
साम्य
२७४ उपसंहारवाक्य से प्रयोजन सिद्धि २५७ पदार्थ - इयत्ता का श्रवधारण सुलभ है २७५ हेतु की त्रिरूपता के बोध की उपपत्ति २५८ सर्वज्ञत्वादिहेत्वर्थपरिकल्पनाओं का निरसन २७६ 'समयविसासण' शब्द से व्याप्तिविशिष्ट हेतु २५८ सर्वज्ञतासाधक प्रमेयत्व हेतु में उपन्यस्त का उपसंहार दोष का निरसन २७७ व्याप्ति का ग्रहरण साध्यधर्मी और दृष्टान्त२५९ एक भाव के पूर्णदर्शन से सर्वज्ञता धर्मो में २६० पदार्थों में अन्योन्य संबन्धिता परिकल्पित नहीं २३७ पक्षबाध और कालात्ययापदिष्टता का २६१ लौकिक प्रत्यक्ष से कतिपय अर्थग्रहण निरसन २६१ नित्यसमाधिदशा में भी वचनोच्चार का संभव २६२ प्रतीतकाल का असत्त्व प्रसिद्ध है। २६२ पदार्थों में कालवत् स्वरूपतः अतीतत्वादि का असंभव
२६३ पदार्थों में स्वतः अतीतत्वादि का भी संभव २६३ सर्वज्ञज्ञान में अतीतादि का प्रतिभास अशक्यशंका
२६९ लिंगपूर्वक विशेषण की सार्थकता २७० हेतु में अनुपदेशपूर्वकत्व विशेषण की उपपत्ति २७० आगमार्थ के अभिव्यंजक सर्वज्ञ की सत्ता सप्रयोजन २७१ हेतु में श्रनन्वयव्यतिरेकपूर्वकत्व विशेषण की उपपत्ति
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विषयः
२७१ असिद्ध अनैकान्ति-विरोध का परिहार २७२ धर्मादिपदार्थसाक्षात्कारिज्ञान की सिद्धि २७३ प्रतिज्ञा निगमनवाक्य प्रयोग की आवश्य
कता क्यों ?
२७८ अर्हतु भगवान ही सर्वज्ञ कैसे ? शंका २७६ वचन विशेषत्व हेतु से सर्वज्ञ विशेष की सिद्धि २८० दृष्टान्त के विना भी व्याप्ति का निश्चय २८० 'कुसमय विसासणं' का दूसरा अर्थ २८० ईश्वरे सहजरागादिविरहनिराकरणम् २८१ अनादि सहजसिद्ध ऐश्वर्यवादी की प्राशंका २८१ आशंका के उत्तर में 'भवजिणाणं' पद की
व्याख्या
२८२ सर्वज्ञवाद समाप्त
२८२ चार्वाकेण सह परलोके विवादः २८२ परलोक के प्रतिक्षेप में चार्वाक का पूर्वपक्ष २८३ चार्वाकमत केवल दूसरेमत की कसौटी में
तत्पर
२८३ परलोक सिद्धि में प्रत्यक्षप्रमाण का अभाव २८४ परलोक सिद्धि में अनुमान प्रमाण का अभाव २८५ व्याप्तिग्रहण अशक्य होने से अनुमान का
असम्भव २८५ नास्तिकमत में अनुमान श्रप्रमाण है २८५ विषय के न घटने से अनुमान अप्रमाण २८६ श्रविनाभाव का ग्रहण दुःशक्य
२८७ श्रनुमान में विरुद्धादि तीन दोषों की प्राशंका २८८ जन्मान्तर विना इस जन्म की अनुपपत्ति यह कौन सा प्रमारण ?
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