________________
हिन्दी विवेचन सहित सम्मतिप्रकरणव्याख्या का
* विषयानुक्रम *
पृष्ठांक: विषय:
पृष्ठांक विषयः १ पुरोवचन/व्याख्या मंगलाचरण
१५ परतः पक्ष में ज्ञान-प्रामाण्य में भेदापत्ति २ टीका के प्रारम्भ में आद्य मूल कारिका का १५ स्वस्वरूपनियतत्व और अन्यभावानपेक्षत्व अवतरण
के बीच व्याप्तिसिद्धि ३ जिन प्रवचन की स्तुति के ३ हेतु
१६ शक्तिरूप होने से प्रामाण्य स्वतः ही है ४ सम्मतिप्रकरण-आद्यगाथा
, शक्ति का प्राविर्भाव कारणों से नहीं होता प्रामाण्यवादः (१)
१७ विज्ञानकारण से प्रामाण्योत्पत्ति होने से ४ प्रामाण्यं स्वतः परतो वेति वादारम्भः
परतः कहना स्वीकार्य ,, मीमांसक का स्वतःप्रामाण्यपक्ष
१७ प्रेरणाबुद्धि और अनुमान का स्वतः प्रामाण्य ५ स्वतःप्रामाण्य का प्राशय (टीप्पण) १८ स्वकार्य परतः प्रामाण्यवाद प्रतिक्षेप:-- ६ परत: प्रामाण्यवादीका अभिप्राय
पूर्वपक्षः (२) ८ परतः उत्पत्तिवादप्रतिक्षपारम्भः
१८ स्वकार्य में प्रामाण्य को परापेक्षा नहीं हैपूर्वपक्षः (१)
पूर्वपक्ष चालु , प्रामाण्य उत्पत्ति में परतः नहीं है
१८ संवादी ज्ञान की अपेक्षा में चक्रकदोष
पूर्वपक्ष (१) १६ कारणगुण अपेक्षा के दूसरे विकल्प की , प्रत्यक्ष से व्याप्तिग्रहण का असंभव
मीमांसा ९ अनुमान से हेतु में गुणों की व्याप्ति के ग्रहण | २० कारणगुणज्ञान की अपेक्षा का कथन व्यर्थ
का असंभव
| २० परतः प्रामाण्यपक्ष में हेतु की असिद्धि १० उसी अनुमान से व्याप्तिग्रहण में अन्यो- | २१ स्वतः प्रामाण्यज्ञप्तिसाधनम पूर्वपक्षः (३)
न्याश्रय
२१ प्रामाण्य ज्ञप्ति में भी परतः नहीं-पूर्वपक्ष १० अन्य अनुमान से व्याप्तिग्रहण में अनवस्था । २१ ज्ञान में यथावस्थितार्थपरिच्छेदरूपता की १० व्याप्तिग्राहक अनुमान से सम्भवित तीन हेतु
असिद्धि में चार विकल्प ११ कार्यहेतुक अनुमान से सम्बन्ध सिद्धि का अभाव | २२ दूसरे-तीसरे-चौथे विकल्पों की समीक्षा १२ यथार्थोपलब्धि कार्य से गुणों की सिद्धि शक्य २३ संवाद की अपेक्षा प्रामाण्यनिश्चय में अनेक , दोषसिद्धि की समानयुक्ति से गुणसिद्धि
विकल्प की अनुपपत्ति का असंभव २३ एकार्थविषयपक्ष में संवाद्य-संवादक भाव १३ यथार्थत्व से गुणसामग्री की कल्पना में २४ कारणशुद्धिपरिज्ञान यह उत्तरज्ञान की प्रतिबन्दी
विशेषता नहीं है। १४ अर्थ तथा भावप्रकाशनरूप प्रामाण्य से रहित २५ भिन्नविषयक ज्ञान से प्रामाण्य का अनिश्चय
ज्ञानस्वरूप नहीं होता | २५ भिन्नजातीयसंवादी उत्तरज्ञान के अनेक विकल्प
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org