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________________ पृष्ठांकः विषयः पृष्ठांकः विषयः ६५ दृश्यानुपलम्भ के विविध विकल्प ११२ ज्ञातृव्यापार धर्मरूप है या धर्मिरूप ? ६६ कारणानुपलभ से ज्ञातृव्यापार का अभाव- | ११२ व्यापार की उत्पत्ति में अन्य व्यापार की निश्चय प्रशवय अपेक्षा है या नहीं? ९६ विरुधोपलब्धि से ज्ञातृव्यापाराभाव का | ११३ व्यापार को अन्य व्यापार की अपेक्षा है या अनिश्चिय नहीं ? ६७ अर्थप्राकट्यरूप के अभाव साधन का अनिश्चय | ११४ वस्तुस्वरूप के अनिश्चय की आपत्ति अशक्य ९७ कारणानुपलम्भ और व्यापकानुपलम्भ से | ११४ व्यापार अर्थापत्तिगम्य होने का कथन अयुक्त __ साधनाभाव का अनिश्चय | ११५ एकज्ञातृव्यापार और सर्वज्ञातव्यापार अर्था६८ सत्त्व हेतु से क्षणिकत्व के साधन का असंभव पत्तिगभ्य कैसे? ९९ साधनामाद का निश्चय विरुद्धोपलब्धि से । ११५ अर्थप्रकाशता की अनुपपत्ति से ज्ञातव्यापार अशक्य की सिद्धि प्रसंभव ९९ अभावमाण से व्यतिरेक का निश्चय दुःशषय | ११६ अर्थप्रकाशता धर्म निश्चित है या अनिश्चित ? १०० अन्यबस्तुज्ञान से व्यतिरेक निश्चय का असंभव | ११६ अर्थापत्ति-अनुमान में अभेद की आपत्ति १०१ साधनान्य स्वाऽभाव के ज्ञान से साधनाभाव | ११७ साध्यमि में अन्यथानुपपत्ति का निश्चय का निश्चय अशक्य किस प्रमाण से? १०३ अज्ञात प्रमाणपञ्चकनिवृत्ति से अभावज्ञान ११७ अर्थापत्तिस्थापक अर्थ और लिंग में तात्त्विक अशक्य भेद का प्रभाव १०४ प्रासङ्गिकमभावप्रमाणनिराकरणम् ३१८ अर्थसंवेदनरूप लिंग से ज्ञातव्यापार की १०४ मीमांसकमान्य अभाव प्रमाण मिथ्या है सिद्धि विकल्पग्रस्त १०५ प्रतियोगिस्मरण से प्रभाव प्रमाण की ११९ अर्थाप्रतिभासस्वभाव संवेदन संभव नहीं व्यवस्था दुर्घट १२० व्यापार और कारकसंबंध का पौर्वापर्य कैसे ? ५०५ अभावप्रमाणपक्ष में चक्रकावतार १२० शून्यबादादि भय से स्मृतिप्रमोषाभ्युपगम १०६ अभावप्रमाण से प्रतियोगिनिवृत्ति की असिद्धि १२१ ज्ञानमिथ्यात्वपक्ष में परतः प्रामाण्यापत्ति १०६ अभाव गृहीत होने पर प्रतियोगी का निषेध १२२ रजत का संवेदन प्रत्यक्षरूप या स्मतिरूप ? कैसे? १२३ शुक्ति प्रतिभासमान होने पर स्मृतिप्रमोष १०७ स्वयं अनिश्चित अभावप्रमाण निरुपयोगी दुर्घट है १०७ अभावप्रमाण के निश्चय में अनवस्थादि १२३ सोप का प्रतिभास और रजत का स्मृति१०८ नियमरूप संबन्ध का अन्य कोई निश्चायक प्रमोष अयुक्त है १०९ व्यापार सिद्धि के लिये नविन कल्पनाएँ। १२४ स्मृति को अनुभवरूप में प्रतीति में विप रोलख्याति प्रसंग १. अजन्य सावरूप व्यापार नित्य है सामालित्य १२४ व्यापारवादी को स्वदर्शनव्याघातसक्ति ११० व्यापार कालान्तरस्थायि नहीं हो सकता ११० क्षणिक अजन्य व्यापार पक्ष भी अयुक्त है १२५ स्मृतिप्रमोष के स्वीकार में भी परतः १११ जन्य व्यापार कियारूप या प्रक्रियारूप? प्रामाण्य का भय १११ अक्रियात्मक व्यापार ज्ञानरूप है या अज्ञान १२५ स्मृतिप्रमोषस्वीकार में शून्यवाद भय रूप? स्मृतिप्रमोष के ऊपर विकल्पत्रयी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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