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पृष्ठांक
विषय:
२६ अर्थक्रियाज्ञान के प्रामाण्य का निश्चय कैसे
होगा ?
२७ अर्थ के विना भो प्रर्थक्रियाज्ञान का संभव २७ श्रर्थक्रियाज्ञान फलप्राप्तिरूप होने का कथन प्रसार है
२८ फलज्ञान में प्रामाण्यशंका सावकाश २६ भिन्नजातीय संवादीज्ञान के ऊपर अनेक विकल्प ३० अर्थक्रियाज्ञान के ऊपर समानाऽसमान कालता के विकल्प
३१ स्वतः प्रामाण्यसाधक अनुमान के हेतु में व्याप्ति की सिद्धि ३२ परतः प्रामाण्यसाधक अनुमान में व्याप्ति और हेतु की असिद्धि ३२ प्रमाणज्ञान और अप्रमाणज्ञान का तुल्यरूप नहीं है । ३३ संवादज्ञान केवल अप्रामाण्यशंका का निराकरण करता है ३४ ज्ञान में प्रामाण्यशंका करते रहने में श्रनिष्ट ३५ प्रेरणाजनित बुद्धि का स्वतः प्रामाण्य ३५ शासन स्वतः सिद्ध होने से जिनस्थापित नहीं हो सकता - पूर्वपक्ष समाप्त ३६ उत्पत्तौ परतः प्रामाण्यस्थापने उत्तरपक्ष: (१) ३६ प्रामाण्य परतः उत्पन्न होता है- उत्तरपक्ष
प्रारम्भ
३७ गुणवान् नेत्रादि के साथ प्रामाण्य का अन्वयव्यतिरेक ३७ गुणापलाप करने पर दोषापलाप की आपत्ति ३८ लोकव्यवहार में सम्यग्ज्ञान को गुणप्रयुक्त माना जाता है। ३९ प्रामाण्यरूप पक्ष में अनपेक्षत्व हेतु की श्रसिद्धि ४० अप्रामाण्यात्मक शक्ति में भी स्वतोभाव आपत्ति
४० शक्तियाँ स्वतः उत्पन्न नहीं हो सकती
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विषयः
४१ शक्ति का श्राश्रय के साथ धर्म- धर्मभाव दुर्गम है ४१ शक्ति आश्रय से भिन्ना भिन्न या अनुभय नहीं है ४२ उत्तरकालीन संवादोज्ञान से अनुत्पत्ति में सिद्धसाधन
४३ अप्रामाण्य को श्रौत्सगिक कहने की आपत्ति ४४ दोषाभाव में पर्युदास प्रतिषेध कहने में परतः प्रामाण्यापत्ति ४५ आत्मलाभ के बाद स्वकार्य में स्वतः प्रवृत्ति अनुपपन्न ४५ ज्ञान की स्वातन्त्र्येण प्रवृत्ति किस कार्य में ? ४६ अपौरुषेयविधिवाक्यजन्य बुद्धि प्रमाण कैसे मानी जाय ?
४७ वेदवचन अपौरुषेय क्यों और कैसे ? ४८ अपौरुषेय वचन न प्रमारण न अप्रमाण ४८ वेदवचन में गुणदोष उभय का तुल्य अभाव ४६ श्रपौरुषेय वाक्य का प्रामाण्य अर्थाभिव्यंजक पुरुष पर अवलंबित ५० प्रामाण्यं स्वकार्येऽपि न स्वतः - उत्तरपक्षः (२) ५० स्वकार्य में प्रामाज्य के स्वतोभाव का निराकरण उत्तरपक्ष
५१ प्रर्थतथात्व का परिच्छेदक ज्ञानस्वरूपविशेष के ऊपर चार विकल्प ५१ ज्ञान का स्वरूपविशेष अपूर्वार्थविज्ञानत्व नहीं है ५१ ज्ञान का स्वरूपविशेष बाधविरह भी नहीं है ५२ जायमान बाधविरह को सत्य कैसे माना जाय ? ५३ संवाद से उत्तरकालीन बाधाविरह ज्ञान की सत्यता कैसे ? ५३ उत्तरकालभावि बाधाविरहरूप विशेष की अपेक्षा में स्वतोभाव का अस्त ५४ पर्युदासन से बाधाभावात्मक संवाद अपेक्षा की सिद्धि
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