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________________ पृष्ठांक: विषयः पृष्ठांकः विषयः ५४ बाध किस का? स्वरूप, प्रमेय या अर्थ- ७७ प्रत्यक्ष से अनुमाननिरपेक्ष प्रवृत्तिव्यवहार क्रिया का? ७८ अनुमान से स्वत: प्रवृत्तिव्यवहार की सिद्धि ५५ प्रमेय का बाध-दूसरा विकल्प प्रयुक्त ७६ पूर्वपक्षव्याप्ति में हेतु की असिद्धि ५५ अर्थक्रिया का बाध-तीसरा विकल्प अयुक्त ७६ परतःप्रामाण्यसाधक अनुमान में हेतु असिद्ध ५६ प्रदुष्टकारणजन्यत्व स्वरूपविशेष नहीं हो नहीं है सकता ८० सम्यग्ज्ञान के बाद बाधाभावरूप विशेष ५७ पर्युदासन से अदुष्ट कारण गुण हो जायेंगे किस प्रकार होगा? ५८ संवादित्व को स्वरूपविशेष कहने में परतः ८० बाधकामावनिश्चय पूर्वकाल में या उत्तरप्रामाण्यापत्ति काल में? ५८ संवादित्व को स्वरूपविशेष कहने में परतः ८१ बाधकानुपलब्धि का असम्भव प्रामाण्यापत्ति ८२ बाधकानुपलब्धि के ऊपर नया विकल्प युगल ५९ प्रामाण्यनिश्चयो न स्वत:-उत्तरपक्षः (३) ८२ बाधकाभावनिश्चय संवाद से प्रशक्य ५९ संवाद की अपेक्षा दिखाने में चक्रक आदि । ८३ तीन-चार ज्ञान की अपेक्षा करने में परापेक्षा दोष नहीं है का स्वीकार ५९ प्रामाण्य का निश्चय स्वतः नहीं होता-उत्तरपक्ष ८३ कारणदोषज्ञान की अपेक्षा में अनवस्था ६. मानसप्रत्यक्ष से प्रामाण्यग्रह अशक्य । ८४ दोष का ज्ञान होने का नियम नहीं है ६१ अनुमान से भी प्रामाण्यग्रह का निश्चय अशक्य ८४ विस्तृत मीमांसकोक्ति का निराकरण ६१ संवेदनरूप लिंग से भी प्रामाण्य निश्चय अशक्य ८६ प्रेरणाबुद्धिर्न प्रमाणम् ६३ संवेदन मात्र यथार्थ होता है-इस पक्ष का ८६ प्रेरणाजनित ज्ञान दोषप्रयुक्त होने से अप्रमाण खंडन ८७ वक्ता न होने से दोषाभाव होने की शंका ६४ एक बार गुणों का निर्णय सर्वदा उपयोगी ८७ वेद में अपौरुष्यत्व सिद्ध नहीं है-उत्तर नहीं होता ८८ ज्ञातृव्यापारो न प्रमाणसिद्धः ६६ संवाद का प्रामाण्यबोध स्वत: मानने में ८८ ज्ञातृव्यापार प्रमाणसिद्ध नहीं है कोई दोष नहीं है ८९ अनुमान से ज्ञातृव्यापार का ग्रहण अशक्य ६७ अर्थ क्रिया के ऊपर शंका-कुशंका अनुपयोगी ९० तादात्म्य से गम्य-गमकभाव नहीं बन सकता ६८ साधनज्ञानपूर्वक अर्थक्रियाज्ञान में शंका का ६० तदुत्पत्तिसम्बन्ध से गमकभाव नहीं बन सकता प्रभाव ६१ विपक्षबाधक तर्क उभयत्र समान है ६९ अर्थ के विना अर्थक्रियाज्ञान अशक्य ९१ वक्त्तत्व को अनियत मानने पर नियम की ७१ प्रक्रिया से साधनज्ञान का प्रामाण्यनिश्चय सिद्धि ७३ परतः प्रामाण्य में अनवस्थादोष निरसन ९२ ज्ञातृव्यापार का नियमसम्बन्ध कैसे प्रतीत ७४ भिन्नविषयक संवाद से भी प्रामाण्य निश्चय ७६ अभ्यासदशा में प्रामाण्यानुमान के बाद | ९३ अनुमान से अन्वयनिश्चय अशक्य प्रवृत्ति-एक मत | ६४ व्यतिरेकनिश्चय से ज्ञातृव्यापार के नियम ७७ अभ्यासदशा में अनुमान विना भी प्रवृत्ति का अनिश्चय दूसरा मत | ६४ अनुपलम्भरूप अदर्शन के अनेक विकल्प होगा? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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