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सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १
जन्यत्वेनाऽपौरुषेयत्वाऽम्भवात । नाप्यभिव्यक्तिक्रमस्य, अभिव्यक्त्यभावे तत्क्रमस्याप्यभावात, तत्पौरुषेयत्वे तस्यापि पोरुषेयत्वात् ।
___ अथैवं पौरुषेयत्वस्यानादिसिद्धस्य केनचिदादावकृतस्य सर्वपुरुषैः परिग्रहात पुरुषाणां स्वा. तन्त्र्याभावादपौरुषेयत्वमुच्यते । तदुक्तम्-[श्लो० वा० स-६ श्लो० २८८-२९०]
"वक्ता न हि क्रम कश्चित स्वातन्त्र्येण प्रपद्यते । यथैवास्य पररुक्तः तथैवैनं विवक्षति ॥
परोऽप्येवं ततश्चास्य संबन्धवदनादिता। तेनेयं व्यवहारात स्यादकौटस्थ्येऽपि नित्यता। यत्नतः प्रतिषेध्या नः पुरुषाणां स्वतन्त्रता।" इति ।
एतदसंबंद्धम् - अपौरुषेयत्वप्रतिपादकप्रमाणस्याऽसिद्धत्वात् । अथ वर्णक्रमस्याऽपौरुषेयत्वमा भ्युपगम्यते । तदप्यचारु, वर्णानां नित्यत्वेन कालकृतस्य तन्तुपटवत् व्यापकत्वेन देशकृतस्य मुक्तावलीमुक्ताफलमालावद अस्याऽसंभवात् ।
____C अभिव्यक्ति तो नित्य नही है क्योंकि वर्णसंस्कारादि किसी भी रूप में उसकी उपपत्ति न होने से उसका निषेध किया जा त्रुका है। यदि निपेध का स्वीकार न करे तो भी पुरुषप्रयत्न से
आंदोलित वायू द्वारा उस अभिव्यक्ति का जन्म होने से, अभिव्यक्ति को मानने पर भी उस का अपौरुषेयत्व नहीं घट सकेगा।
___D अभिव्यक्ति के क्रम को भी नित्य नहीं कह सकते । कारण, जब D अभिव्यक्ति ही असत् है तो उसका क्रम भी असत है और यदि अभिव्यक्ति को सत् माने तो भी वह उपरोक्त रीति से पौरुषेय होने से उसका क्रम भी पौर पेय ही मानना पडेगा ।
[ पुरुषस्वातंत्र्य निषेधमात्र में अभिप्राय होने की शंका ] अपौरुषेयवादी:-आपने जो अभिव्यक्ति और उसके क्रम को पौरषेय दिखलाया उसमें हमारा विरोध नही है किंतु इस प्रकार की अभिव्यक्ति प्रवाह से अनादिकालीन सिद्ध है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि पहले किसी ने ऐसी अभिव्यक्ति न की हो और बाद में किसी ने उसका प्रथन प्रथम प्रारंभ किया हो । तात्पर्य, सभी सज्जनों ने पूर्वकाल में जैसी अभिव्यक्ति चली आती थी ऐसी ही अभिव्यक्ति को अपनाया । स्वतंत्ररूप से किसी ने भी वेद रचना नहीं की। इस प्रकार वेद रचना में किसी भी पुरुष का स्वातन्त्र्य न होने से हम उसे अपौरुषेय कहते हैं। जैसे कि श्लोकवात्तिक में कहा है
"कोई भी वक्ता ने स्वतन्त्ररूप से कम नहीं बनाया । जैसा क्रम उस को पूर्वजो ने बताया वैसा ही उसने भी बोलने को चाहा । दूसरे ने भी ऐसा किया। इसलिने संबंधवत् इस की भी अनादिता हुयी । तो अभिव्यक्ति नित्य न होने पर भी उस व्यवहार से नित्यना हुयी । हम तो पुरुष की स्वतन्त्रता के प्रतिषेध में ही प्रयत्नशील हैं।"
उत्तर पक्षी:-अपौरुषेयत्व का कथन संबंधशून्य है क्योंकि अब तक इस प्रकार के अपौरुषेयत्व का साधक कोई प्रमाण सिद्ध नहीं हुआ।
___B 'वर्णक्रम को अपौरुषेय अर्थात् नित्य मानते हैं' ऐसा कहे तो वह भी सुन्दर नहीं है क्योंकि वर्ण नित्य होने से तन्तु और उसके बाद वस्त्र' इस प्रकार के कालक्रम का, एवं व्यापक होने से, मोती की माला में एक बडै मोती के बाद दूसरा छोटा मोती' इस प्रकार के देशक्रम का कोई संभव नहीं है।
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