SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमखण्ड-का० १-सर्वज्ञसिद्धिः १८९ प्रमाणान्तरगम्यत्वेऽपि तदभावो न तावदनुमानगम्यः, तदभावसाधकानुमानाभावात् । अथ 'विवादाध्यासितः पुरुषः सर्वज्ञो न भवति, वक्तृत्वात् , रथ्यापुरुषवत्' इत्यनुमानं तदभावसाधकम् । नन्वत्र कि प्रमाणान्तरसंवादिनोऽर्थस्य ववतत्वं हेतुः, उत तद्विपरीतस्य, आहोस्विद् वक्तृत्वम त्रमिति वक्तव्यम् । यदि 'प्रमाणान्तरसंवाद्यर्थस्य वक्तृत्वात्' इति हेतुस्तदा विरुद्धो हेतुः, तथाभूतवक्तृत्वस्य सर्वज्ञ एव भावात् । अथ प्रमाणान्तर विसंगदिनोऽर्थस्य वक्तृत्वात्' इति हेतुस्तदा सिद्धसाधनम्, तथाभूतस्य वक्तुरसर्वज्ञत्वेनाऽस्माभिरप्यभ्युपगमात् । अथ वक्तत्वमात्रं हेतुः । न, तस्य साध्यविपर्ययेण सर्वज्ञत्वेनाऽनुपलब्धेन सहानवस्थानलक्षणस्य, तदव्यवच्छेदस्वभावेन च परस्परपरिहारस्वरूपस्य च विरोधस्याऽभावाद् न ततो व्यावृत्तिसिद्धिरिति न स्वसाध्यनियतत्वम् , तदभावान स्वसाध्यसाधकत्वम् । अथ सर्वज्ञो वक्ता नोपलब्ध इति ततो व्यावृत्तिसिद्धिः । न, सर्वसम्बन्धिनोऽनुपलम्भस्याऽसम्भवात्, सर्वज्ञ एव वक्तृत्वमात्मन्युपलप्स्यते सर्वज्ञान्तरेण वा तत् तत्र सवेदिष्यत इति न सम्भवः सर्वसम्बधिनोऽनुपलम्भस्य । अथ सर्वज्ञस्य कस्यचिदभावात् सर्वप्तम्बन्धिनोऽनुपलम्भस्य संभवः । ननु सर्वज्ञाकारण, तुच्छस्वरूप निवृत्ति को किसी भी वस्तु के साथ कोई भी सम्बन्ध न होने से उस वस्तु के विधि-निषेध करने का कोई सामर्थ्य उस में न होने से वह सर्वज्ञाभाव की ज्ञापक नहीं हो सकती। फलित यह हुआ कि प्रथम विकल्प में प्रवर्तमान या निवर्तमान किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष सर्वज्ञाभाव को सिद्ध नहीं कर सकता। [ सर्वज्ञाभाव अनुमानगम्य नहीं है ] दूसरे विकल्प में, सर्वज्ञ का अभाव प्रत्यक्षान्य प्रमाण गम्य यदि मान लिया जाय तो भी वह प्रत्यक्षान्य प्रमाण अनुमान से गम्य नहीं माना जा सकता, कारण, सर्वज्ञाभाव का साधक कोई अनुमान अस्तित्व में नहीं है। शंका:-विवादास्पद पुरुष व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं है क्योंकि वह वक्ता है जैसे कि शेरी में घुमनेफिरने वाला पुरुष । इस अनुमान से सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध हो सकता है । उत्तर:-यहाँ वक्तृत्व हेतु के ऊपर तीन विकल्प हैं, १-प्रमाणातर से संवादी अर्थ का वक्तृत्व, २-प्रमाणान्तर विसंवादी अर्थ का वक्तृत्व और ३-केवल वक्तृत्व । ये तीन विकल्प में से यदि प्रथम विकल्प में यह कहा जाय कि प्रमाणान्तर से जिस वाक्य में संवाद मिलता है ऐसे वाक्य का वक्तत्व यानी भाषकत्व हेत है तो हेत विरुद्ध बन जायेगा क्योंकि ऐसा भापकत्व सर्वज के विना दूसरे का सम्भव न होने से हेतु सर्वज्ञ साधक ही बन जायगा। दूसरे विकल्प में उससे विपरीत, प्रमाणान्तरविसंवादी अर्थभाषकत्व हेतु किया जाय तब तो सिद्ध साधन दोष लगेगा, कारण-विसंवादी भाषण करने वाले पुरुष को हम कभी भी सर्वज्ञ नहीं मानते। यदि तीसरे विकल्प में केवल वक्तृत्व सामान्य को हेतु किया जाय तो वह सर्वज्ञविरोधी न होने से सर्वज्ञाभाव को सिद्ध नहा कर सकता क्योंकि साध्याभाव सर्वज्ञाभावाभाव यानी सर्वज्ञ आपको कहीं भी उपलब्ध ही नहीं है और जो अनुपलब्ध होता है उसके सहानवस्थानरूप विरोध नहीं होता । एवं जो अन्य का व्यवच्छेदकस्वभाववाला नहीं होता उसका परस्पर परिहार रूप विरोध भी नहीं माना जाता। वक्तृत्व सर्वज्ञ का व्यवच्छेदकन होने से सर्वज्ञपरिहारेण अवस्थित नहीं माना जा सकता। अत: केवल वक्तृत्व हेतु से सर्वज्ञ की निवृत्ति सिद्ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy