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काग-मादिहिं लुप्पंती कोहाविट्ठा मरेऊणं ।। [१२३२] ताहे वि जल-धणे रण्णे मरुदेसे दिद्विवीसो ।
सप्पो होऊण पंचमगं पुढविं पुनरवि गओ ।। [१२३३] एवं सो लक्खणज्जाए जीवो गोयमा ! चिरं ।
घन-घोर-दुक्ख-संतत्तो चउगइ-संसार-सागरे ।। [१२३४] नारय-तिरिय-कुमनुएसु आहिंडित्ता पुणो विहं ।
होड सेणियजीवस्स तित्थे पउमस्स खज्जिया || [१२३५] तत्थ य दोहग्ग-खाणी सा गमे निय-जननीओ वि य ।
गोयमा ! दिट्ठा न कस्सा वि अत्थियरही तहिं भवे ।। [१२३६] ताहे सव्व-जनेहिं सा उव्वियणिज्ज त्ति काऊणं ।
मसि-गेरुय-विलित्तंगा खरे रूढा भमाडिउं || [१२३७] गोयमा उ पक्ख-पक्खेहिं वाइय-खर-विरस-डिंडिमं । निद्धाडिहिईं न अन्नत्थ गामे लहिइ पविसिउं ।। [१२३८] ताहे कंदफलाहारा रण्ण-वासे वसतिया ।
छच्छंदरेण वियणत्ता नाहीए मज्झ देसए ।। [१२३९] तओ सव्वं सरीरं से भरिज्जी सुंदुराण य ।
तेहिं तु विलुप्पमाणी सा दूसह-घोर-दुहाउरा ।। [१२४०] वियाणित्ता परम-तित्थयरं तप्पएसे समोसढं ।
पेच्छिही जाव ता तीए अन्नेसिमवि बहु-वाही-वेयणा-परिगय-सरीराणं तद्देस विहारी भव्व सत्ताणं नर नारी-गणाणं तित्थयर-दंसणा चेव सव्व दुक्खं विणिहिही [१२४१] ताहे सो लक्खणज्जाए तहियं खुज्जियत्ते जीओ |
गोयम ! घोरं तवं चरिउं दुक्खाणमंतं गच्छिही ।। [१२४२] एसा सा लक्खणदेवी जा अगीयत्थ-दोसओ | गोयम ! अनुकलुसचित्तेणं पत्ता दुक्ख-परंपरं ।।
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अज्झयणं-६, उद्देसो
[१२४३] जहा णं गोयमा ! एसा लक्खण-देवज्जिया तहा ।
सकलुस-चित्ते अगीयत्थे ऽनंते पत्ते दुहावली ।। [१२४४] तम्हा एयं वियाणित्ता सव्व-भावेण सव्वहा । गीयत्थेहिं भवेयव्वं काय निम्मल-विमल-नीसल्लं ि
| तिबेमि || [१२४५] पणयामरमरुय मउडुग्घुट्ठ चलण सयवत्त जयगुरु !।
जगनाह धम्मतित्थयर भूय-भविस्स वियाणग दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह