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अज्झयणं-३, उद्देसो
जो कारवेज्ज जिनहरे तओ वि तव-संजमो अनंत-गुणो [५३८] तव-संजमेण बहु-भव- समज्जियं पाव-कम्म-मल-लेवं निद्धोविऊण अइरा अनंत- सोक्ख वए मोक्खं [५३९] काउं पि जिनाययणेहिं मंडियं सव्वमेइणी-व दानाइ-चउक्केणं सुट्टु वि गच्छेज्ज अच्चुयगं
[५४०] न परओ गोयमा
! गिहि ति
जइ ता लवसत्तम-सुर - विमाणवासी वि परिवडंति सुरा । से चिंतिज्जंत संसारे सासयं कयरं
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[५४१] कह तं भण्णउ सोक्खं सुचिरेण वि जत्थ दुक्खमल्लियइ जं च मरणावसाणं सुथैव-कालीय-तुच्छं तु
[५४२] सव्वेण वि कालेणं जं सयल-नरामराण भवइ सुहं तं न घडइ सयमनुभूयामोक्ख-सोक्खस्स [५४३] संसारिय-सोक्खाणं सुमहंताणं पि गोयमा मज्झे दुक्ख-सहस्से घोर-पयंडेणुभुंजंति [५४४] ताइं च साय-वेओयएण न याणंति मंदबुद्धीए मणि-कनगसेलमयलोढ गंगले जह व वणि-धूया [५४५] मोक्ख-सुहस्स उ धम्मं सदेव-मनुयासुरे जगे एत्थं नो भाणिऊण सक्का नगर - गुणे जहेव य पुलिंदो [५४६] कह तं भण्णउ पुन्नं सुचिरेण वि जस्स दीसए अंत जं च विरसावसाणं जं संसारानुबंधिं च
[५४७] तं सुर-विमान-विहवं चिंतिय-चवणं च देवलगाओ अइवलियं चिय हिययं जं न वि सय- सिक्करं जाइ [५४८] नरएसु जाई अइदूसहाई दुक्खाइं परम- तिक्खाई को वही ताइं जीवंतो वास - कोडिं पि
[ ५४९] ता गोयम ! दसविह धम्म - घोर-तव-संजमाणुठाणस्स
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[दीपरत्नसागर संशोधितः ]
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भावत्थवमिति नामं तेणेव लभेज्ज अक्खयं सोक्खं-ति [५५०] नारग-भव-तिरिय-भवे अमर भवे सुरइत्तणे वा वि
नो तं लब्भइ गोयम ! जत्थ व तत्थ व मनुय-जम्मे [५५१] सुमहऽच्चंत-पहीणेसु संजमावरण-नामधेज्जेसु ।
ताहे गोयम ! पाणी भावत्थय जोगयमुवे || [५५२] जम्मंतर-संचिय गरुय - पुन्न पब्भार-संविदत्ते
मास - जम्मेण विना नो लब्भइ उत्तमं धम्मं ॥ [५५३] जस्सानुभावओ सुचरियस्स निस्सल्ल दंभरहियस्स लब्भइ अउलमनंतं अक्खय सोक्खं तिलोयग्गे ।।
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Sनंत-भागे वि ।।
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नेगे । ||
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[३९-महानिसीहं]